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बापू ने कहा था...

18 अप्रैल 1917 को गांधी जी ने मोतिहारी एसडीओ कोर्ट में जो वक्तव्य दिया, वह चंपारण सत्याग्रह का ऐतिहासिक दस्तावेज है। इससे गुजरते हुए तत्कालीन स्थिति का अनुभव प्राप्त होता है...

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 10 Apr 2017 05:07 PM (IST)Updated: Tue, 11 Apr 2017 08:59 AM (IST)
बापू ने कहा था...
बापू ने कहा था...

‘अदालत की आज्ञा से मैं संक्षेप में यह बताना चाहता हूं कि नोटिस द्वारा मुझे जो आज्ञा दी गई, उसकी अवज्ञा मैंने क्यों की? मेरी समझ में यह स्थानीय अधिकारियों और मेरे मध्य में मतभेद का प्रश्न है। मैं इस देश में राष्ट्रीय तथा मानवसेवा करने के विचार से आया हूं। यहां आकर उन रैयतों की सहायता करने के लिए, जिनके साथ कहा जाता है कि नीलवर साहब अच्छा व्यवहार नहीं करते। मुझसे बहुत आग्रह किया गया था पर जब तक मैं सब बातें अच्छी तरह नहीं जान लेता तब तक उन लोगों की कोई सहायता नहीं कर सकता था इसलिए मैं यदि हो सके तो अधिकारियों और नीलवरों की सहायता से सब बातें जानने के लिए आया हुआ हूं। मैं किसी दूसरे उद्देश्य से यहां नहीं आया हूं। मुझे यह विश्वास नहीं होता कि मेरे यहां आने से किसी प्रकार की शांतिभंग या प्राणहानि हो सकती है। मैं कह सकता हूं कि ऐसी बातों का मुझे बहुत कुछ अनुभव है।

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अधिकारियों को जो कठिनाइयां होती हैं, उनको मैं समझता हूं और मैं यह भी मानता हूं कि उन्हें जो सूचना मिलती है वे केवल उसी के अनुसार काम कर सकते हैं। कानून मानने वाले व्यक्ति की तरह मेरी प्रवृत्ति यही होनी चाहिए थी और ऐसी प्रवृत्ति हुई भी कि मैं इस आज्ञा का पालन करूं। पर मैं उन लोगों के प्रति, जिनके कारण से यहां आया हूं, अपने कर्तव्य का उल्लंघन नहीं कर सकता था। मैं समझता हूं कि मैं उन लोगों के बीच में रहकर ही उनकी भलाई कर सकता हूं। इस कारण स्वेच्छा से इस स्थान से नहीं जा सकता था। दो कर्तव्यों के परस्पर विरोध की दशा में केवल यही कर सकता था कि अपने को हटाने की सारी जिम्मेवारी शासकों पर छोड़ दूं।

मैं भलीभांति जानता हूं कि भारत के सार्वजनिक जीवन में मेरी जैसी स्थिति वाले लोगों को आदर्श उपस्थित करने में बहुत ही सचेत रहना पड़ता है। मेरा दृढ़विश्वास है कि जिस स्थिति में मैं हूं, उस स्थिति में प्रत्येक प्रतिष्ठित व्यक्ति को वही काम करना सबसे अच्छा है जो इस समय मैंने करना निश्चय किया है और वह यह है कि बिना किसी प्रकार का विरोध किए आज्ञा न मानने का दंड सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैंने जो बयान दिया है, वह इसलिए नहीं कि जो दंड मुझे मिलने वाला है, वह कम किया जाए। पर इस बात को दिखाने के लिए कि मैंने सरकारी आज्ञा की अवज्ञा इस कारण से नहीं की है कि मुझे सरकार के प्रति श्रद्धा नहीं है, बल्कि इस कारण से कि मैंने इससे भी उच्चतर आज्ञा- अपने विवेक- बुद्धि की आज्ञा का पालन करना उचित समझा है।

-जेएनएन

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