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रीवा का आसमान

आसमान के नीले-नीले तारे, कभी टिमटिमाते, कभी बादलों के बीच छिप जाते, तो कभी रीवा को चिढ़ाते

By Mohit TanwarEdited By: Published: Fri, 21 Oct 2016 08:30 AM (IST)Updated: Fri, 21 Oct 2016 09:00 AM (IST)
रीवा का आसमान

आसमान के नीले-नीले तारे, कभी टिमटिमाते, कभी बादलों के बीच छिप जाते, तो कभी रीवा को चिढ़ाते! वह ओढ़ लेती थी सितारों की ओढ़नी और उनके बीच से चांद को खोलकर भी देखती। उसे लगता सारे सितारे उसकी गोद में आ गए हैं, और वह उनके साथ खेलती। रीवा को आसमान की खुली दुनिया अपनी तरफ आकर्षित करती थी। वह चाहती थी कि वह अनंत आकाश की ऊंचाइयों के रहस्यों को समझे, जाने, उन पर बात करे। पापा तो साथ थे, पर मां को वह मना नहीं पा रही थी। वह कुछ भी करे, उसके पापा उसके साथ होते थे। नुसरत के साथ उसने कई बार मां को समझाने की कोशिश की थी, मगर मां मान ही नहीं रही थीं।

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वह और नुसरत दोनों एक ही साथ पढ़ती थीं। नुसरत का साथ रीवा को बहुत पसंद था, क्योंकि वह भी उसी की तरह कुछ करना चाहती थी। नुसरत की मम्मी भी रीवा की मम्मी की तरह नुसरत को लेकर चिंता किया करती थीं। दोनों के ही पापा उन दोनों की महत्वाकांक्षा को लेकर गंभीर थे और वे चाहते थे कि दोनों ही अपना आसमान छू लें। मगर मम्मियों को कैसे मनाया जाए? समस्या ये भी थी। रीवा और नुसरत दोनों को ही एस्ट्रोनॉट यानी खगोलशास्त्री बनना था। मगर मम्मियों का भी सवाल सही था। दोनों की ही मम्मियां बहुत पढ़ी-लिखी थीं और उन दोनों को ही बच्चों की देखभाल के लिए अपनी-अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी थी। दोनों मम्मियों का कहना था कि जब उन्हें नौकरी छोड़कर केवल घर का ही काम करना है तो क्यों इतना पढ़ाना? रीवा को समझ नहीं आ रहा था कि वह मम्मी को कैसे समझाए? मम्मी क्यों नहीं समझतीं कि समय बदल रहा है! अब लड़कियां कल्पना चावला बन रही हैं। अब तो उसकी ग्यारहवीं की परीक्षा आने वाली थी और उसमें उसे अच्छे अंक लाने थे।


