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एयरलाइनों में एफडीआइ को मंजूरी कल संभव

सरकार भारतीय एयरलाइनों में विदेशी एविएशन कंपनियों को 49 फीसद तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] की जल्द ही अनुमति दे सकती है। इस संबंध में गुरुवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में फैसला होने की संभावना है। सरकार के इरादे का पता उद्योग मंत्रालय की ओर से सभी मंत्रालयों को जारी उस कैबिनेट नोट से चलता है, जिसमें भारतीय एयरलाइनों में एफडीआइ को अनुमति देने के बारे में राय मांगी गई है।

By Edited By: Published: Wed, 11 Apr 2012 09:24 PM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2012 10:01 PM (IST)
एयरलाइनों में एफडीआइ को मंजूरी कल संभव

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सरकार भारतीय एयरलाइनों में विदेशी एविएशन कंपनियों को 49 फीसद तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] की जल्द ही अनुमति दे सकती है। इस संबंध में गुरुवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में फैसला होने की संभावना है। सरकार के इरादे का पता उद्योग मंत्रालय की ओर से सभी मंत्रालयों को जारी उस कैबिनेट नोट से चलता है, जिसमें भारतीय एयरलाइनों में एफडीआइ को अनुमति देने के बारे में राय मांगी गई है।

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वित्त मंत्रालय और नागरिक विमानन मंत्रालय इस पर पहले ही सहमति दे चुके हैं। बाकी मंत्रालयों की राय मिलने के बाद उद्योग मंत्रालय एयरलाइनों में एफडीआइ के बारे में अपना विस्तृत व फाइनल नोट बनाकर कैबिनेट सचिवालय को भेजेगा, जो इसे मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा।

इस मामले में उद्योग मंत्रालय की जल्दी की खास वजह है। दरअसल एयरलाइन उद्योग की हालत खस्ता है। इसलिए मंत्रालय चाहता है कि सरकार एफडीआइ मसले पर जल्द कोई फैसला करे। सभी उद्योग संगठन भी यही चाहते हैं। यदि एफडीआइ को मंजूरी मिलती है तो किंगफिशर समेत कई निजी भारतीय एयरलाइनों और यहां तक कि सरकारी एयर इंडिया को भी फायदा पहुंचेगा। इससे विदेशी एयरलाइनें किंगफिशर, स्पाइसजेट तथा गो एयर जैसी समस्याग्रस्त भारतीय एविएशन कंपनियों में इक्विटी खरीद सकेंगी। यह इनकी डांवाडोल वित्तीय स्थिति को सहारा देगा और ये अपनी सेवाओं का विस्तार व सुधार कर सकेंगी। निजी एयरलाइनों में किंगफिशर की हालत कुछ ज्यादा ही खस्ता है। वह बड़ी बेसब्री से एफडीआइ की अनुमति का इंतजार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक सरकार ने 49 फीसद एफडीआइ की अनुमति देने का लगभग मन बना लिया है। अब बस समय का इंतजार है।

एयरलाइनों में एफडीआइ का मसला राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील रहा है। पिछले 16 सालों से यह अटका हुआ है। बीच में जब-जब इसकी कोशिश हुई, सरकार को दूसरे राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ा। खासकर संप्रग सरकार के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं, जिसे मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआइ के फैसले को तृणमूल व अन्य दलों के दबाव में वापस लेना पड़ा। एयरलाइनों में एफडीआइ को लेकर भी दलों के विरोध के स्वर सुनाई देते हैं। लेकिन सरकार को लगता है कि मौजूदा माहौल में 49 फीसद एफडीआइ की अनुमति देने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी।

सरकार इसलिए भी इसे अंजाम देना चाहती है, क्योंकि इससे एयर इंडिया की हालत सुधारने का भी मौका मिलेगा। एफडीआइ की अनुमति के बाद सरकार चाहे तो एयर इंडिया में अपनी इक्विटी की रणनीतिक बिक्री का फैसला कर सकती है। इससे नई एयरलाइनों की स्थापना का मार्ग भी प्रशस्त होगा। अभी लगभग संपूर्ण भारतीय एयरलाइन उद्योग बेचैनी की हालत में है। अभी भारतीय एयरलाइनों में विदेशी गैर एयरलाइन कंपनियों के 49 फीसद तक एफडीआइ की अनुमति है। विदेशी एयरलाइनों को किसी तरह के एफडीआइ की अनुमति नहीं है। वैसे भारतीय हवाई अड्डों में 100 फीसद एफडीआइ की अनुमति है।

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