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वर्ल्‍ड हेल्‍थ डे: लव यू जिंदगी

आज अगर कमजोर पल आए हैं तो कल खुशी फिर चेहरे पर बिखरेगी ही...जरूरत है तो बस बात करने की और जिंदगी को गले लगाने की...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Tue, 04 Apr 2017 02:25 PM (IST)Updated: Thu, 06 Apr 2017 01:04 PM (IST)
वर्ल्‍ड हेल्‍थ डे: लव यू जिंदगी
वर्ल्‍ड हेल्‍थ डे: लव यू जिंदगी

7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस है और इस साल इसकी थीम है ‘डिप्रेशन: लेट्स टॉक’। यह वक्त है बात करने का कि आखिर क्यों अवसाद खाए जा रहा है हंसती-खिलखिलाती जिंदगियों को, क्यों अचानक गुमसुम हो जाते हैं सबको जगाते-गुदगुदाते लोग? क्यों कई बार वे खुद को इतना परेशान, बेबस और हताश पाते हैं कि जीवन से मुंह मोड़ने तक का फैसला कर लेते हैं? अंधेरे और उदासी की इन्हीं गलियों में रोशनी तलाशने निकलीं नंदिनी दुबे और पाया कि आज अगर कमजोर पल आए हैं तो कल खुशी फिर चेहरे पर बिखरेगी ही...जरूरत है तो बस बात करने की और जिंदगी को गले लगाने की...

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केस स्टडी-1
दिल्ली की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले पारस ने अपना काम शुरू करने के लिए अच्छे पैकेज की जॉब छोड़ दी। मगर तमाम कोशिशों के बाद भी स्टार्टअप में सफलता नहीं मिली। बिजनेस में मिली नाकामयाबी की वजह से पारस ने परिवार और बिजनेस दोनों से ही किनारा कर लिया। फिलहाल वे अवसाद में हैं।

केस स्टडी-2
शैलेश का 4 साल तक अपनी सहकर्मी के साथ अफेयर रहा। शैलेश ने घरवालों से शादी की रजामंदी ले ली लेकिन  दिक्कत यह हुई कि लड़की के घरवाले शादी के लिए राजी नहीं हुए और ऐसे में लड़की ने भी शादी से इंकार कर दिया। ब्रेकअप के बाद शैलेश डिप्रेशन में चले गए।

केस स्टडी-3
सुहानी कई सालों से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थीं। एकाग्र होकर तैयारी करने के लिए उन्होंने अपनी अच्छी टीचिंग जॉब भी छोड़ दी। साल-दर साल बीतने के बाद भी जब सफलता नहीं मिली तो परिवार और दोस्तों ने सिविल सेवा का सपना छोड़कर टीचिंग जॉब में वापसी करने की सलाह दी लेकिन सुहानी ने अपना इरादा नहीं बदला। पढ़ाई का तरीका बदला और हौसलों के दामन को और मजबूती से थामकर आखिर सपनों की मंजिल हासिल कर ही ली।

हर मुश्किल का हल है
पारस और शैलेश तो बानगी भर हैं। आज की बदलती लाइफस्टाइल में युवा, बुजुर्ग और यहां तक कि स्कूल जाने वाले स्टूडेंट्स भी डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। कॅरियर, पढ़ाई, परिवार की जिम्मेदारियां, काम का बोझ, वक्त की कमी, रिश्तों के बीच बढ़ती दूरियां, अकेलापन और हर ख्वाहिश के पूरा होने की ललक की वजह से पलभर में लोग टूटकर बिखर रहे हैं। हालांकि इनके बीच सुहानी जैसे लोग भी हैं, जो नाकामयाबी से घबराते नहीं हैं, बल्कि मुश्किल वक्त में हौसला कायम रखते हुए ऐसी परिस्थितियों से डटकर लड़ते हैं।

