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महंगाई बढ़ना नहीं, कम होना बड़ी चुनौतीः मुख्य आर्थिक सलाहकार

मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्घि दर 8 प्रतिशत के करीब रहेगी।

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2015 08:02 AM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2015 08:03 AM (IST)
महंगाई बढ़ना नहीं, कम होना बड़ी चुनौतीः मुख्य आर्थिक सलाहकार

नई दिल्ली। देश में आम मान्यता रही है कि महंगाई बड़ी समस्या है। रिजर्व बैंक भी कीमतें कम करने के हर-संभव प्रयास करता रहा है, लेकिन मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का मानना है कि महंगाई कम होना बड़ी चुनौती बन गई है।

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सरकार ने बुधवार को अपस्फीति यानी चीजों के दाम जरूरत से ज्यादा कम होने को अर्थव्यवस्था के समक्ष नई चुनौती करार दिया। इसके साथ ही सरकार की ओर से उम्मीद जताई गई कि पहली तिमाही की आर्थिक विकास दर हल्की होने के बावजूद मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्घि दर 8 प्रतिशत के करीब रहेगी। पहली तिमाही में विकास दर 7 प्रतिशत रही है।

अर्थव्यवस्था सही दिशा में

मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा, "कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था सही दिशा में आगे बढ़ रही है। हालांकि, विकास दर अर्थव्यवस्था की जरूरत के हिसाब से कम है। फिलहाल जिन आर्थिक सुधारों पर काम चल रहा है, उनकी बदौलत विकास दर में इजाफा होगा। सुब्रमण्यन ने कहा कि आगे चलकर जो एक चुनौती दिख रही है वह महंगाई बढ़ने की नहीं, बल्कि कीमतों में संभावित गिरावट की है।

8 फीसद विकास दर का दावा

पहली तिमाही में विकास दर उम्मीद से कम रहने पर सुब्रमण्यन ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था सुधर रही है। यह अन्य संकेतकों, मसलन राजस्व संग्रह और वास्तविक ऋण वृद्घि से मेल खाती है। जीडीपी वृद्घि के अनुमान पर उन्होंने कहा, "आर्थिक समीक्षा कहती है कि विकास दर 8-8.5 प्रतिशत रहेगी। पक्के तौर पर, से यदि जीडीपी के आंकड़ों का पुनःआकलन किया जाए, तो मौजूदा अनुमानों के मुकाबले 8 प्रतिशत के काफी नजदीक है।

विशेषज्ञ सुब्रमण्यन से सहमत नहीं

वैश्विक वित्तीय संकट और सुधारों की रफ्तार धीमी पड़ने के बीच मॉर्गन स्टेनली और फिच समेत कई ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों और विशेषज्ञों ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अनुमानित विकास दर घटाई है। उन्हें लगता है कि हालात अनुकूल नहीं हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर दुनियाभर की परिस्थितियों का असर होना तय है। इसके अलावा मानसूनी बारिश भी सामान्य से कम रही है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र का उत्पादन घटने की आशंका है।

कम कीमतें समस्या

  • कीमतें यदि एक निश्चित स्तर से कम हो जाती हैं तो इसका सीधा असर इंडस्ट्री पर पड़ता है।
  • कंपनियों का मार्जिन कम हो जाता है, लिहाजा वे विस्तार योजनाएं टाल देती हैं।
  • कुछ कंपनियां उत्पादन कम कर देती हैं, ताकि आगे के लिए नुकसान घटाया जा सके।
  • निवेश घट जाता है, औद्योगिक विकास ठप होने लगता है और बेरोजगारी बढ़ने लगती है।
  • भारत जैसे उभरते हुए बाजार में 4-5 फीसद प्रभावी महंगाई दर आदर्श मानी जाती है।
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