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विकसित देश संभले, ब्रिक्स लड़खड़ाए

न्यूयॉर्क । वर्ष 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट से सबसे तेजी से उबरते दिखे ब्रिक्स देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका अब लड़खड़ाने लगे हैं। तब दुनिया को संकट से उबारने में इन देशों में बढ़ती खपत की अहम हिस्सेदारी रही थी। मगर अब इन देशों में मांग लगातार घट रही है। दूसरी ओर अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्थाएं पिछले कुछ महीन

By Edited By: Published: Sun, 06 Oct 2013 09:58 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
विकसित देश संभले, ब्रिक्स लड़खड़ाए

न्यूयॉर्क । वर्ष 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट से सबसे तेजी से उबरते दिखे ब्रिक्स देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका अब लड़खड़ाने लगे हैं। तब दुनिया को संकट से उबारने में इन देशों में बढ़ती खपत की अहम हिस्सेदारी रही थी। मगर अब इन देशों में मांग लगातार घट रही है। दूसरी ओर अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्थाएं पिछले कुछ महीनों में खासी मजबूत होती दिखी हैं।

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भारत में पिछले एक दशक में पहली बार कारों की बिक्री में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। चीन की आर्थिक विकास दर भी दो दशक के निचले स्तर पर पहुंच गई है। क्रेडिट कार्ड के जरिये बढ़ते खर्च के लिए मशहूर हो रहा ब्राजील जैसा देश भी अब अर्थव्यवस्था में सुस्ती और नागरिकों में बढ़ते असंतोष का गवाह बन रहा है। बढ़ती महंगाई और खराब सार्वजनिक सेवाओं के खिलाफ जून में यहां लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे।

ब्रिक्स देशों में यह हालात तब बन रहे हैं जबकि अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्थाओं ने पिछले कुछ माह में रफ्तार पकड़ ली है। माना जा रहा था कि ग्लोबल आर्थिक संकट का उफान थमने पर विकसित और विकासशील देश बराबरी से मजबूती दिखाएंगे। मगर अब विश्व अर्थव्यवस्था में स्वस्थ विकास के आसार लगातार घटते नजर आ रहे हैं।

ब्रिक्स देशों में सुस्ती के कारण अलग-अलग हैं। चीन में जहां बैंकों का कर्ज वितरण घटने से सुस्ती बढ़ी है वहीं भारत में कमजोर आधारभूत संरचनाओं और भ्रष्टाचार को इसका कारण माना जा रहा है। एक समानता यह है कि इन देशों में जीवनयापन की लागत बढ़ रही है जिससे खर्च करने की क्षमता में कमी आ रही है। रूस में भी वित्ताीय संकट के बाद से महंगाई दर औसतन नौ फीसद बनी हुई है।

वर्ष 2008 में वित्ताीय संकट के दौरान विकासशील देशों के निर्यात काफी तेजी से घटे थे और बीजिंग से लेकर मॉस्को तक के शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई थी। विभिन्न सरकारों की ओर से जारी किए गए प्रोत्साहन पैकेजों के जरिये इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने काफी तेजी से वापसी की थी। इन पैकेजों के कारण कर्ज वितरण में भारी बढ़ोतरी हुई थी जिससे जिंसों की कीमतों में दोबारा तेजी आई थी।


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