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अच्छे आतंकी, बुरे आतंकी

पाकिस्तान की मौजूदा खतरनाक स्थिति को भूलना नहीं चाहिए। वहां राजनीति की कट्टरपंथी ताकतें लगातार मजबूत हो रही हैं। वह आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लगातार जूझ रहा है।

By MMI TeamEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2015 12:21 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2015 02:15 PM (IST)
अच्छे आतंकी, बुरे आतंकी

पाकिस्तान की मौजूदा खतरनाक स्थिति को भूलना नहीं चाहिए। वहां राजनीति की कट्टरपंथी ताकतें लगातार मजबूत हो रही हैं। वह आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लगातार जूझ रहा है। अफगानिस्तान से नोटो की विदाई के बाद आतंकवादियों का रुख भारत की ओर होगा। कट्टरपंथी राजनैतिक और आतंकी ताकतें पाकिस्तान का नाता दक्षिण एशिया के बजाय यमन और कट्टरपंथी देश के साथ जोड़ना चाहती हैं। इसलिए हमें पाकिस्तान को उसकी दक्षिण एशिया की पृष्ठभूमि याद दिलाते रहना चाहिए और उसके लिए वार्ता ही एक माध्यम है, लेकिन पाकिस्तान में सत्ता के कई केंद्र होने के कारण वार्ता से हासिल क्या होगा? यह सही है कि वहां की खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ और सेना के अलग केंद्र हैं, फिर हाल के दौर में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ राजनीतिक रूप से कमजोर भी हुए हैं। पाकिस्तान के वर्तमान हालात बेहद भयावह हैं। वहां कभी भी भूचाल आ सकता है, इसलिए भारत को अपनी ओर से तैयारी करनी ही होगी।
पाकिस्तान के शुभचिंतकों ने सोचा था कि पेशावर में आतंकी हमले के बाद उसकी आंखें खुलेंगी और वह सेना के आतंकी संगठनों के साथ अपने संपर्क को समाप्त करने के लिए कहेगा, लेकिन इसका उल्टा हुआ। पेशावर के हमले ने पाकिस्तान में सेना के हाथ और मजबूत किए हैं। वहां की सेना अभी भी अच्छे आतंकी, बुरे आतंकी की अपनी दोहरी नीति पर चल रही है। सेना ने पेशावर हमले का फायदा उठाकर राजनीति और न्यायिक ढांचे को और अधिक कमजोर कर दिया है। उसकी नीति यह है कि कथित बुरे आतंकियों के खिलाफ तो कार्रवाई की जा रही है, लेकिन जो आतंकी उसके अपने स्वार्थों के लिए फायदेमंद हैं, उनका भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है। सच तो यह है कि पाकिस्तान में सेना पेशावर हमले के पहले ही अपने हाथ मजबूत कर चुकी थी, लेकिन हमले के बाद जनरल ही सारे फैसले कर रहे हैं।
पाकिस्तान बहुत शातिर ढंग से संपूर्ण विश्व की आंखों में धूल झोंकने में लगा हुआ है। अमेरिका तथा पश्चिमी जगत व संयुक्त राष्ट्र, जिनसे वह भारी-भरकम सहायता राशि बटोरता है, उन्हें भी बरगलाने का कोई मौका वह नहीं चूकता। आतंकवाद और आतंकी संगठनों की पाकिस्तान में सक्रियता और बढ़ते प्रभाव के विषय में वह कभी भी सच नहीं बोलता। भारत के विरुद्ध वह प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सिर्फ और सिर्फ झूठ और जहर ही उगलता है। दाऊद इब्राहिम का पाकिस्तान में बने रहना और तमाम सुबूतों के बावजूद उसके खिलाफ कुछ कार्यवाही ना कर पाना भारत सरकार की एक दुखती रग ही है। इसे लेकर उत्साहित नहीं हुआ जा सकता कि अमेरिका ने दाऊद और भारत के लिए खतरा बने अन्य अनेक आतंकी तत्वों के खिलाफ कार्यवाही करने का समझौता किया था। समझौते के अनुरूप अभी तक कुछ होता नहीं दिख रहा है। उल्टे चिंता की बात यह है कि अमेरिका ने हाल में पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने के लिए एक मोटी रकम दी है। पाकिस्तान को दी गई इस आर्थिक सहायता के संदर्भ में इस बात का कहीं कोई हवाला नहीं दिया गया कि इस्लामाबाद को उन तत्वों के खिलाफ भी कार्यवाही करनी होगी जो भारत के लिए खतरा बने हुए थे। स्पष्ट है कि आतंकवाद को लेकर अमेरिका का दोहरा रवैया न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।
गोलीबारी की आड़ में पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के प्रयास में सदैव लगा रहता है। जब भारत इसकी शिकायत करता है, तो वह यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि वह तो खुद ही आतंक से जूझ रहा है। यद्यपि अब विश्व समुदाय पाकिस्तान के इस पाखंड और फरेब को बेहतर ढंग से समझने लगा है। एक तरफ तो पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ जंग के लिए अमेरिका से भारी आर्थिक सहायता लेता रहा है जबकि दूसरी तरफ बाकायदा नीति बनाकर उन आतंकी गुटों को बढ़ावा भी देता है जो भारत और अफगानिस्तान में दहशतगर्दी फैलाते हैं। कई अफगानी नेताओं ने बार-बार कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ‘हक्कानी नेटवर्क’ को हर तरह की मदद देती है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी कहा था कि तमाम बर्बादी, आपदाओं और परेशानियों के बावजूद पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना कभी भी नहीं छोड़ा।
पेशावर के एक स्कूल में हुए क्रूर आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान में भड़के जनाक्रोश से यह उम्मीद जगी थी कि शायद अब पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नव वर्ष के अवसर पर कश्मीर सीमा के पार पुनः जर्बरदस्त गोलीबारी पाकिस्तान की ओर से की गई। इसी प्रकार दाऊद इब्राहिम की पाकिस्तान में मौजूदगी की एक बार फिर भारतीय पुष्टि के बावजूद पाकिस्तान अपने देश में दाऊद की मौजूदगी से साफ मुकर गया। स्पष्ट है कि पाकिस्तान एक ढीठ प्रकृति का विफल राष्ट्र है। वह जिस रास्ते पर चलता आ रहा है, उससे हटकर कुछ और सोचने-समझने की सामर्थ्य अब उसमें शेष नहीं रह गई है।
पाकिस्तान की आज जैसी आतंकवाद समर्थक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय छवि बन गई है, उसके कारण वैश्विक महाशक्तियां पाकिस्तान से किसी प्रकार की घनिष्ठता रखने से बच रही हैं। जिस पाकिस्तान को कभी अमेरिका ने बढ़ावा दिया था, आज वही उससे कन्नी काट रहा है तथा वह पाकिस्तान से दूर जाना चाहता है। यद्यपि चीन और सऊदी अरब के रूप में पाकिस्तान के सहयोगी और सखा आज भी मौजूद हैं, जो उसे हरसंभव सहायता उपलब्ध करा रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार आतंकवाद के विरुद्ध कुछ कर सकने की स्थिति में ही नहीं है और वहां की फौज कुछ करेगी नहीं। भारत को पाकिस्तान के खिलाफ एक वैश्विक जनमत के निर्माण की कोशिश करनी चाहिए। भारत को पाकिस्तान के संदर्भ में दृढतापूर्वक एक नीति पर टिकना चाहिए। पाकिस्तान के प्रति उदारता दिखाना या उससे बातचीत का ढोंग करना पूरी तरह समय की बर्बादी मात्र है। यह राष्ट्र समझाने से सुधरने वाला नहीं है।
लेखक परिचय

नाम- पंकज के. सिंह

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