Move to Jagran APP

ऐसे दोस्त, तो दुश्मनों की जरूरत क्या

किसी भी क्षेत्र में जब कानून व्यवस्था की स्थिति स्थानीय राज्य सरकार के लिए नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो यह स्वीकार करते हुए राज्य सरकार, केंद्र से सुरक्षा एवं सहायता की मांग करती है।

By MMI TeamEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 10:25 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2016 11:13 AM (IST)
ऐसे दोस्त, तो दुश्मनों की जरूरत क्या

किसी भी क्षेत्र में जब कानून व्यवस्था की स्थिति स्थानीय राज्य सरकार के लिए नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो यह स्वीकार करते हुए राज्य सरकार, केंद्र से सुरक्षा एवं सहायता की मांग करती है। संविधान की रक्षा और कानून व्यवस्था की बहाली सुनिश्चित करने के लिए ‘अफस्पा’ लागू किया जाता है। कालांतर में यदि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित हो जाता है कि अब राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में आ चुकी है और अब इस कार्य के लिए सेना की तैनाती की और अधिक आवश्यकता शेष नहीं रह गई है, तो स्थिति की समीक्षा कर सेना को हटाए जाने पर विचार किया जा सकता है। विश्व के सभी देशों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बेहद सतर्कतापूर्वक निर्णय लिए जाते हैं। भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े मुद्दों पर भी अनावश्यक राजनीति की जाती है। देश का कोई भी भूभाग यदि कानून एवं व्यवस्था की कमजोर होती स्थिति से जूझ रहा हो, तो उसके प्रति शेष राष्ट्र आंख मूंदकर नहीं रह सकता। भारत का संपूर्ण भूभाग अखंड रूप में सुरक्षित रह सके, इसके लिए समस्त प्रकार के आवश्यक कठोर फैसले करने में कोई संकोच नहीं किया जाना चाहिए।
कश्मीर के अलगाववादी संगठन ‘दुख्तरान-ए-मिल्लत’ की प्रमुख आशिया अंद्राबी ने राज्य में अलगाववादी गतिविधियों को धार देने के मकसद से पाकिस्तानी ध्वज फहराया था। पाकिस्तानी ध्वज फहराने के आरोप में अंद्रावी के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है। उल्लेखनीय है कि ‘दुख्तरान-ए-मिल्लत’ अलगाववादी संगठन हुर्रियत की महिला विंग है और राज्य में अलगाववादी गतिविधियों और पाकिस्तानपरस्ती को बढ़ावा देती रही है। आशिया अंद्राबी पर अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाए जाने का आरोप भी लगा है।
राज्य में नई गठबंधन सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद किसी प्रमुख अलगाववादी नेता के विरुद्ध एफआईआर दर्ज किए जाने का यह पहला मामला रहा है। आशिया अंद्राबी ने ‘यौम-ए-पाकिस्तान’ (पाकिस्तान डे) के अवसर पर डाउन टाउन के नौहट्टा इलाके में अनेक कार्यकर्ताओं के साथ पाकिस्तानी ध्वज फहराया था। अंद्राबी ने यहीं एक पाकिस्तान समर्थक रैली का आयोजन भी किया था और कश्मीर के पाकिस्तान में विलय पर जोर दिया था। इसके बाद ही पुलिस द्वारा राष्ट्रविरोधी कृत्य तथा विधि व्यवस्था को संकट पहुंचाने वाली गतिविधि में संलिप्त होने के आरोप में आशिया अंद्राबी के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है। आशिया अंद्राबी का कहना है कि ‘‘हम तो हर साल यहां ‘यौम-ए-पाकिस्तान’ मनाते हैं, क्योंकि बुनियादी तौर पर जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का ही हिस्सा है और हम जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के पक्षधर हैं। पाकिस्तान में विलय की मांग के आधार पर ही कश्मीरी नौजवानों ने हथियार उठाए हैं। पाकिस्तान का झंडा पहले भी फहराया जाता रहा है। अब अनावश्यक रूप से मीडिया द्वारा इस घटना को तूल दिया जा रहा है।’’
उल्लेखनीय है कि आशिया अंद्राबी के पति डॉ.कासिम पख्तू पिछले 23 वर्षों से जेल में ही बंद हैं। डॉ.कासिम पख्तू कट्टर आतंकी संगठन ‘जमायत-उल-मुजाहिद्दीन’ का प्रमुख कमांडर रहा है और यह ‘दीनी महाज’ नामक मजहबी व पाकिस्तानपरस्त अलगाववादी संगठन का मुखिया भी है। ‘दुख्तरान-ए-मिल्लत’ कश्मीर को भारत से अलग करने की मांग के साथ राज्य में अलगाववादी गतिविधियों तथा हिंसा को बढ़ावा देता रहा है। स्वयं आशिया अंद्राबी को देश में गैर कानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने, हिंसा फैलाने, राष्ट्रद्रोह तथा देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आरोप में पहले भी 28 अगस्त 2010 को गिरफ्तार किया गया था।
