भले ही होंगे विंटेज कार के दीवाने, पर उससे जुड़ी ये दिलचस्प बातें नहीं जानते होंगे आप
ठाठ-बाट। दाम बेशकीमती। हर रंग इन पर फबता है। हर सिरा मानो इनका बहुत ही किफायती और नाजकु है। नजाकत ऐसी माडॅल्स भी खदु को इनके आगे कम आकंती हैं। हम बात कर रहे हैं विंटेज कार की।
विंटेज कार की खुमारी, इनका अदांज है ही ऐसा कि हर कार्इे पहली दफा दीदार होते ही इनका कायल हो जाता है। इनके दीदार तो मुश्किल नहीं पर इन बेशकीमती कारों को अपना बना पाना सबके बूते की बात नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में विंटेज कार रैली का आयोजन कराने को हरी झंडी दे दी है। कभी राजशाही, जागीरदार, नवाबों की आन बान शान रहीं विंटेज कार के प्रेमी उत्साहित हैं।
कुछ लोग की दीवानगी इन विंटेज कारों के प्रति इस कदर है कि अब भी वे इसके लिए एक अलग से संग्रहालय बनाने की तैयारी कर रहे हैं। रोल्स रॉयस, बेंटले, दैमलर, लैंचेस्टर, लगोंडा, मर्सिडीज, बुगाती, फोर्ड, लिंकन, पर्काड, डॉज, ऑस्टिन, फिएट, सिंगर जैसी तमाम कारें। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद जब रियासत खत्म सिमटने लगी तो इन कारों को रखने वालों ने इन्हें बेचना शुरू कर दिया। इन गाड़ियों में दिलचस्पी लेने वालों ने रजवाड़ों से गाड़ियां खरीदनी शुरू कीं। जिस दौर में दिल्ली में तांगों के साथ गाड़ियां सरपट दौड़ने लगीं उसी दौर में कनॉट प्लेस में कुछ मोटर गैराज भी खुलने लगे।
उस दौर की अनुभूति
उस जमाने का ही गैराज कृष्णा मोटर्स आज भी सीपी में मौजूद है। 1938 में खुले कृष्णा मोटर्स के ज्ञान शर्मा बताते हैं कि उनके दादा जी ने नौकरी छोड़ कर गैराज शुरू किया था। राजा, ब्रिटिश राज के आला अधिकारी अपनी गाड़ी ठीक कराने आया करते थे। समय गुजरने के साथ कारों में कई तब्दीली आईं लेकिन इन कारों की शानदार बनावट, सुंदरता, रोचकता आज भी लोगों को उतनी ही आकर्षित करती है। हमारे पास फिलहाल मोरिस बुलनोज 1913 मॉडल, सिंगर 1934 मॉडल, ऑस्टिन चम्मी 1928 मॉडल, फिएट बलिला 1934 मॉडल वाली विंटेज कार हैं। ज्ञान के भाई प्रेम शर्मा बताते हैं कि इन गाड़ियों को सहेजने में पहले मुश्किल आती थी लेकिन अब जुगाड़ से काम चल जाता है। फिल्म निर्देशकों द्वारा इन गाड़ियों की खास मांग रहती है। हमारी गाड़ियां फिल्म रंग दे बसंती, सलाम-ए-इश्क, हॉलीवुड फिल्म विसल में इस्तेमाल की जा चुकी हैं। इस अद्भुत शौक से भले पैसा न कमाया जाए लेकिन उस सुनहरे दौर से जुड़े रहने की एक गजब की अनुभूति होती है। फिलहाल इन्हें चलाने पर एनजीटी के प्रतिबंध से कार प्रेमी काफी मुश्किल में है। शहर में अब गिने चुने ही गैराज तो हैं जहां विंटेज कारें ठीक हो पाती हैं। सरकार को भी इसमें लोगों की मदद करनी चाहिए।
आन बान की शान
