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खींचें बड़ी लकीर

किसी से आगे निकलना है, तो उसे नुकसान पहुंचाकर नहीं बल्कि बिना कोई दुराग्रह पाले पूरे उत्साह और कॉन्फिडेंस के साथ अपने प्रयासों को और ऊंचा उठाएं। लकीर को खुरचकर आप उसे छोटा नहीं कर सकते। हां, उसके बराबर एक बड़ी लकीर खींचकर उसे जरूर छोटा किया जा सकता है।

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 25 Nov 2014 01:23 AM (IST)Updated: Tue, 25 Nov 2014 04:41 AM (IST)
खींचें बड़ी लकीर

किसी से आगे निकलना है, तो उसे नुकसान पहुंचाकर नहीं बल्कि बिना कोई दुराग्रह पाले पूरे उत्साह और कॉन्फिडेंस के साथ अपने प्रयासों को और ऊंचा उठाएं। लकीर को खुरचकर आप उसे छोटा नहीं कर सकते। हां, उसके बराबर एक बड़ी लकीर खींचकर उसे जरूर छोटा किया जा सकता है। सतत कामयाबी के लिए क्यों जरूरी है बड़ी लकीर खींचने का प्रयास करना, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

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वह कुछ दिनों से बड़े अनमने से लग रहे हैं। रूटीन के अपने सभी काम तो निबटा रहे हैं, लेकिन मन ही मन उन्हें कुछ टूटा-सा लग रहा है। उनके भीतर एक कसक है, जिसे वह घर या ऑफिस में किसी से शेयर नहीं कर पा रहे। एक दिन मौका देख उन्होंने अपने एक करीबी और बेहद सुलझे मित्र से इस बात की चर्चा की। उन्हें बताया कि मैं अपने वर्तमान संस्थान से पिछले 15 सालों से बेहद समर्पण के साथ जुड़ा हुआ हूं। अल्प समय के लिए दूसरी कंपनी में भी गया, लेकिन फिर जैसे घर वापसी हो गई। मेरे काम के प्रोफेशनल व परफेक्ट तरीके और विनम्र स्वभाव से मैनेजमेंट, कलीग और क्लाइंट भी बेहद खुश रहते हैं। इतने लंबे समय में मुझे किसी से कभी कोई शिकायत नहीं रही, लेकिन पिछले कुछ समय से मुझे अजीब लग रहा है। शानदार रिकॉर्ड होने के बावजूद कंपनी ने मेरे ऊपर किसी अधिकारी को लाकर बिठा दिया है। वैसे तो मुझे कंपनी का हर निर्णय सहर्ष मंजूर होता है। किसी संवेदनशील मुद्दे पर मेरी राय की कभी अनदेखी भी नहीं की जाती, लेकिन पहले जहां मैं हर निर्णय खुद लेने के लिए स्वतंत्र होता था, वहीं अब मुझे हर बात के लिए परमिशन लेने की जरूरत पड़ती है। मेरी खिन्नता का कारण भी यही है। हालांकि इससे मेरे परफॉर्मेंस पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। हां, उत्साह जरूर थोड़ा कम हो गया है।

बदलाव को स्वीकारें

इस तरह की समस्या कोई नई नहीं है। हर संस्थान में कभी न कभी इस तरह की परिस्थिति का सामना काबिल और उत्साही कर्मचारियों को करना पड़ता है। आप कह सकते हैं कि बिजनेस तो आसानी से आ ही रहा था, फिर इस तरह के हस्तक्षेप का क्या मतलब है? दरअसल, परिस्थितियां कभी एक जैसी नहीं रहतीं, लेकिन किसी भी बदलाव को सकारात्मक नजरिए से देखने पर वह दुखी नहीं करता। एक जैसी स्थिति बने रहने से आप कंफर्ट जोन में रहते हुए बिना किसी व्यवधान के अपने तरीके से काम करते जाते हैं, लेकिन आप खुद को किसी कंपनी के ऐसे कोर ग्रुप में रखकर देखें, जिस पर लगातार बिजनेस बढ़ाने का दबाव होता है। तब आपको लगेगा कि नहीं, मैं ही गलत था। अगर मैं मैनेजमेंट में होता, तो शायद मैं भी यही करता। इसलिए किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहें और उसे हमेशा पॉजिटिव नजरिए से देखें।

