आइटीओ से चिड़ियाघर वाया रवींद्र भवन
1947 के बाद राजधानी में स्वतंत्र भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनेक इमारतों का निर्माण होना था। वास्तव में चुनौती बड़ी थी।
नई दिल्ली सन् 1911 में देश की राजधानी बनी तो इधर अनेक गोरे आर्किटेक्ट आए। उन्होंने 1947 तक राजधानी में शानदार और भव्य सरकारी और गैर-सरकारी इमारतों के डिजाइन तैयार किए। 1947 के बाद राजधानी में स्वतंत्र भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनेक इमारतों का निर्माण होना था। वास्तव में चुनौती बड़ी थी। तब हबीब रहमान, अच्युत कनविंदे, राज रावल जैसे नौजवान और उत्साह से लबरेज वास्तुकारों ने जिम्मेदारी संभाली। ये सब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के मार्गदर्शन में काम कर रहे थे।
हबीब रहमान (1915-1999) कलकत्ता से दिल्ली आए। उन्होंने इधर सरकारी कालोनियों से लेकर सरकारी भवनों के डिजाइन तैयार किए। उन्होंने 1961 में रवींद्र भवन का डिजाइन बनाया। उनके लिए राजधानी का यह पहला बड़ा प्रोजेक्ट था। इधर ही है ललिता कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी तथा साहित्य अकादमी। फिरोजशाह रोड पर स्थित रविंद्र भवन को देखकर आप तुरंत कहेंगे कि इसके डिजाइन में परंपरा के साथ भविष्य के भारत की झलक मिलती है।
नेहरू जी ने रवींद्र भवन के पहले डिजाइन को खारिज कर दिया था क्योंकि उसमें किसी सरकारी दफ्तर का
पुट नजर आ रहा था। हबीब रहमान ने फिर एक और डिजाइन बनाया। इसमें हबीब ने खासकर जालियों के
लिए जगह रखी। रवींद्र भवन का डिजाइन तुगलक परंपरा से प्रभावित रखा गया।
हबीब रहमान ने ही आइटीओ पर स्थित एजीसीआर बिल्डिंग और इंद्रप्रस्थ भवन, संसद मार्ग पर डाक तार भवन, चिड़ियाघर, पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद तथा मौलाना आजाद की मजारों के भी डिजाइन तैयार किए। आप समझ सकते हैं कि उनके काम में कितनी विविधता रही। वे विजनरी वास्तुकार थे। उन्होंने आर्किटेक्ट की दुनिया की नई व्याकरण लिखी। वे आर्किटेक्ट के साथ-साथ इंजीनियर और संगीत प्रेमी भी थे। प्रसंगवश बता दें कि उनकी पत्नी इंद्राणी रहमान ने कुचिपुड़ी नृत्य के क्षेत्र में खासी ख्याति अर्जित की।
जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की फैकल्टी आफ आर्किटेक्चर के डीन प्रो एसएम अख्तर ने हबीब रहमान, दि आर्किटेक्ट आफ इंडिपेंडेंट इंडिया पुस्तक में लिखा है कि भारत को एक आधुनिक स्वतंत्र देश से शक्तिशाली गणतंत्र बनाने में उनका बेमिसाल योगदान रहा। हबीब रहमान सदैव नया करते रहे। उन्होंने वास्तुकारों की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया।
हबीब ने ही राजघाट के डिजाइनर वानु भुटा का चयन किया था। ये बात हैं 1956 की जब राजघाट का डिजाइन तैयार करने के लिए देशभर के वास्तुकारों ने अपने प्रस्ताव केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के पास भेजे थे। तब हबीब रहमान सीपीडब्ल्यूडी के अध्यक्ष थे। उन्होंने ही सब वास्तुकारों के प्रस्तावों को परखने के बाद वानु भुटा के नाम पर मुहर लगाई थी। उसके बाद वानु ने राजघाट के डिजाइन को हबीब साहब की देखरेख में तैयार किया था। हबीब साहब का भारत प्रेम असाधारण था। उन्हें विदेश से काम करने के प्रस्ताव आते रहे, लेकिन उन्होंने कभी भारत को नहीं छोड़ा।
विवेक शुक्ला
लेखक व इतिहासकार