इंडस्ट्री के साथ इंटर्नशिप
प्रोफेशनल कोर्सेज की पढ़ाई के आखिरी सालों में अगर इंटर्नशिप प्रोग्राम के तहत स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ कर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाए, तभी स्टूडेंट्स इंडस्ट्री की जरूरतों के मुताबिक स्किल्ड बन सकेंगे। इस दिशा में जल्द कदम उठाकर ‘स्किल इंडिया’ की तरफ बढ़ा जा सकता
प्रोफेशनल कोर्सेज की पढ़ाई के आखिरी सालों में अगर इंटर्नशिप प्रोग्राम के तहत स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ कर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाए, तभी स्टूडेंट्स इंडस्ट्री की जरूरतों के मुताबिक स्किल्ड बन सकेंगे। इस दिशा में जल्द कदम उठाकर ‘स्किल इंडिया’ की तरफ बढ़ा जा सकता है। क्यों जरूरी है एजुकेशन सिस्टम में इस तरह का बदलाव लाना, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...
बारहवीं के बाद जब महेंद्र कुमार जेईई क्वालिफाई नहीं कर सके, तो दोस्तों का अनुकरण करते हुए बीटेक के लिए आगरा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिया। चूंकि जेईई की तैयारी में उन्होंने एक साल ड्रॉप कर दिया था, इसलिए पेशेंस जवाब दे रहा था। ऐसे में कॉलेज के बारे में उन्होंने ज्यादा जांच-पड़ताल नहीं की। उन्हें लगता था कि कॉलेज दिल्ली के नजदीक है और अगर पढ़ाई ठीक-ठाक होती है, तो नौकरी तो आसानी से मिल ही जाएगी। धीरे-धीरे चार साल बीत गए। आखिरकार उन्होंने आइटी से बीटेक पूरा कर लिया। कोर्स पूरा करने के बाद उत्साह के साथ दिल्ली की ओर कूच किया। धीरे-धीरे जब छह महीने बीत गए, तब अहसास होने लगा कि जो डिग्री लेकर वे आए हैं, सिर्फ उसके भरोसे कोई नौकरी नहीं मिलने वाली।
फिर भी वे प्रयास करते रहे। आखिरकार जब उन्हें कोई भी जॉब नहीं मिली, तो मजबूरी में मार्केट की जरूरत के अनुसार डिजिटल मार्केटिंग का दो महीने का कोर्स कर लिया। इसे पूरा करते ही उन्हें एक ऐसी आइटी कंपनी में 10 हजार रुपये महीने की सैलरी पर काम मिल गया, जो बड़ी कंपनियों के लिए काम करती थी। हालांकि वहां उन्हें दस से बारह घंटे काम करने पड़ते थे। वहां उन्हें मार्केट की रिक्वॉयरमेंट के मुताबिक काम सीखने को मिल गया। छह माह बाद ही उन्होंने पंद्रह हजार रुपये की सैलरी पर दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली। करीब एक-डेढ़ साल तक मार्केट को समझने के बाद महेंद्र ने डिजिटल मार्केटिंग की अपनी कंपनी खोल ली।
पहचान की तलाश
बारहवीं के बाद आगे की राह को लेकर कुछ स्टूडेंट दुविधा में होते हैं, तो स्पष्ट लक्ष्य रखने वाले उत्साह से भरे भी होते हैं। हालांकि सभी अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। दुविधा के शिकार भी सही राह की तलाश के लिए व्याकुल होते हैं। हर कोई आइआइटी, जेएनयू, डीयू या इनके समकक्ष नामी संस्थानों में प्रवेश नहीं ले पाता, पर पढ़ाई तो सभी को करनी होती है। ऐसे में मनपसंद राह पर आगे बढ़ने के लिए वे अपनी पहुंच के अनुरूप कोर्स-कॉलेज चुनते हैं।
परीक्षा पास करने पर जोर
आज जबकि देश और दुनिया लगातार बदलाव के दौर से गुजर रही है, हमारे अधिकतर संस्थानों द्वारा अपने सिलेबस में कोई बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में टीचर सिलेबस पर आधारित कोर्स पढ़ाकर ही अपने कर्तव्य को पूरा हुआ समझ लेते हैं। स्टूडेंट का पूरा जोर परीक्षा पास करने पर होता है, न कि अपनी नॉलेज बढ़ाने पर। प्रैक्टिकल ट्रेनिंग न होने से इंडस्ट्री के लिए वह बिल्कुल जीरो स्किल वाला व्यक्ति होता है, जिसे नौकरी देने में इंडस्ट्री की कोई दिलचस्पी नहीं होती।
इंडस्ट्री से टाइ-अप
