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चोरी बंद हो तो तीन रुपये से भी सस्ती होगी बिजलीः अरुप

पहले तो सीधा जवाब यह है कि हां, एनटीपीसी निश्चित तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन सकती है। बहुत पीछे की बात नहीं है जब हम पांच वर्ष में अपनी क्षमता 9,000 मेगावॉट बढ़ाकर खुश हो जाते थे। बीते चार वर्षों में हमने अपनी क्षमता में 11,500 मेगावॉट

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2015 06:56 AM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2015 07:47 AM (IST)
चोरी बंद हो तो तीन रुपये से भी सस्ती होगी बिजलीः अरुप

साक्षात्कार: अरुप राय चौधरी, सीएमडी, एनटीपीसी

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सरकार एनटीपीसी को दुनिया की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनी बनाना चाहती है। कंपनी की क्या तैयारी है?

पहले तो सीधा जवाब यह है कि हां, एनटीपीसी निश्चित तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन सकती है। बहुत पीछे की बात नहीं है जब हम पांच वर्ष में अपनी क्षमता 9,000 मेगावॉट बढ़ाकर खुश हो जाते थे। बीते चार वर्षों में हमने अपनी क्षमता में 11,500 मेगावॉट की वृद्धि की है। हमारे प्लांटों की कुल क्षमता 43,000 मेगावॉट हो चुकी है। 23,000 मेगावॉट क्षमता जोडऩे के लिए काम चल रहा है। अतिरिक्त 7,000-8,000 मेगावॉट के लिए और मंजूरी जल्द ही आने वाली है। हमें हाल ही में चार नए कोल ब्लॉक मिले हैं। हमारे इंजीनियर और कर्मचारी बेहतरीन स्तर के हैं। सरकारी नीतियां भी प्रोत्साहित करने वाली हैं। लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनी बनने की राह इतनी आसान भी नहीं है। घरेलू चुनौतियों को एक वाक्य में बताना हो तो मैं कहूंगा कि जितनी बिजली हम बेचते हैं अगर उसका पूरा पैसा मिलने लगे तो एनटीपीसी निश्चित तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी बिजली कंपनी बन जाएगी।

आपका आशय क्या है?

आशय यह है कि भारत में जितनी बिजली पैदा होती है उसकी 30 फीसद तक चोरी हो जाती है या फिर ट्रांसमिशन या वितरण (टीएंडडी) हानि की भेंट चढ़ जाती है। विकसित देशों में 10 फीसद बिजली ही टीएंडडी की भेंट चढ़ती है। यही नहीं, हमारे यहां 30 से 35 अरब यूनिट बिजली कोई नहीं खरीदता। अगर हम जितनी बिजली बनाते हैं, वह पूरी बिक जाए और समय पर पैसा मिले तो अगले पांच वर्षों मेंं हम हजारों मेगावॉट अतिरिक्त क्षमता के प्लांट लगा सकते हैं। लेकिन सवाल है कि जब हमारी अभी की बिजली नहीं बिक रही है तो फिर हम नया प्लांट क्यों लगाएंगे। यह स्थिति तब है जब हम सबसे कम दर पर बिजली की आपूर्ति कर रहे हैं। इसी तरह से देश में वितरण की स्थिति बहुत ही खराब है। आजादी के बाद डिस्ट्रीब्यूशन में खास निवेश नहीं हुआ है। इसे राज्यों पर छोड़ा गया, लेकिन राज्यों की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन सरकार को सबसे पहले पावर डिस्ट्रीब्यूशन में खूब निवेश करना चाहिए। निजीकरण भी कीजिए, मगर इस क्षेत्र में सरकार को एकमुश्त निवेश करना होगा। तभी देश की बिजली कंपनियों का रिटर्न सुनिश्चित हो पाएगा। इसके बाद ही हम विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना पाएंगे।

सरकार ने एनटीपीसी को एक संपूर्ण बिजली कंपनी बनाने की बात कर रही है जिसमें इसके पास कोयला खदान से लेकर बिजली वितरण तक होगा, क्या यह संभव है?

मौजूदा व्यवस्था में तो यह संभव नहीं है। खास तौर पर जिस तरह का संघीय ढांचा है उसमें यह संभव नहीं है। हां, ऐसी व्यवस्था हो, जिसमें कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में चुनिंदा बिजली कंपनियों को हर तरह की गतिविधि की अनुमति दी जाए। इस क्षेत्र में एनटीपीसी का चयन होता है तो वह वहां कोयला भी निकालेगी, बिजली भी बनाएगी, उसका वितरण भी करेगी और ग्राहकों से पैसा भी वसूलेगी। आजादी के बाद दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के साथ ऐसा प्रयोग किया गया था। मेरा मानना है कि हमें ऐसा प्रयोग फिर करना चाहिए। इस पर राज्य व केंद्र के बीच बातचीत होनी चाहिए। यह एक बड़ा मुद्दा है। अगर कोई राज्य राजी होता है तो एनटीपीसी इसके लिए तैयार है। कंपनी के पास इसकी क्षमता है। हम कोयला खनन से लेकर ट्रांसमिशन तक को आसानी से कर सकते हैं। लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर संशय है, वैसे हमारे पास उसकी क्षमता है।

सरकार ने हाल ही में कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं और दावा है कि बिजली की दरें सस्ती होगी, आपका क्या मानना है?

देखिए, बिजली की दर कम होगी या नहीं, यह अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएगा। जिन कंपनियों ने कोयला ब्लॉक के लिए बोली लगाई है उसके लिए उन्होंने जरूर कोई न कोई आकलन किया है। हां, इसमें कोई शक नहीं है कि कोयले के जरिये सस्ती बिजली पैदा करना संभव है। आप विकसित देशों की बातों मेंं मत जाइए। कोयला से ज्यादा प्रदूषण होता है। मगर अभी भी भारत को अगले 25 वर्षों तक सस्ती बिजली के लिए कोयला पर निर्भर रहना चाहिए, क्योंकि देश में पर्याप्त कोयला उपलब्ध है। मेरा साफ तौर पर मानना है कि अगर बिजली चोरी, टीएंडडी हानि रुक जाए तो भारत में तीन रुपये प्रति यूनिट से भी कम कीमत पर बिजली उपलब्ध हो सकती है। साथ ही कोयला निकालने की प्रक्रिया तेज करनी होगी और कोल ब्लॉकों के आसपास ही बिजली प्लांट लगाने होंगे।

आपने पीएसयू में सबसे लंबे समय तक सीएमडी रहने का एक रिकार्ड बनाया है, आपका अनुभव?

शानदार। दो कंपनियों में संयुक्त तौर पर 14 वर्षों तक चेयरमैन व एमडी बने रहने के दौरान मैंने कभी अपने आपको बंदिशों में नहीं बांधा। यह सच है कि सरकारी उपक्रमों में निजी क्षेत्र से ज्यादा आजादी नहीं है, लेकिन यहां सुधार करने की संभावना अधिक होती है। साथ ही यहां पारदर्शी व ईमानदार रहना होता है जो लंबी अवधि में सफलता के सबसे अहम कारक होते हैं। आने वाले दिनों अपने कर्मचारियों के लिए और एनटीपीसी में युवा पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए जाने वाले हैं। डायरेक्टर्स एट डोर्स, प्रोजेक्ट स्थल पर शहरी सुविधा उपलब्ध कराने जैसे कई नए प्रयोग किए हैं, जो कर्मचारियों को काफी प्रोत्साहित कर रहे हैं।

[प्रस्तुति: जयप्रकाश रंजन]

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