इसी बीच मम्मी की एक सहेली उनसे मिलने आईं। मम्मी की बचपन की सहेली इस समय एसडीएम थीं और उनकी बेटी भी उसके स्कूल में पढ़ने आने वाली थी। उनकी बेटी भी रीवा के बराबर ही थी और वह भी उतनी ही कुशाग्र थी। रीवा को बहुत अच्छा लगा। उसे लगा उसके साथ ही उसकी मां के लिए भी एक सहेली आ गयी। ‘तो रीवा, क्या करने का मन है तुम्हारा?’ आंटी ने चाय पीते हुए पूछा। ‘आंटी, मैं तो अंतरिक्ष की गहराइयां मापना चाहती हूं।’ रीवा की आवाज में उत्साह छलक रहा था। ‘वाह, बहुत अच्छा! तो बारहवीं के बाद की तैयारी अभी से ही करना।’ आंटी ने उसे सलाह दी। ‘अरे, क्यों बेटियों को इतना पढ़ाना, नेहा! तुमने देखा नहीं कि मैं कुछ नहीं कर पाई, घर में बैठी हूं। नौकरी छोड़नी पड़ी।’ रीवा की मम्मी ने टोकते हुए कहा। ‘अरे, कैसी बात करती हो, मुझे देखो! और तुम्हें याद है अंजू, जिसका हम लड़कियां सबसे ज्यादा मजाक उड़ाती थीं, जिसका मुंह टेढ़ा था?’आंटी बोलीं।
‘हां! वही न! जिस पर हम सबसे ज्यादा चुटकुले बनाते थे!’ रीवा की मम्मी ने चाय का कप नीचे रखते हुए कहा। ‘तुम्हें पता है। वह एक बहुत बड़ी राइटर बन गयी है और महिलाओं के मुद्दे पर बोलने के लिए उसे विदेशों से भी बुलावा आता है!’ आंटी व मम्मी में पुरानी बातें हो रही थीं। ‘सच में!’ मम्मी की आंखें चौड़ी हो गईं। ‘और नहीं तो क्या!’ मैं तो कहती हूं कि तुम भी कुछ कर लो!’ आंटी रीवा की मम्मी को समझा रही थीं। ‘अब मैं क्या कर सकती हूं?’ मम्मी की बातों में हताशा झलक रही थी। ‘देख यार, जब अंजू अपनी कमी से आगे बढ़कर इतना नाम कर सकती है, तो तुम क्यों नहीं?’ आंटी ने मम्मी को समझाया। ‘हां, मम्मी आप भी बहुत कुछ कर सकती हैं!’ रीवा ने मम्मी से कहा। रीवा को लग रहा था कि आंटी बहुत ही सही समय पर आई हैं। उसे लगा जैसे भगवान ने आंटी को
उसकी मदद के लिए ही भेजा था। ‘मम्मी, आंटी ने तो नौकरी नहीं छोड़ी! फिर आपने?’ रीवा ने मम्मी से पूछा। रीवा की मम्मी कुछ समझ नहीं पा रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने बहुत कुछ अपने मन में ही कहीं दबा रखा था। पापा ने कितना समझाया था कि घर में ही बैठकर कुछ कर लो, मगर जब से उन्होंने नौकरी छोड़ी थी, तब से एक कुंठा में चली गई थीं और उन्हें लगता था जैसे उनके लिए राहें समाप्त हो गईं। मगर आज उनकी सहेली ने आकर उन्हें जैसे झकझोर दिया है। उन्हें याद है कैसे वे सब मिलकर अंजू को टेढ़ा मुंह, टेढ़ा मुंह बोलकर चिढ़ाती थीं। और वह बेचारी चुपचाप बैठी रहती थी। जब उन सब की नौकरी लगी, तब तक उसकी शादी हो गयी थी। मगर आज वह राइटर और एक्टिविस्ट बन गयी थी। ‘जब वह इतना कर सकती है तो उनमें क्या कमी है?’‘क्या सोच रही हो?’ रीवा के पापा ने रीवा की मम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा। ‘आज मम्मी की सहेली मिलने आई थीं। पता है पापा, वह एसडीएम हैं। सबसे अच्छी बात यह कि अब उनकी बेटी भी मेरे साथ ही पढ़ेगी!’ रीवा ने पापा को पानी देते हुए खुशी से उछलते हुए बताया। ‘अरे वाह!’ पापा को बहुत खुशी हुई। वह खुद चाहते
थे कि रीवा की मां ऐसी महिलाओं के साथ रहें। वह उन्हें उदास या कुंठित नहीं देख सकते थे। रीवा की मम्मी बहुत कुछ सोच रही थीं। बार-बार उनके जेहन में अंजू का टेढ़ा मुंह और आज का उसका स्टेटस घूम रहा थाअंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त राइटर! और वह? ‘मम्मी, क्या सोच रही हैं?’‘कुछ नहीं! मैं सोच रही हूं कि हम औरतों को अपनी कीमत खुद पहचाननी चाहिए! हम मां हैं, बहन हैं, पत्नी हैं, मगर सबसे बढ़कर हम सपनों से भरपूर इंसान हैं! अपनी कीमत खुद न पहचानने के कारण ही हम अपनी लड़ाई हारते हैं।’ रीवा के कंधे पर हाथ रखकर कुछ
संभलते हुए उन्होंने कहा। ‘जी मम्मी!’ रीवा ने उनका हाथ हौले से दबाया। ‘सुनो, मुझे ब्लॉग बनाना सिखा देना और उस पर सबसे पहला ब्लॉग खगोलविज्ञान पर होगा!’‘ओह, मम्मी! आप ग्रेट हैं!’ कहती हुई रीवा अपनी मम्मी के गले लग गई।
गीताश्री

अभ्यास प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर
संस्कारशाला की परीक्षा का अभ्यास करें...
1. हम अपनी कीमत कैसे पहचान सकते हैं?
2. क्या हमें अपनी कीमत के लिए दूसरों पर निर्भर रहना चाहिए?
3. महिलाओं में आत्मसम्मान कैसे वापस आ सकता है

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