देश के हर स्टूडेंट को, हर युवा को स्किल्ड बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार/संस्थानों को पहल करके करिकुलम में बदलाव लाना होगा। इसमें थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल पर जोर बढ़ाना होगा। इसके लिए संस्थानों में लैब को तो अत्याधुनिक बनाना ही होगा, साथ ही इंडस्ट्री के साथ टाइ-अप करके तीसरे-चौथे साल में स्टूडेंट्स को उनके साथ काम करना अनिवार्य करना होगा। इसे इंटर्नशिप का नाम दिया जा सकता है। हालांकि अभी रस्मी तौर पर ऐसे इंटर्नशिप की अवधि एक-दो माह ही होती है। इस इंटर्नशिप की अवधि को बढ़ाकर डेढ़ साल किया जा सकता है। किसी भी तरह से यह छह महीने से कम न हो। अगर कोई आइटी ब्रांच का स्टूडेंट है, तो उसे आइटी कंपनी में और अगर सिविल इंजीनियरिंग का स्टूडेंट है, तो उसे किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ साइट पर काम करने के लिए भेजा जाना चाहिए। ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग करने वाले स्टूडेंट को ऑटो वर्कशॉप में भेजा जाना चाहिए।
बोलेगा कॉन्फिडेंस
जब स्टूडेंट अपने ब्रांच में इंडस्ट्री के बीच प्रैक्टिकल ट्रेनिंग लेंगे, तो उनका उसमें इंट्रेस्ट बढ़ेगा। थ्योरी की जानकारी पहले से होने से उन्हें काम करने में ज्यादा मजा आएगा और वे व्यावहारिक तकनीकी बातों को जल्दी सीखेंगे। असेंबलिंग, फॉल्ट ढ़ंढ़ने और उसे ठीक करने में वे परफेक्ट हो सकेंगे। इसके लिए न तो कॉलेज को ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे और न ही इंडस्ट्री को, क्योंकि स्टूडेंट अपनी फीस के पैसों से यह ट्रेनिंग ले रहे होंगे। अगर कोई स्टू्डेंट छह महीने से लेकर डेढ़ साल तक ऐसा प्रशिक्षण हासिल कर ले, तो वह एक ऐसा ट्रेंड इंजीनियर बन सकता है, जिसे कोई भी कंपनी तुरंत ज्वाइनिंग लेटर देना पसंद करेगी। स्किल्ड होने पर स्टूडेंट का कॉन्फिडेंस बोलेगा। उसे नौकरी ढ़ूंढ़ने के लिए इधर-उधर घूमना नहीं पड़ेगा, बल्कि पढाई पूरी होने से पहले ही उसके पास ऑफर लेटर होगा।
बेरोजगारी का जवाब
भारत जैसे विशाल देश में अक्सर भारी बेरोजगारी की बात की जाती है। हर साल इसमें लाखों युवा और जुड़ जाते हैं। दूसरी तरफ इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की बातों पर गौर करें, तो अर्से से वे यही कह रहे हैं कि उनके पास काबिल लोगों की कमी है। जितने स्किल्ड लोगों की उन्हें जरूरत होती है, उतने उन्हें मिलते नहीं। वे यह भी कहते हैं कि इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आने वाले अधिकतर युवा इतने स्किल्ड नहीं होते कि उनसे काम लिया जा सके। सवाल यह है कि जब हमारे यहां इंडस्ट्री को काबिल लोगों की लगातार जरूरत है, तो फिर अपने शिक्षा संस्थानों को क्यों नहीं इस तरह से विकसित किया जाता कि वहां से निकलने वाले पूरी तरह से ट्रेंड हो सकें।
* करिकुलम में बदलाव करके थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर फोकस बढ़ाया जा सकता है। इससे सही मायने में स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा मिलेगा।
* प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अगर इंडस्ट्री द्वारा दी जाए, तो यह ज्यादा कारगर होगी। इससे इंडस्ट्री अपनी जरूरत के मुताबिक स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग दे सकेगी।
* इस तरह से स्किल डेवलप होने के बाद युवाओं को नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा, बल्कि इंडस्ट्री उन्हें पहले ही नौकरी का ऑफर कर देगी।
* देश से बेरोजगारी दूर करने और ‘स्किल इंडिया’ बनाने के लिए इस तरह की पहल बेहद उपयोगी हो सकती है।