खुद से करें एक सवाल
अक्सर नाकामयाब होने के बाद लोग हार मान लेते हैं। अपनी दुनिया को सीमित कर लेते हैं लेकिन क्या केवल यही जिंदगी का विकल्प है? एक बार सोचकर देखिए कि क्या आपको ऐसे हालात में ही जीना है या फिर इन कठिन परिस्थितियों से लड़कर विजेता बनना है? आईने के सामने खड़े होकर खुद से यह सवाल करें। सोचें कि क्या आप पूरी जिंदगी इसी तरह गुजारना  चाहते हैं या इससे निकलकर जीवन में ऊपर उठना चाहते हैं? जवाब खुद ही मिल जाएगा। दिल्ली की योग इंस्ट्रक्टर सूची बंसल कहती हैं, ‘नकारात्मक दौर से बाहर निकलने में सबसे बड़े मददगार आप खुद होते हैं। अन्य लोग केवल माध्यम बन सकते हैं, इसलिए अपने आप में हिम्मत जुटाइए।’

असफलता को स्वीकारें
एक बार इच्छाशक्ति मजबूत करके अगर असफलता को भी सफलता की तरह ही सहज तरीके से स्वीकार करना सीख जाएंगे तो आधी मुश्किलें खुद-ब-खुद कम हो जाएंगी। दरअसल, हम जब भी कोई काम करते हैं तो यही सोचकर करते हैं कि सिर्फ सफल ही होंगे। कामयाबी से कम हमें कुछ मंजूर नहीं होता। फिर अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर खुद को कोसना शुरू कर देते हैं लेकिन कामयाबी के साथ-साथ नाकामयाबी भी जीवन की एक सच्चाई है। पेंटर रामचंद्र पोकले बताते हैं, ‘जीवन में सफलता किसको अच्छी नहीं लगती? मगर यह भी तो जानना जरूरी है कि आखिर सफलता मिली क्यों नहीं? नाकामयाबी के पीछे वजह क्या है? संभव है कि आपके प्रयासों में ही कुछ कमी रह गई हो। तो हताश होने के बजाए असफलता को चुनौती के रूप में स्वीकार करना सीखें।’

सपोर्ट सिस्टम का साथ
उदासी या नाकामयाबी के दौर से निकलने के लिए सबसे जरूरी है मजबूत इच्छाशक्ति, जीतने की ललक, असफलता स्वीकार करने की हिम्मत और प्रियजनों का साथ। इसीलिए इस दौर से निकलने के लिए सपोर्ट सिस्टम को मजबूत करने की कोशिश करें। फैशन डिजाइनर जतिन कोचर कहते हैं, ‘ऐसे वक्त में सबसे ज्यादा यह महसूस होता है कि आपको कोई नहीं समझता, किसी को भी आपकी परवाह नहीं। इसी वजह से आप सबसे किनारा कर लेते हैं लेकिन यह सही नहीं है। अपने करीबियों से दिल की बात कहें और उनकी मदद से असफलता के कारणों को ढूंढने की कोशिश करें।’

जिंदगी फिर होगी गुलजार
अगर आप मुश्किल हालातों से लड़ना सीखकर, कमियों को पहचानकर अच्छे सपोर्ट सिस्टम के साथ विपरीत परिस्थितियों से टक्कर लें तो आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता। जरूरत है तो केवल आपको ऐसे पहलुओं पर काम करने की। ‘मिस व्हील चेयर इंडिया’ का खिताब जीतने वाली प्रिया भार्गव कहती हैं, ‘ल्यूपस बीमारी ने मुझे तोड़ दिया था। डॉक्टर ने हिलने-डुलने तक से मना कर दिया था। बीमारी की वजह से मैं पूरी तरह बिस्तर पर आ चुकी थी और डिप्रेशन में थी। बावजूद इसके मैंने हार नहीं मानी। मैंने ठान लिया था कि मुझे ऐसे जिंदगी नहीं गुजारनी है। मजबूत इच्छाशक्ति के भरोसे मैंने कमजोरी पर विजय पाई और प्रियजनों का साथ पाकर मिस व्हील चेयर इंडिया का खिताब जीता। अब मिस व्हील चेयर वल्र्ड की तैयारी कर रही हूं। इतनी गंभीर बीमारी के बावजूद भी मेरी जिंदगी गुलजार है।’


परिवार बना पालनहार
एक दिन अचानक सुबह उठकर मैंने भीतर से खालीपन महसूस किया। मैं सेट पर काम करती और फिर अपने कमरे में आकर रोती। मुझे निजी जीवन या कॅरियर में कोई परेशानी नहीं थी। फिर भी कुछ था, जो मुझे भीतर से आघात पहुंचा रहा था। ऐसे कठिन वक्त में परिवार के साथ ने मुझे नई उम्मीद बंधाई। खेल ने मुझे ताकत दी। इन्हीं चीजों ने मुझे बेहतर इंसान बनाया है।
- दीपिका पादुकोण, अभिनेत्री

