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लौट आओ मेरे अंगना रे गौरैया

संजय मिश्र, गोरखपुर। घर-आंगन में फुदकने-चहकने वाली गौरैया अब ढूंढे नहीं मिलती। कम होती हरियाली और घरों केआसपास बने विषाक्त वातावरण ने गौरैया को गायब ही कर दिया है। कभी गर्मी में गौरैया जब धूल में लोटती तो माना जाता था बारिश होने वाली है। उसका गायब होना पर्यावरण पर

By Babita kashyapEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2015 12:58 PM (IST)Updated: Fri, 20 Mar 2015 01:09 PM (IST)
लौट आओ मेरे अंगना रे गौरैया

-विश्व गौरैया दिवस

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संजय मिश्र, गोरखपुर। घर-आंगन में फुदकने-चहकने वाली गौरैया अब ढूंढे नहीं मिलती। कम होती हरियाली और घरों केआसपास बने विषाक्त वातावरण ने गौरैया को गायब ही कर दिया है। कभी गर्मी में गौरैया जब धूल में लोटती तो माना जाता था बारिश होने वाली है। उसका गायब होना पर्यावरण पर बढ़ते संकट का भी प्रमाण है लेकिन कुछ जीवट वाले हैं जो गौरैया को आंगन में फिर से लौटने का रास्ता दिखा रहे हैं। इन्हीं में एक हैं गोरखपुर के तारमध्वज एवं उनका परिवार। उनका घर गौरैया की शरणस्थली बन चुका है और 350 से अधिक गौरैया उनके घर-आंगन में घोंसले बनाकर रहती हैं।

लगभग एक दशक पहले तक हमारे घर-आंगन, बागीचे, रोशनदान, अटारी पर गौरैया मंडराती थी। उसकी चीं चीं पूृरे घर में सुनाई देती थी। हमारी दिनचर्या का वह इस कदर हिस्सा थी कि घर के बाहर पानी और दाना रखना लोग नहीं भूलते थे। घर के ब'चों की दोस्ती सबसे पहले गौरैया से ही होती थी। किसी ने गौरैया को पकड़ा या मार दिया तो उसे घर से लेकर पास-पड़ोस तक की झिड़की मिलती। विलुप्त होती गौरैया को आंगन में फिर से देखने की चाह रखने वालों के लिए गोरखपुर के खोराबार क्षेत्र के गायघाट निवासी तारमध्वज एवं उनके परिवार ने उम्मीद की किरण दिखाई है। पिछले तेरह वर्ष के अपने अनूठे प्रयास से उनका परिवार गौरैया का संरक्षक बना हुआ है।

ऐसे लौटी गौरैया

लगभग 13 साल पहले तारमध्वज के दरवाजे पर कहीं से गौरैया के दो जोड़े आ गए। सबसे पहले उनकी बेटी कृतिका की नजर गौरैया पर पड़ी। उसने उनके सामने बूंदी के दो लड्डू तोड़कर डाल दिए। मूंगफली के दाने भी कूटकर बिखेर दिए जिन्हें गौरैया ने पूरे चाव से खाया। अगले दिन भी गौरैया के दोनों जोड़े फिर आ गए। फिर तो ये जोड़े यहीं के होकर रह गए। धीरे-धीरे उनके साथ अन्य गौरैया भी आने लगीं। घर में ही उन्होंने घोंसला बना लिया।

तारमध्वज बताते हैं कि कृतिका की शादी होने के बाद गौरैया के संरक्षण की जिम्मेदारी उनके साथ उनकी पत्नी सुभावती ने संभाल ली। वह उन्हें रोज सुबह चावल, मूंगफली व लड्डू के दाने डालते हैं। आंगन से जुड़े बरामदे में भी पक्षियों के घोंसले हैं। उनके आते ही गौरैया पेड़ों से उतरकर उनके आसपास आ जाती हैं।

गौरैया की छह प्रजातियां

दुनिया में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पैनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, डेड सी स्पैरो, और ट्री स्पैरो। इनमें से हाउस स्पैरो ही घरों में चहकती फुदकती है। इसकी लंबाई 14 से 16 सेमी तक होती है तथा वजन 25 से 32 ग्राम तक।

गौरैया की कहानी

आखिर क्यों गायब होती जा रही है गोरैया


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