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वैश्विक मंच पर ‘भारतीय ब्रांड’

प्राचीन काल में वही शासक एवं शासन तंत्र सबसे ताकतवर माना जाता था, जिसके पास सर्वाधिक योद्धा और सैनिक होते थे। यह सोच और समझ कालांतर में भारतीय समाज में भी देखी गई।

By Mahendra MisraEdited By: Published: Fri, 24 Jul 2015 11:52 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2015 02:42 PM (IST)
वैश्विक मंच पर ‘भारतीय ब्रांड’

प्राचीन काल में वही शासक एवं शासन तंत्र सबसे ताकतवर माना जाता था, जिसके पास सर्वाधिक योद्धा और सैनिक होते थे। यह सोच और समझ कालांतर में भारतीय समाज में भी देखी गई। यह भी एक धारणा है कि यद्यपि मनुष्य खाने के लिए एक मुंह के साथ धरती पर जन्म लेता है, तथापि काम करने के लिए उसके दो हाथ और दो पैर भी होते हैं। 20 वीं शताब्दी में औद्योगिकीकरण तथा तीव्र मशीनीकरण के चलते आधुनिक युग में जनसंख्या को बोझ समझा जाने लगा है। माना जाने लगा कि एक-एक मशीनें ही सौ-सौ लोगों का काम अकेले कर देती हैं। ऐसे में अधिक जनसंख्या विकास के लाभों से देश को वंचित कर देती है। आज पुनरू देश के विकास में जनसंख्या के महत्व को स्वीकार किया जाने लगा है। वास्तव में जनसंख्या का केवल नकारात्मक पक्ष ही नहीं होता है, बल्कि इसका एक रचनात्मक और सकारात्मक पक्ष भी होता है।
वैश्विक इतिहास का उदाहरण यह सिद्ध करता है कि विश्व में वही राष्ट्र महाशक्ति के रूप में जाने और माने गए हैं, जिनके पास पर्याप्त जनसंख्या बल रहा है। आज भी विश्व में अमेरिका और चीन इसी लिए महाशक्ति के रूप में जाने जाते हैं, क्योंकि इन राष्ट्रों के पास पर्याप्त एवं सक्षम जनसंख्या बल है। विश्व के कई यूरोपीय, अमेरिकी देश हैं, जो बहुत अधिक समृद्ध, खुशहाल और विकसित हैं, तथापि इनको वैश्विक महाशक्ति का दर्जा मात्र इसीलिए प्राप्त नहीं हो सका है, क्योंकि इनकी जनसंख्या बहुत कम है। नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देश आज विश्व में अपनी समृद्धि और खुशहाली के लिए जाने जाते हैं, परंतु इन राष्ट्रों को वैश्विक महाशक्ति का दर्जा प्राप्त नहीं है।
भारत जनसंख्या बल की दृष्टि से बहुत अधिक सक्षम है। आवश्यकता है, तो मात्र अपने विशाल मानव संसाधन के उचित नियोजन और उसे रचनात्मक रूप से राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाने की। जनसंख्या के बल पर भारत, विश्व में अपनी शक्ति को सिद्ध कर सकता है। बस उसे अपने प्रत्येक नागरिक को रोजगार और कौशल से युक्त करना होगा। इसी के बूते हम वैश्विक मंच पर ‘भारतीय ब्रांड’ की पताका फहराएंगे। भारतीय शिक्षक, इंजीनियर, आईटी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, पेशेवर आज संपूर्ण विश्व में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं। इस प्रतिभा का भविष्य में यथोचित लाभ भारत को मिलना चाहिए।
‘फिक्की’ के एक अध्ययन के अनुसार वर्तमान में भारत एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहां पर वह अगले कई दशकों तक प्रचुर आर्थिक लाभ लेने की स्थिति में है। बड़ी जनसंख्या और तेज वृद्धि दर ने एक ऐसा जनसांख्यिकीय पिरामिड तैयार कर दिया है जिसका लाभ देश-दुनिया को कई दशकों तक मिलता रहेगा। 2015 के बाद जहां जनसांख्यिकीय खूबियों से मिलने वाला लाभ चीन को कम होता जाएगा, वहीं भारत को 2040 तक इसका लाभ मिलते रहने का अनुमान है। कार्यशील जनसंख्या का बढ़ता अनुपात श्रम उत्पादकता को बढ़ाने का मौका साबित हो सकता है। घरेलू उत्पादन में वृद्धि हो सकती है। सेवाओं से मिलने वाला राजस्व कई गुना बढ़ सकता है। बचत में वृद्धि और कार्यशील जनसंख्या पर आश्रित बुजुर्गों और बच्चों का बोझ घटने से उनकी आय का ज्यादा हिस्सा अर्थव्यवस्था के सकारात्मक पक्षों में लगेगा।
भारत में लगभग 93 प्रतिशत श्रमशक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करती है। श्रमशक्ति के इस बड़े हिस्से का औपचारिक कौशल विकास तंत्र से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। मुश्किल से 2.5 प्रतिशत असंगठित श्रमशक्ति ही भारत में औपचारिक कौशल विकास कार्यक्रम से जुड़ी हुई है। इसी तरह संगठित क्षेत्र की 11 प्रतिशत श्रमशक्ति का ही औपचारिक स्तर पर कौशल विकास हो पाता है। इसी तरह असंगठित क्षेत्र में 12.5 प्रतिशत श्रमशक्ति और संगठित क्षेत्र की 10.4 प्रतिशत श्रमशक्ति का ही अनौपचारिक कौशल विकास हो पाता है।
भारतीय श्रमशक्ति के संदर्भ में कतिपय सकारात्मक तथ्य भी सामने आ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025 तक 20 करोड़ अंग्रेजी बोलने और समझने वालों की संख्या के साथ भारत, विश्व की सबसे बड़ी श्रमशक्ति बन जाएगा। इस अवधि के दौरान हम अपने कौशल विकास कार्यक्रमों के बल पर 4.7 करोड़ कुशल श्रमशक्ति तैयार कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि इसी समयावधि के दौरान विश्व में 5.65 करोड़ कुशल कामगारों की बड़ी कमी होगी। यह कमी भारत के कुशल श्रमशक्ति से पूरी की जा सकेगी। 2025 तक भारत की जनसंख्या 1.4 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। उस दौरान जो जनसंख्या पिरामिड होगा, उसमें 15-64 आयु वर्ग का सर्वाधिक विस्तार होगा। इसके साथ ही भारत में कार्यशील जनसंख्या 2011 में 76.1 करोड़ के मुकाबले बढ़कर 2020 में 86.9 करोड़ होगी।
वर्ष 2020 तक भारत को जनसांख्यिकीय वृद्धि का लाभ प्राप्त होता रहेगा। इस कालखंड में कार्यशील जनसंख्या की वृद्धि दर कुल जनसंख्या की वृद्धि दर से अधिक होगी। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि हमारे इस संसाधन में युवा और कार्यशील जनसंख्या की हिस्सेदारी लगातार विस्तार ले रही है। फिलहाल भारत में कार्यशील जनसंख्या के ऊपर निर्भर बच्चों (0-14) और बुजुर्गों (65-100) का अनुपात घटकर 0.55 रह गया है। भारतीय शहरों में प्रजनन दर में तेजी से गिरावट के चलते ग्रामीण भारत शहरी क्षेत्र की अपेक्षा अधिक युवा होता जा रहा है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में 24 से कम आयुवर्ग की जनसंख्या 51.73 प्रतिशत है, जबकि शहरों में इस आयुवर्ग की जनसंख्या 45.9 प्रतिशत है।

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