वर्ष 2013 में आशिया अंद्राबी के तीनों भतीजे भी आतंकी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने के कारण गिरफ्तार किए गए थे। स्पष्ट है कि कश्मीर राज्य में अलगाववादी संगठनों और पाकिस्तानपरस्त कथित नेताओं का दुस्साहस दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। यह आवश्यक है कि भारत सरकार तथा राज्य सरकार इस प्रकार की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का कठोरता से दमन करते हुए कश्मीर में शांति और व्यवस्था का वातावरण स्थापित करे।
एक लंबे समय से कश्मीर में सीमापार आतंकवाद और घुसपैठ जारी है। हमारे भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान और सुरक्षा बल प्रायः आतंकी हमलों और घुसपैठ की घटनाओं का जवाब देने मात्र को ही उचित कार्रवाई मान लेते हैं। पाकिस्तान द्वारा जान-बूझकर भारतीय सीमाओं पर आतंकी घटनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। उसके द्वारा लगातार घुसपैठ तथा उकसावे की कार्रवाइयां की जाती रही हैं। पाकिस्तान प्रेरित और समर्थित आतंकवाद का मुकाबला करने और आतंकी गतिविधियों को नाकाम करने में हजारों भारतीय सैनिक शहीद हो चुके हैं। स्पष्ट है कि भारतीय शहीदों के साथ छल किया जा रहा है और उनकी शहादत का स्पष्ट रूप से अपमान हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर में नई सरकार द्वारा कार्यभार संभालते ही आतंकियों की ओर से थानों सहित अनेक इलाकों में आतंकी व आत्मघाती हमले किए गए हैं। इस संदर्भ में राज्य सरकार और सुरक्षा बलों को कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से भारतीय सुरक्षा बल आतंकवाद को नाकाम करने में पूरी तरह सक्षम है, परंतु पिछले कुछ वर्षों में जान-बूझकर भारतीय सुरक्षा बलों का मनोबल गिराया गया है और उनके हाथ बांधे गए हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगे। ऐसा तभी होगा जब आतंकियों और उनके आकाओं को सख्त संदेश दिया जाएगा। यह काम राज्य सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर करना होगा।
यह ठीक नहीं कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद कठुआ में आतंकी हमले को गैर सरकारी तत्वों की कारगुजारी बता रहे हैं। यह न केवल पाकिस्तान की भाषा है, बल्कि उसे क्लीनचिट देने की भी कोशिश है। इसके पहले वह जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनावों के लिए पाकिस्तान समेत आतंकियों का भी शुक्रिया अदा कर चुके हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री इस साधारण सी बात से अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि सघन सुरक्षा वाले इलाके यानी सीमा पर कथित गैर सरकारी तत्व पाकिस्तानी सेना के सहयोग-समर्थन के बिना फटक नहीं सकते। आखिर ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान ने अपनी ओर सीमा रेखा खुली छोड़ रखी हो। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान से सहयोग की आस में मुफ्ती मोहम्मद सईद जिस तरह उसके प्रति अनावश्यक नरमी दिखा रहे हैं उसका कोई औचित्य नहीं बनता। सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ के मामले में वह भारत सरकार से अलग रुख अपनाकर समस्याएं बढ़ाने का ही काम करेंगे।कठुआ में थाने को निशाना बनाने वाले आतंकियों का मकसद कुछ भी रहा हो, यह सामने आना गंभीर बात है कि वे सीमा पार से ही आए थे। इससे सीमा की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। कश्मीर में पिछले कई आतंकी हमलों में आम तौर पर पुलिस और सेना के ठिकानों को ही निशाना बनाया गया है। यह ठीक है कि हर बार हमलावर ढेर किए गए, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनका मुकाबला करने में हमारे अनेक जवानों को शहादत भी देनी पड़ी है।
इसे गंभीर लापरवाही ही कहा जाएगा कि आतंकी बार-बार सीमा में सेंध लगाकर घुस आएं और फिर भी ऐसे प्रबंध न किए जा सकें, जिससे उनके लिए भारतीय सीमा में घुसना मुश्किल हो जाए। यद्यपि पाकिस्तान से लगती सीमा को पूरी तौर पर अभेद बनाना आसान काम नहीं है, लेकिन यह भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि आतंकी बार-बार नाले-नदियों के रास्ते हमारी सीमा में घुसकर कहर बरपा जाएं। जब तक आतंकियों को सीमा पर ही ढेर नहीं किया जाता, तब तक न तो उनके दुस्साहस का दमन किया जा सकता है और न ही उनके आकाओं को कोई सही संदेश दिया जा सकता है।

loksabha election banner

लेखक परिचय

नाम- पंकज के. सिंह


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.