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टीचिंग में टैलेंट!

यह बार-बार कहा जाता है कि हमारे देश में 65 करोड़ युवा हैं, पर क्या इन युवाओं के टैलेंट को निखारने वाले टीचर्स की गुणवत्ता पर भी उपयुक्त ध्यान दिया जा रहा है? आखिर क्या कारण है कि टैलेंट रखने वाले लोग टीचिंग में करियर बनाने को प्राथमिकता नहीं देते?

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 05 May 2015 08:05 AM (IST)Updated: Tue, 05 May 2015 09:21 AM (IST)
टीचिंग में टैलेंट!

यह बार-बार कहा जाता है कि हमारे देश में 65 करोड़ युवा हैं, पर क्या इन युवाओं के टैलेंट को निखारने वाले टीचर्स की गुणवत्ता पर भी उपयुक्त ध्यान दिया जा रहा है? आखिर क्या कारण है कि टैलेंट रखने वाले लोग टीचिंग में करियर बनाने को प्राथमिकता नहीं देते? और जो टीचर बन जाते हैं, क्या उन्हें अपडेट रहने के लिए मोटिवेट किया जाता है? इतना महत्वपूर्ण प्रोफेशन होने के बावजूद आखिर टीचर्स की गुणवत्ता बढ़ाने और उनका स्तर उठाने पर क्यों समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा। युवाओं को सक्षम बनाकर टीचिंग प्रोफेशन के जरिए देश की उन्नति में उनकी भूमिका बढ़ाना क्यों जरूरी है, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

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हाल ही में संसद की स्थायी समिति द्वारा देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के खाली पड़े पदों और पीएचडी धारकों की गुणवत्ता के बारे में जताई गई चिंता कई सवाल खड़े करती है। समिति द्वारा अध्यापन पेशे के सम्मान को बचाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय से जरूरी कदम उठाने का अनुरोध किया गया। सवाल यह है कि दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं का देश होने को लेकर हम कब तक सिर्फ बातें करते रहेंगे? क्या सरकार-संस्थानों के स्तर पर इस दिशा में ठोस योजना बनाने और उस पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की कोई व्यावहारिक पहल भी की जा रही है?

भूमिका है बड़ी

देखा जाए, तो सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले हमारे देश में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका वाले पेशे में अध्यापन प्रमुख है। इससे तो कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि प्राइमरी से लेकर हायर एजुकेशन तक ज्ञान, व्यक्तित्व, सोच और संस्कार को गढ़ने में कदम-कदम पर अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। टीचर की थोड़ी सी लापरवाही या अनदेखी किसी भी व्यक्ति के करियर को गिरा या उठा सकती है। एक कुशल व सचेत आर्किटेक्ट के निर्देशन में बनाई गई इमारत सैकड़ों सालों तक मजबूती से टिकी रहती है, जबकि स्थाापत्य में थोड़ा-सा भी दोष रह जाने पर इमारत जरा से झंझावात से ही भराभराकर गिर पड़ती है। इसी तरह एक टीचर द्वारा सलीके से गढ़ा गया विद्यार्थी खुद तो मजबूत होता ही है, वह समाज और देश को आगे बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होता है। जिस तरह एक कुशल कुम्हार कच्ची मिट्टी को अपने सुगढ़ हाथों से खूबसूरत आकार देता है, उसी तरह एक सचेत अध्यापक भी किसी अनगढ़ बच्चे को सलीके से गढ़कर उसे मुकम्मल बनाकर कामयाबी की दिशा में आगे बढ़ाता है। कुम्हार की नजर चूकते ही जिस तरह मिट्टी के बरतन का आकार बिगड़ जाता है, उसी तरह टीचर द्वारा समुचित ध्यान न देने पर विद्यार्थी गलत दिशा में भटक कर कामयाबी से कोसों दूर हो जाता है।