न करें रुकावट की परवाह

हो सकता है कि परिस्थितियां बदलने से आप अपना पेशेंस खो दें। अपना आपा खोते हुए अपने व्यवहार की विनम्रता और परफेक्ट परफॉर्मेंस का सिलसिला भी खुद तोड़ दें। जरा सोचें, अगर आपने ठंडे दिमाग से काम नहीं लिया, तो आपके इस रिएक्शन से किसका नुकसान होगा...। जाहिर है कि आपको ही होगा। क्या, रास्ते में कोई रोड़ा या गड्ढा आने से आप चलना छोड़ देंगे। नहीं न। फिर क्यों परेशान होते हैं। उस रोड़े या गड्ढे की परवाह किए बिना अपना सफर जारी रखें।

सामंजस्य बनाएं

हो सकता है कि बीच में किसी का आना या उसके प्रति जवाबदेह बना दिया जाना आपके स्वाभिमान को गवारा नहीं लग रहा हो, लेकिन ऐसे में क्या आप उसके साथ असहयोगी रवैया अपना सकते हैं? आप चाहें या न चाहें, उसके साथ सहयोग करना ही पड़ेगा। तो फिर क्यों न सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में बढ़ें। अगर आपको अपने टैलेंट पर भरोसा और खुद में पूरा कॉन्फिडेंस है, तो आप अपने काम से कुछ ऐसा कर दिखाएं, जिससे हर कोई वाह-वाह कहने को मजबूर हो जाए।

खुरचें नहीं, खींचें बड़ी लकीर

अगर कोई आपके सामने एक लकीर खींचकर यह सवाल करे कि इस लकीर को छोटा कैसे किया जा सकता है, तो हो सकता है आप में से बहुतेरे यह कहें कि इसमें क्या है और उस लकीर को इरेजर से मिटाने या खुरचने लगें...।

अब सवाल है कि क्या उस लकीर को छोटा करने का सिर्फ यही तरीका है? क्या इस विध्वंसकारी तरीके से आप में से हर कोई सहमत हो सकता है? नहीं न। तो फिर क्यों न इसे पॉजिटिव तरीके से लेते हुए अपनी थोड़ी विवेक-बुद्धि का इस्तेमाल कर लें। अगर उस लकीर को छोटा करना है, तो आप उसके बराबर एक बड़ी लकीर खींचकर पहले वाली लकीर को बिना हाथ लगाए छोटा कर सकते हैं। यही बात हम सबकी जिंदगी में भी लागू होती है।

नजरिए की जीत

आपकी प्रोफेशनल लाइफ में समय-समय पर रुकावटें या अवरोध आ सकते हैं। अगर आप इन्हें सकारात्मक नजरिए से नहीं देखेंगे, तो कदम-कदम पर परेशानी हो सकती है। लेकिन अगर आपने अपने सोचने और देखने का नजरिया बदल लिया, तो हर एक परेशानी या रुकावट को आप अपने लिए अवसर में भी बदल सकते हैं। बस, आप खुद को शांत और एकाग्र रखें। किसी भी सूरत में (चाहे कोई आपको उकसाने का प्रयास ही क्यों न करे) अपने प्रदर्शन को प्रभावित न होने दें। अपना सर्वश्रेष्ठ देने की निरंतरता बनाए रखें। आप देखेंगे कि एक न एक दिन वही अवरोध या रोड़ा आपकी राह में बिछकर आपके लिए कामयाबी की सीढ़ी बन जाएगा।

* प्रोफेशनल या रोजाना के जीवन में परेशानियों से कभी घबराएं नहीं।

* रास्ते में रुकावट आने से हैरान-परेशान होने की बजाय दूसरा रास्ता तलाशें।

* कभी भी संयम न खोएं और न ही कभी अपने व्यवहार में रूखापन लाएं।

* अपने परफॉर्मेंस की निरंतरता बनाये रखने का प्रयास करें।

* किसी को नुकसान पहुंचाकर आगे बढऩे की बजाय अपने काम और नेकनीयती से आगे का मार्ग प्रशस्त करें।

arunsrivastav@nda.jagran.com

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