बने पर्यटक योग यात्री
हाल के दिनों में योग और ध्यान के प्रति रुझान कुछ यूं बढ़ा है कि हर खासोआम इसे अपनी छुट्टियों का हिस्सा बनाने लगा है।
क्या योजना है छुट्टियों की? क्या कोई नया प्रयोग किया जाए?’ गुड़गांव की एक मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट सौमित्र सेन ने अपने सहयोगियों से जैसे ही यह सवाल किया, फौरन टीम की ओर से जवाब आया ‘क्यों न इस बार योग वैकेशन पर चलें?’ दरअसल, वाहनों के शोरगुल, सड़कों पर रेंगती गाड़ियों के बीच बीतते समय से इंसान इतना ऊब जाता है कि वह पहाड़ों या समंदर के करीब स्थलों का रुख करता है, ताकि शुद्ध हवा मिल सके। यही वजह है कि हाल के दिनों में योग और ध्यान के प्रति रुझान कुछ यूं बढ़ा है कि हर खासोआम इसे अपनी छुट्टियों का हिस्सा बनाने लगा है। नियोमी कैंपबेल, काइली मिनॉग, अनिल कपूर, सोनम कपूर, आलिया भट्ट सरीखे सितारे भी योग और ध्यान की शरण में जाने लगे हैं।
किसी बाहरी संपर्क से दूर योगाश्रम में सात्विक आहार और अनुशासित दिनचर्या के बाद जब लोग अपनी रोजमर्रा की दुनिया में लौटते हैं तो स्फूर्ति और आत्मविश्वास से खिला होता है उनका तन-मन। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक के राज्यों में बढ़ते योगाश्रमों की संख्या इसका उदाहरण हैं। योग, आयुर्वेद या नेचुरोपैथी से तन-मन को निरोग और स्वस्थ रखने के लिए अब न्यू मैक्सिको, कोलोराडो, न्यू यॉर्क, जमैका, बाली, बहामास, अमेरिका तक जाने से पीछे नहीं रह रहे लोग।
विकारों से मिलता छुटकारा
नई दिल्ली स्थित मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ योग में बतौर इंस्ट्रक्टर कार्यरत ललित मदान कहते हैं, ‘योग जीवन जीने की एक प्राचीन कला है। इन दिनों इसकी लहर सी उठी हुई है। हर कोई स्वास्थ्य को लेकर सचेत है। छुट्टियां भी मौज-मस्ती, सैर-सपाटे, खरीदारी तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उनमें योग और आयुर्वेद शामिल हो चुका है।’ दिल्ली स्थित इंटरनेशनल शिवानंद योग वेदांत सेंटर के डायरेक्टर पी.सी.कपूर मानते हैं कि पारिवारिक और व्यावसायिक जिम्मेदारियों से उपजे तनाव की वजह से कम उम्र में ही लोग ब्लडप्रेशर, डायबिटीज के शिकार होने लगे हैं। टेक्नोलॉजी प्रदत्त सुविधाओं ने शारीरिक श्रम की अवधारणा को ही खत्म कर दिया है। आज लगभग हर किसी की नींद उड़ गई है जबकि दलाई लामा भी कहते हैं कि नींद सर्वोत्तम मेडिटेशन है। ऐसे में योग वैकेशन का विकल्प लुभावना है, क्योंकि इससे विकारों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
सीख जाते हैं संतुलन बनाना
‘मेरा पेशा हमेशा मुझे मरीजों से घेरे रखता है। सबकी अलग-अलग परेशानियां सुनते-देखते रहने से बेचैनी हो जाती है। ऐसे में जब कभी अवसर मिलता है मैं हरिद्वार, ऋषिकेश या केरल के किसी योगाश्रम में हफ्ते भर के लिए चली जाती हूं। इसके बाद जिस ऊर्जा का प्रवाह होता है, वह बयां करना मुश्किल है’, कहती हैं डॉ. मुक्ता सेठ। क्वालिटी लाइफ के लिए बॉडी, माइंड और सोल तीनों का तारतम्य जरूरी है, जिसे योग संभव बनाता है। सौमित्र कहते हैं, ‘आज की मशीनी पीढ़ी जितनी मैटीरियलिस्टक हो गई है, उससे तमाम तरह की परेशानियों को भी विस्तार मिल गया है। योग और ध्यान से जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, वह संतुलित ढंग से जीना सिखाती है। इसके इर्द-गिर्द वैकेशन प्लान करना समय का तकाजा है।’
अंशु सिंह
इनपुट- मलय बाजपेयी/ विवेक शुक्ला
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