संघर्ष पर भी करें गौर
अक्सर हम सफल लोगों की कामयाबी देखते हैं लेकिन इसके पीछे छिपे संघर्ष को समझकर भी समझना नहीं चाहते। इसीलिए उनकी सफलता के बारे में सोच-सोचकर खुद को परेशान और निराश कर लेते हैं। अगर अपने आस-पास नजर डालेंगे तो समझ आएगा कि जिन्होंने भी जीवन में कामयाबी पाई है उसके लिए उन्हें कितनी मुश्किलों से गुजरना पड़ा है। इसीलिए जीत पर नहीं, बल्कि संघर्ष पर गौर करें।
- नेहा पेंडसे, अभिनेत्री

डरना नहीं, डटना सीखें
असफल होने से डर सबको लगता है लेकिन इस डर से डरने की बजाए उसके सामने डटना सीखें। हां, यह सच है कि अधूरी ख्वाहिशें, रिश्तों में धोखा, कॅरियर का गिरता ग्राफ तनाव बढ़ाता है। यह दबाव ग्लैमर इंडस्ट्री में थोड़ा और ज्यादा होता है क्योंकि यहां तो एक दिन आप स्टार हैं तो अगले दिन ही आपबेकार हैं मगर इस स्थिति में दुनिया से नजरें चुराना, खुद की दुनिया सीमित कर लेना कोई उपाय नहीं है। जीवन के कमजोर पलों में डरना नहीं, बल्कि डटना सीखें।
-अर्जुन बिजलानी अभिनेता

यह तो फेर है जिंदगी का
मैंने निजी जिंदगी में कई समस्याओं का सामना किया है। ऐसा सभी के साथ होता है। ऊपर जाना जरूरी है, तो नीचे आना भी उतना ही अहम है। ये दोनों ही आपकी शख्सियत को बनाने के लिए जरूरी हैं। जब आप नीचे जाते हैं, तो आपके विचारों की स्पष्टता जरूरी होती है। अन्यथा आपका मस्तिष्क आप पर हावी हो जाता है। अनचाहे विचार छाने लगते हैं। उस वक्त आपको दूसरे या तीसरे व्यक्ति की जरूरत होती है, जो आपको बता सके कि आपके साथ क्या हो रहा है।
- ऋतिक रोशन अभिनेता

खुद में लाएं कुछ बदलाव
नकारात्मकता के दौर से निकलने के लिए सबसे अहम है कि आप अपने भीतर कुछ बदलाव लाएं। मसलन एक जैसी दिनचर्या से बाहर निकलें। कुछ अलग और अपने मन का काम करने की कोशिश करें। लोगों से मेल-मिलाप बढ़ाएं, किसी भी रचनात्मक कार्य में खुद को लगाएं, खुद को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखें। इन सब उपायों के जरिए आप खुद को ऐसे वक्त से बहुत जल्दी उबार पाएंगे।
- डॉ. प्रशांत गोयल
मनोवैज्ञानिक, श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली

डप्रेशन को छिपाएं नहीं
हर किसी की जिंदगी में एक ऐसा वक्त आता है, जब वह खुद को असहाय महसूस करता है। मगर जब यह लंबे समय तक बना रहता है तब उसे डिप्रेशन यानी अवसाद कहते हैं। यह किसी को भी और कभी भी हो सकता है लेकिन अक्सर लोग इस परेशानी को छिपाने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि मानसिक बीमारी के बारे में पता चलने से लोग उन्हें गलत समझेंगे लेकिन जरा सोचिए, जब हम पेट या किडनी की समस्या से ग्रस्त होते हैं तो इसे सामान्य मानकर इसका इलाज कराते हैं। तो फिर, दिमाग की कोई समस्या हो, जो कि एक अंग ही है, क्यों इतना डर जाते हैं? ऐसा क्यों समझते हैं कि ये हमारी गलती है और इसे हमें दूसरे लोगों से छुपाना चाहिए। इस बारे में खुलकर बात करें।
- डॉ. मनु तिवारी मनोचिकित्सक, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

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