मेक इन इंडिया के ट्रैक पर मेट्रो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान 'मेक इन इंडिया' को पूरा करने में सबसे आगे दौड़ रही है दिल्ली मेट्रो ट्रेन। क्योंकि अब मेट्रो ट्रेन के कोच विदेशों से मंगाने की जरूरत नहीं है। बल्कि देश में ही स्वदेशी कलपुर्जों से मेट्रो ट्रेन के कोच तैयार हो रहे हैं। ऐसे में
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान 'मेक इन इंडिया' को पूरा करने में सबसे आगे दौड़ रही है दिल्ली मेट्रो ट्रेन। क्योंकि अब मेट्रो ट्रेन के कोच विदेशों से मंगाने की जरूरत नहीं है। बल्कि देश में ही स्वदेशी कलपुर्जों से मेट्रो ट्रेन के कोच तैयार हो रहे हैं। ऐसे में दिल्ली ही नहीं बल्कि नोएडा, लखनऊ, बेंगलुरु, पटना आदि शहरों में भी मेट्रो रफ्तार भरेगी। यही नहीं अब देश में निर्मित मेट्रो के कोच विदेश भेजे जाने की भी तैयारी चल रही है। ऐसे में दूसरे देशों में भी भारत में निर्मित मेट्रो ट्रेनें दौड़ेंगी। मेट्रो भवन में आयोजित एक प्रदर्शनी में शुक्रवार को स्वदेशी मेट्रो की झलक प्रदर्शित की गई।
इस दौरान मेट्रो रोलिंग स्टाक वैश्विक बाजारों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वदेशीकरण, दिल्ली मेट्रो का प्रयास विषय पर गोष्ठी में दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों ने चर्चा की। डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार मेक इन इंडिया को बढ़ावा दे रही है।
डीएमआरसी ट्रेनों को स्वदेशी बनाने में जुटा
डीएमआरसी अपनी ट्रेनों को स्वदेशी बनाने में जुटा है और देश में ही मेट्रो के कोच और कलपुर्जे तैयार किए जा रहे हैं। यह सरकार के प्रयासों के अनुुरूप है। देश में तीन जगहों गुजरात के सावली, बेंगलुरु और चेन्नई में कोच तैयार किए जा रहे हैं, जो देश के कई शहरों में निर्माणाधीन मेट्रो परियोजनाओं के लिए कोच की जरुरतें पूरी करने में सक्षम है। रेलवे बोर्ड के सदस्य (विद्युत) नवीन टेंडन ने भी मेट्रो ट्रेनों के स्वदेशीकरण के लिए दिल्ली मेट्रो की तारीफ की।
प्रतिदिन 208 मेट्रो ट्रेन का होता है परिचालन
डीएमआरसी के अनुसार दिल्ली में वर्तमान समय में प्रतिदिन 208 मेट्रो ट्रेनों का परिचालन होता है, जिसमें 1234 कोच लगे हैं। इनमें से 90 फीसदी कोच देश में ही निर्मित है। हालांकि अभी तीन विदेशी कंपनियां यहां मेट्रो कोच और उसके कलपुर्जों का निर्माण कर रही है। उन्होंने बताया कि मेट्रो के कोच में 90 फीसदी कलपुर्जे देश में ही निर्मित होते हैं। सिर्फ दस फीसदी विदेशी कलपुर्जों का इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि समझौते के अनुसार 25 फीसदी विदेशी कलपुर्जों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन देश में निर्मित कलपुर्जों की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि विदेशी कलपुर्जों की जरुरत नहीं पड़ती। देश में मेट्रो कोच का उत्पादन कर रही विदेशी कंपनियां क्वींसलैंड, सिडनी में भी कोच भेजने की तैयारी में है।
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