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विश्व-युद्ध में शहीद की विधवा को 58 साल बाद मिली बकाया पेंशन

इस बार विधवा के दत्तक पुत्र पंडित गांव से 125 किमी दूर सोलापुर के जिला सैनिक वेलफेयर ऑफिसर (ZSWO) पहुंचे और सभी दस्तावेज जमा किए।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Mon, 06 Feb 2017 02:53 AM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2017 02:57 AM (IST)
विश्व-युद्ध में शहीद की विधवा को 58 साल बाद मिली बकाया पेंशन
विश्व-युद्ध में शहीद की विधवा को 58 साल बाद मिली बकाया पेंशन

पुणे, जेएनएन। दूसरे विश्वयुद्ध सेनानी की विधवा काशीबाई धोंडी यादव को आज तक अपनी शहीद विधवा पेंशन की जंग लड़नी पड़ रही है। यहां तक कि उसके पति के दूसरे विश्वयुद्ध में शहीद होने के 13 साल बाद तक उसे कोई पेंशन ही नहीं मिली।

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1958 में काशीबाई को 8 रुपए प्रतिमाह की पेंशन मिलना शुरू हुई फिर सालों बाद पेंशन में रिवीजन होने के बाद उसकी पेंशन 8000 रुपए हो गई। आज पांच दशक बीत जाने के बाद उसे पेंशन की बकाया राशि मिलेगी पर अब भी यह युद्ध सेनानियों की विधवाओं को दी जाने वाली पेंशन नहीं होगी यह स्पेशल फैमिली पेंशन होगी जोकि युद्ध दुर्घटना में मारे गए सैनिकों की विधवाओं की पेंशन के बराबर है।

मराठा लाइट इन्फैन्ट्री (MLI) के लांसनायक जोति धोंडी यादव केवल 23 साल के थे जब वह 6 जनवरी 1945 को वेस्टर्न फ्रंट (अफ्रीका) में मारे गए थे। काशीबाई के नाबालिग रहते हुए ही उनकी शादी कर दी गई थी। उन्हें न तो अपनी शादी की तारीख याद है और न ही अपने पति के साथ बिताया हुआ बहुत ही थोड़ा सा वक्त।

काशीबाई बताती हैं, मुझे बस इतना याद है कि वह अंग्रेजों के समय लड़ाई लड़ने गए थे और फिर कभी लौटकर नहीं आए। मुझे बस इतना पता चला कि जंग के मैदान में उनकी मौत हो गई।

काशीबाई का दर्द सबके सामने तब आया जब संगली के अटपदी में बैंक ऑफ इंडिया ब्रान्च में अपनी साधारण पेंशन निकालने गईं। बैंक में उसे बताया गया कि उसे पेंशन नहीं मिल पाएगी अगर वह अपने पति का मृत्यु प्रमाण पत्र जमा नहीं करवाती हैं।

बैंक से जब पेंशन मिलना बंद हो गई तो उसके गोद लिए बेटे पंडिट रामू यादव ने कई दफ्तरों के चक्कर काटने शुरू कर दिए। पंडित रामू यादव खुद साक्षर नहीं हैं जिसकी वजह से MLI रेजिमेंटल सेंटर से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में उन्हें गांव के एक्स-सर्विसमैन शरद डेरे की मदद लेनी पड़ी। डेरे आर्मी के आर्म्ड कॉर्प्स के रिटायर्ड हवलदार है। उन्होंने बताया, 'यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि यह बहुत ही पुराना रेकॉर्ड था। किस्मत से हमें रेकॉर्ड मिल गया और हमने अक्टूबर में बैंक में इसे जमा कराया।'

काशीबाई को 32,000 रुपए की एकमुश्त राशि पेंशन के रूप में मिली लेकिन अगले महीने फिर से बैंक ने पेंशन रोक दी और शहीद की विधवा को कहा कि केंद्र सरकार ने उसकी पेंशन रोक दी है।

इस बार विधवा के दत्तक पुत्र पंडित गांव से 125 किमी दूर सोलापुर के जिला सैनिक वेलफेयर ऑफिसर (ZSWO) पहुंचे और सभी दस्तावेज जमा किए। ZSWO ने जनवरी में मामले को सैनिक वेलफेयर डेपार्टमेंट ऑफ महाराष्ट्र (SWDM) के पास भेजा।

जब हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने डेपार्टमेंट ऑफ एक्स सर्विसमैन वेलफेयर (DESW) के सेक्रटरी प्रभु दयाल मीना से संपर्क किया तो उन्होंने काशीबाई मामले की पूरी जानकारी मांगी। गुरुवार को उन्होंने बताया, हमने सभी दस्तावेज प्रमाणित कर लिए हैं और मामले को प्रिसिंपल कंट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट्स (पेंशन), इलाहाबाद को सौंप दिया है। विभाग ने काशीबाई की पेंशन को रिवाइज कर इसे स्पेशल फैमिली पेंशन का दर्जा दिया है। अब उसे नई पेंशन सभी एरियर्स समेत मिलेगी।

रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन सुहास पाठक (पेंशन सेल, DESW) काशीबाई से मिलने उसके गांव पहुंचे और सभी जरूरी दस्तावेज लिए। पाठक 2008 से पेंशन से संबंधित कई मामले देख चुके हैं। पाठक ने बताया, सभी दस्तावेजों की जांच करने के बाद मैंने पाया कि पीसीडीए (पी) ने 1958 से उसकी पेंशन रिवाइज नहीं की है। वह बैटल कैजुअलिटीज पेंशन या स्पेशल पेंशन पाने की अधिकारी है। उसे पहले वेतन आयोग से लेकर सातवें वेतन आयोग तक बकाया पेंशन मिलनी चाहिए जिसमें वन रैंक वन पेंशन भी शामिल है।

पाठक ने बताया, यह युद्ध दुर्घटना में शहीद होने का मामला था इसलिए MLI रेजिमेंटल सेंटर को शहीद के परिवार को न्याय दिलाने तक लड़ाई लड़नी चाहिए थी। जब उसके पति की मौत हुई तो उसके पास केवल एक ट्रंक और कुछ कपड़े पहुंचाए गए जिसे उसने आज तक संजो कर रखा हुआ है।

पति की मौत के बाद काशीबाई खावसपुर से 5 किमी दूर डीघिंजे में अपने माता-पिता के पास रहने चली गई थी। 1955 में वह वापस अपने गांव लौटी और पंडित को गोद लिया। पंडित के पिता ने भी दूसरे विश्व युद्ध की लड़ाई में भाग लिया था। शहीद की विधवा अपनी जीविका चलाने के लिए मजदूरी का काम करती है।


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