पत्तल दोनों की दीवानी हो रही है दुनिया
पत्तल-दोने में भोजन करने की रवायत, पर ईकोफ्रेंडली होने के कारण विदेशों में शुरू हो रहे हैं इसके स्टार्टअप। बढ़ती मांग की वजह से वे खुद इन्हें बना भी रहे हैं और भारत से मंगा भी रहे हैं...
भले ही भारत में खत्म हो रही है पत्तल-दोने में भोजन करने की रवायत, पर ईकोफ्रेंडली होने के कारण विदेशों में शुरू हो रहे हैं इसके स्टार्टअप। बढ़ती मांग की वजह से वे खुद इन्हें बना भी रहे हैं और भारत से मंगा भी रहे हैं...
यूं तो वर्तमान समय में युवक-युवतियां उच्च अध्ययन के लिए विदेश जाते हैं, मगर इस बीच मजेदार खबर यह आई है कि भारतीय पत्तल-दोने भी अब विदेश जाने लगे हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि कुछ कर्मकांडों को छोड़ दें तो पत्तल-दोने हमारे देश से लगभग चलन के बाहर हो गए हैं लेकिन विदेशों में इन्हें पॉजिटिव लाइफस्टाइल के रूप में हाथों-हाथ लिया जा रहा है।
पर्यावरण की चिंता
आसानी से डिस्पोज होने वाले इन ईको-फ्रेंडली दोने-पत्तलों का चलन यूरोपीय देशों में तेजी से बढ़ा है। जर्मनी में तो पत्तलों को नेचुरल लीफ प्लेट्स कहकर इनका भरपूर उत्पादन हो रहा है। प्रदूषण के प्रति जागरूक लोग तुरंत गलने वाले नेचुरल पत्तलों का प्रयोग रेस्त्रां में भी करने लगे हैं। यह प्रथा इसलिए अपनाई जा रही है क्योंकि डिस्पोजेबल बर्तन स्वास्थ्य तथा पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हैं। एक तरफ थर्मोकोल-प्लास्टिक डिस्पोजेबल के इस्तेमाल से प्रकृति को भारी नुकसान होता है लेकिन प्राकृतिक पत्तल कुछ ही दिन में गल जाते हैं। पत्तल के इस्तेमाल से भोजन का स्वाद भी बढ़ जाता है। एक अंतर्राष्ट्रीय स्टार्टअप कंपनी लीफ रिपब्लिक ने इनका प्रचार और प्रोडक्शन शुरू किया है तो वहीं यूरोप के बडे़ होटलों ने भारत से दोने-पत्तलों का आयात शुरू किया है।
अनगिनत हैं लाभ
यूरोप के कुछ बड़े होटलों के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, होटल इंडस्ट्री में नए क्रेज की शुरुआत के चलते डिकंपोज होने वाले पत्तलों का ट्रेंड बढ़ा है। पत्तल पर्यावरण को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं। खाने के बाद पत्तलों को धोना नहीं पड़ता। इन्हें सीधे मिट्टी में दबा सकते हैं। इनसे अपने-आप जैविक खाद का निर्माण हो जाता है।
खतरनाक हैं डिस्पोजेबल
दोने-पत्तल में भोजन करने से जहां उत्तम स्वास्थ्य मिलता है वहीं पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है। भारत में जबसे विभिन्न समारोहों में बुफे पार्टी का प्रचलन आया है तभी से पत्तलों का प्रयोग बंद हो गया है। डॉक्टरों की मानें तो थर्माकोल अथवा स्टायरोफोम के बने डिस्पोजेबल में भोजन करने से उसमें उपस्थित रासायनिक पदार्थ खाने में मिलकर पाचन क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जिससे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इससे त्वचा संबंधी बीमारियां तथा कैंसर भी हो सकता है।
तेजी से बढ़ी मांग
यूरोपीय देशों में पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की वजह से पत्तियों तथा पौधों के अंशों से तैयार बर्तनों की काफी मांग है। इन्हें खास तरह से प्रोसेस करके वुडेन टच वाले बर्तन (लीफवेयर) बनाए
जाते हैं, जिनका टेक्सचर कुछ-कुछ माचिस की तीली की लकड़ी या कहें तो भारत में इस्तेमाल होने वाले चाट के चम्मच की तरह का होता है। इसके साथ ही लीफ रिपब्लिक ने तो अपने स्टार्टअप के माध्यम से विशुद्ध पत्तों से बने दोने-पत्तलों को बाजार में उतार दिया है। इनकी बिक्री में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। आलम यह है कि डिमांड पूरी करने में कंपनी को काफी पसीना बहाना पड़ रहा है। यह जर्मन कंपनी जो प्लेट्स बना रही हैं वो तीन परतों में बनती हैं। इनमें ऊपरी और निचली परत पत्तों की होती है। बीच की परत का मैटेरियल गत्ते जैसा होता है। इससे बनने वाली प्लेट वाटरपू्रफ होने के साथ ही माइक्रोवेव में भी उपयोग लाई जा सकती है। इन्हें एक साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। यूज होने के बाद इन्हें कहीं भी डिकंपोज होने के लिए डाल दिया जाता है और एक महीने में ही ये गलकर डिकंपोज हो जाते हैं!
पहचान है केले का पत्ता
भारत में दोने-पत्तल बनाने और इनमें भोजन करने की परंपरा कब शुरू हुई इसका कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है लेकिन प्राचीन दक्षिण भारतीय ग्रंथों में केले के पत्तों पर भोजन करने की परंपरा का जिक्र मिलता है। आज भी वहां कोई भी सांस्कृतिक, धार्मिक या सामाजिक उत्सव इनके बिना पूरा नहीं हो सकता। समारोह में आने वाले अतिथियों को इन पत्तलों में ही भोजन परोसा जाता है और अब तो यह देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए विशुद्ध दक्षिण भारतीय भोजन का प्रतीक हैं!
औषधि मानता है आयुर्वेद
जिन पत्तों से पत्तल बनते हैं, उनमें ढेरों औषधीय गुण होते हैं। कहा जाता है कि पलाश के पत्तल में भोजन से सोने के बर्तन में भोजन करने जैसा लाभ मिलता है और केले के पत्तल में भोजन से चांदी के बर्तन में भोजन जैसा लाभ मिलता है। खून की अशुद्धता की वजह से होने वाली बीमारियों में पलाश के पत्तल बहुत उपयोगी माने गए हैं। पाचन तंत्र संबंधी रोग में ये बहुत उपयोगी होते हैं। मान्यता है कि सफेद फूलों वाले पलाश वृक्ष के पत्तों से तैयार पत्तल पर भोजन करने से बवासीर के मरीजों को लाभ होता है। इसी प्रकार लकवाग्रस्त मरीजों को अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तल में और जोड़ों के दर्द से परेशान मरीजों को करंज की पत्तियों से बनने वाली पत्तलों में भोजन खाने की सलाह दी जाती है।
बिस्फिनोल नामक रसायन होता है थर्माकोल अथवा स्टायरोफोम प्रॉडक्ट्स में जिसका सीधा असर पड़ता है छोटी आंत पर..
प्रसाद की परंपरा
इस वर्ष आध्यात्मिक नगरी इलाहाबाद में आयोजित हुए माघ मेले में भंडारे में पत्तल-दोने और पेपर प्लेट में ही भोजन परोसने का था प्रावधान। वहां डिस्पोजेबल का प्रयोग करने वाली संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए गए थे।
-नवीन जैन
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