गुणवत्ता से समझौता नहीं

संसदीय समिति की यह चिंता उचित ही है कि हर साल देश में 7500 पीएचडी की उपाधि दिए जाने के बावजूद पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षकों का अभाव है। समिति द्वारा शोध की गुणवत्ता के मूल्यांकन को फिर से निर्धारित करने का सुझाव देना यह साबित करता है कि ज्यादातर संस्थानों में पीएचडी की उपाधि रस्मी तरीके से दी जा रही है। अधिकतर विद्यार्थी पीएचडी को नौकरी पाने के साधन के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। यही कारण है कि उनके द्वारा रिसर्च पर पर्याप्त मेहनत नहीं की जाती। रिसर्च से जुड़े क्षेत्र में परिश्रमपूर्ण अध्ययन न करने के कारण ही उनमें ज्ञान की गहराई नहीं होती और वे देश के उच्च संस्थानों में नियुक्ति के मानकों पर खरे नहीं उतर पाते।

टीचिंग से दूर टैलेंट

देश और समाज की पहचान व तरक्की के लिए सबसे ज्यादा दायित्वपूर्ण होने के बावजूद आज के टैलेंटेड युवा टीचिंग प्रोफेशन में दिलचस्पी नहीं दिखाते। वे इसे आइएएस, पीसीएस, इंजीनियरिंग, मेडिकल प्रोफेशन की तरह कतई नहीं लेते। हालांकि ऐसा नहीं है कि टीचिंग के पेशे में टैलेंटेड लोग नहीं हैं, पर ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है। एक बार टीचर बन जाने के बाद ज्यादातर लोग बदलते वक्त के साथ अपडेट रहने और पढ़ने-पढ़ाने में इनोवेशन पर ध्यान नहीं देते।

सम्मान बढ़ाएं

आज जरूरत इस बात की है कि शासन-प्रशासन चलाने वाले आइएएस, आइपीएस की तरह टीचिंग के पेशे का भी सम्मान और बढ़ाया जाए। हो सके, तो सुविधाएं भी और बढ़ाई जाएं, लेकिन तब इस पेशे में एंट्री करने के मानक और कड़े कर दिए जाएं। साथ ही, टैलेंटेड युवाओं को टीचिंग के प्रति आकर्षित करने के लिए समुचित उपाय किए जाएं। इस बारे में प्रचार-प्रसार भी किया जा सकता है। नॉलेज बढ़ाने के प्रति समर्पित और टीचिंग को एंज्वॉय करने युवाओं को आकर्षित करके एजुकेशन सेक्टर की तस्वीर बदली जा सकती है।

सिर्फ नौकरी नहीं

टीचिंग पेशे से जुड़ने वालों को यह समझने और समझाने की जरूरत है कि यह पेशा सिर्फ नौकरी नहीं है। यह पेशा सीधे तौर उन विद्यार्थियों को गढ़ने से जुड़ा है, जिन पर आगे चलकर देश और समाज को मजबूत बनाने एवं उसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी है। ऐसे में एक टीचर को अपनी संवेदनशील जिम्मेदारी को पूरी तरह समझने और उसका निर्वाह करने में सक्षम होना चाहिए।

अपडेट रहना भी जरूरी

इस पेशे की सबसे बड़ी चुनौती स्टूडेंट्स को कनविंस करने की होती है। ऐसा तभी कर पाएंगे, जब आप बदलते वक्त के मुताबिक खुद को अपडेट रखेंगे। आप अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाएंगे, तो निश्चित रूप से इसका असर स्टू्डेंट्स पर पड़ेगा। लकीर के फकीर रहकर आप न तो अपना भला कर सकते हैं और न ही अपने विद्यार्थियों का। इसलिए खूब पढ़ें और खुद को जागरूक रखें, ताकि आप अपने स्टूाडेंट्स का हर कदम पर मार्गदर्शन कर सकें।

* टीचिंग के पेशे की जिम्मेदारी समझकर ही इसमें एंट्री करें। खुद को हमेशा जागरूक रखें, ताकि हर कदम पर अपने छात्रों को दिशा दिखा सकें।

* टीचिंग का कार्य मेहनत व ईमानदारी से करके आप युवाओं के करियर को सही शेप दे सकते हैं।

* आपके गढ़े स्टूडेंट देश और समाज को तरक्की के साथ अलग पहचान भी दिला सकते हैं।


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