भारत में सबसे पहली गाड़ी ब्रिटिश अधिकारी फॉर्सटर ने बॉम्बे में 1897-98 में इंग्लैंड से मंगवाई। उसके बाद वर्ष 1901 में राजधानी में सबसे पहले भारतीय जमसेत जी टाटा ने कार खरीदी। इसके बाद देश की करीब 565 रियासतों के नवाब, महाराजा, मीर, निजाम, राणा, राजाओं ने अपनी आन बान के लिए विदेश से गाड़ियां मंगवाईं। ये वो कारें थीं जो खासतौर पर राजाओं की रवायतों और परंपराओं को देखते हुए तैयार की जाती थीं, जिसकी कुछ झलक आज विंटेज कारों में दिखाई पड़ती है।
विंटेज कारों का महासंग्रहालय
लॉ फर्म चलाने वाले दिलजीत टाइटस राजधानी के सबसे बड़े विंटेज कार संग्रह करने वाले शख्स हैं। इनके पास 76 विंटेज कार, दस मोटर बाइक, कई पुरानी पालकी, ट्रैक्टर और एक 1947 का जहाज भी है जिसमें कभी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जाया करते थे। इन सभी पुरानी चीजों को प्रदर्शित करने के लिए महरौली के जौनपुर में एक संग्रहालय भी बना रहे हैं, जो इस साल के अंत तक शुरू कर दिया जाएगा। इस संग्रहालय में इन कारों को प्रदर्शित किया जाएगा जो लोग निशुल्क देख सकेंगे। दिलजीत टाइटस बताते हैं कि मुझे बचपन से ही पुरानी गाड़ियों में घूमने का शौक रहा। एक-दो गाड़ी नाना-नानी के पास भी थीं। लेकिन बाद में सारी बेच दी गईं। दिल में हमेशा उन कारों को रखने की तलब रही। वकालत के पेशे में आने के बाद से इन कारों को जमा करना शुरू किया। पिछले 18 सालों में कई पुरानी गाड़ियों को सहेजा और अब कई अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में इन्हें ले भी जाता हूं। इनमें से 95 फीसद गाड़ियां पुरानी रियासतों के महाराजाओं की हैं। इनमें कुछ क्लासिक कलेक्शन की गाड़ियां भी हैं।
लाहौर से लुटियन जोन तक
90 वर्ष की उम्र में भी आरएन सेठ की दीवानगी अपनी विंटेज कारों के प्रति कम नहीं हुई है। वे आज भी सुबह होते ही अपनी कार लागोंडा को निहारते और फिर ऐसी ही कार के दीवानों से उन पर चर्चा करना भी पसंद करते हैं। विंटेज कारों पर वे किताब भी लिख रहे हैं। ग्रेटर कैलाश में रहने वाले आरएन सेठ शहर में आयोजित होने वाले सभी विंटेज कार रैली में हिस्सा लेते हैं। उनके पास बीकानेर के महाराजा की कार लागोंडा है। आरएन सेठ बताते हैं कि कारों और गाड़ियों के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही थी। जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तब वे साल 1936 में बनी अपनी मोटर बाइक डिसोटो में दिल्ली पहुंचे थे। हालात इस कदर खराब थे कि वे वहां से सिर्फ मोटर बाइक ही ला पाए। यहां आने के बाद हेली रोड में ठहरे और अपनी कमाई से 850 रुपये में पहली कार खरीदी। उसके बाद कुछ और कार खरीदीं। विंटेज कार को जमा करने का शौक साल 1964 में शुरू हुआ। यह वो दौर था जब लोग विंटेज कारों को जमा करने लगे थे। एक जैसे शौक वाले लोग एक मंच पर जमा होने लगे और एक क्लब बनाया। विंटेज कार एंड क्लासिक कार क्लब ऑफ इंडिया की शुरुआत हुई। जहां साल दो साल में विंटेज कारों को प्रदर्शित किया जाने लगा। विंटेज कार और क्लासिक कारों के बारे में बताते हुए आरएन सेठ बताते हैं कि साल 1939 से पहले की कारों को ‘विंटेज कार’ की श्रेणी में रखा जाता है और उसके बाद 1960 तक की कार ‘क्लासिक श्रेणी’ में आती हैं। इन दिनों आयोजित होने वाली विंटेज कार रैली में दोनों गाड़ियों की झलक देखी जाती है।
