'ब्रेक्जिट' के बाद तेज विकास के लिए घरेलू 'इंजन' पर फोकस कर रही है सरकार
सरकार ब्रेक्जिट के असर को बेअसर करने को घरेलू मांग तथा ढांचागत क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर अगले कुछ वर्षो में 8 से 9% विकास दर हासिल करने की तैयारी कर रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। 'ब्रेक्जिट' ने भले ही दुनिया के पूंजी, मुद्रा व शेयर बाजारों में तहलका मचा दिया हो लेकिन सरकार इसका असर बेअसर करने को घरेलू मांग तथा ढांचागत क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर अगले कुछ वर्षो में 8 से 9 प्रतिशत विकास दर हासिल करने की तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ उपभोग मांग बढ़ाने के उपायों पर जोर देगी। साथ ही अर्थव्यवस्था में निवेश का माहौल बेहतर बनाने को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे लंबित सुधारों को लागू करने और व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया सरल बनाने पर जोर दिया जाएगा।
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वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और उथल-पुथल आज एक मानक हो गया है। इसलिए कोशिश यह है कि जब तक बाहरी मोर्चे पर स्थिति अनुकूल बने, तब तक विकास के घरेलू इंजनों को तेज किया जाए। इस बार मानसून भी सामान्य रहने की उम्मीद है जिससे महंगाई दर नीचे और विकास दर के जोर पकड़ने की संभावना है।
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लगातार दो साल तक सूखे की वजह से कृषि क्षेत्र की विकास दर वित्त वर्ष 2014-15 में -0.2 प्रतिशत तथा 2015-16 में 1.1 प्रतिशत रही है। विश्व बैंक का भी अनुमान है कि अगर मानसून बेहतर रहने से चालू वित्त वर्ष में अगर कृषि की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत भी रहती है तो इससे देश के जीडीपी में सीधे 0.35 प्रतिशत अतिरिक्त विकास दर मिल जाएगी। जबकि इसका परोक्ष असर ग्रामीण क्षेत्र में मांग में वृद्धि के रूप में होगा। मांग बढ़ाने के लिए सरकार मनरेगा और मुद्रा योजना जैसे रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों से लोगों की आमदनी बढ़ाने का प्रयास करेगी।
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सूत्रों ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग मांग तेजी से बढ़ रही है। खासकर कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की मांग और तेजी से बढ़ने की संभावनाएं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग दो-तिहाई परिवारों के पास मोबाइल फोन है जबकि रेफ्रिजरेटर मात्र 11 प्रतिशत परिवारों के पास हैं। इससे पता चलता है कि रेफ्रिजरेटर जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पादों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अभी काफी संभावनाएं हैं।
वहीं सातवें वेतन आयोग के लागू होने से शहरी क्षेत्रों में भी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के साथ-साथ सुस्त पड़े रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में मांग जोर पकड़ने की संभावनाएं हैं। सूत्रों ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर निजी निवेश की सुस्त रफ्तार एक चुनौती है, लेकिन इसे दूर करने के लिए सरकार सड़क सहित विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ा रही है।
कच्चे तेल का भाव नीचे रहने से पेट्रोलियम उत्पादों पर बढ़ाये गये टैक्सों से वसूली गयी धनराशि का इस्तेमाल बुनियादी विकास के लिए किया जा रहा है। वहीं विनिवेश के माध्यम से भी धनराशि जुटाने की योजना है।
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