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शौक से संग्रहालय तक
500 विंटेज कार के मालिक कभी एक गाड़ी को देखने के लिए मीलों उसके पीछे जाते थे। तत्कालीन राजा की उस शाही गाड़ी (डोज विक्टोरिया सिक्स 1928) को अगर मदनमोहन का पहला प्यार कहें तो गलत नहीं होगा। उससे इतना प्यार था कि जब भी कहीं आसपास से गुजरती तो उसे आंखों से ओझल होने तक निहारते रहते थे। कभी उसे पाने का सपना नहीं देखा था क्योंकि पहुंच से कोसो दूर थी। लेकिन मदनमोहन भी इसे इत्तेफाक ही मानते हैं कि उसी गाड़ी के लिए राजस्थान के खेतड़ी गांव के एक अंजान मैकेनिक का सन् 2000 में अचानक फोन आया और बताया कि बचपन जो गाड़ी उन्हें पसंद आई थी वह बिकाऊ है चाहें तो उसे खरीद सकते हैं। मदन मोहन दुविधा में पड़ गए क्योंकि तभी अपने लिए एक ऑफिस खरीदने के मन बनाया था। इस आफर पर उन्हें मात्र आधे घंटे में फैसला लेना था। अंत में पिता की इच्छाओं के विरुद्ध जाकर कार ही खरीदी। और अपने शौक को जिया।
यूं हुई तलाश : मदन मोहन ने उस गाड़ी के बाद देश-विदेश के कोने-कोने से बंगाल, ओडिशा, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के अलावा जर्मनी, फ्रांस, यूके से गाड़ियां खरीदीं। ट्रैवल के शौक व पेशे के चलते वे जहां भी जाते वहां के पुराने मैकेनिक को ढूंढते हैं और उससे इलाके र्की विंटेज गाड़ियों की जानकारी लेते हैं।
45 कारों को स्वदेश लाए : देश की विंटेज गाड़ियां जो कि स्मगल होकर विदेश में पहुंच गई थीं उन्हें स्वदेश लाने के लिए मदन मोहन काफी समय से काम कर रहे हैं। उन्हें इसमें सफलता भी मिली और अब तक 45 विंटेज कारों को स्वदेश ला चुके हैं।
304 विंटेज कार के मालिक : मदन मोहन के पास 304 विंटेज कार, 43 जीप व 106 विंटेज बाइक हैं। उनके पास जयपुर, बड़ौदा, जामनगर, कक्ष, काशीपुर, दरभंगा व रीवा सहित कई अन्य जगहों के राजाओं की 150 शाही कार हैं। इनके रख रखाव के लिए खुद भी प्रैक्टिस की और अपने भाई कृष्ण मोहन को अमेरिका की यूनीवर्सिटी से आटोमोटिव रेस्टोरेशन से तीन वर्षीय कोर्स भी करवाया है।
एशिया का सबसे बड़ा कार संग्रहालय : मदन मोहन गुरुग्राम में एशिया का सबसे बड़ा कार संग्रहालय बनाने की तैयारी में हैं। इसके लिए वे काम भी शुरु कर चुके हैं और उनका लक्ष्य है कि वे 2020 तक इस काम को पूरा कर लेंगे।
कार रैली का आयोजन : मदन मोहन लगातार सात वर्षों के 21 गन सेल्यूट विंटेज कार रैली का आयोजन कर रहे हैं। शुरुआत में तो उन्हें अपने स्तर पर ही सब कुछ करना पड़ा लेकिन अब भरत सरकार के पर्यटन मंत्रालय, थाईलैंड व मलेशिया के पर्यटन बोर्ड, तमिलनाडु व हिमाचल के टूरीज्म बोर्ड के साथ साथ एयर इंडिया, टोयोटा व वॉल्वो से भी सहयोग मिल रहा है।