वैज्ञानिक अब गंगाजल को परख रहे विज्ञान की कसौटी पर
गंगा नदी को पुराणों में शुद्ध क्यों कहा गया है। वे कौन से गुणधर्म हैं जो इस नदी को शुद्ध बनाते हैं। इसका पता लगाने में नागपुर के राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है।
नागपुर। गंगा नदी को पुराणों में शुद्ध क्यों कहा गया है। वे कौन से गुणधर्म हैं जो इस नदी को शुद्ध बनाते हैं। इसका पता लगाने में नागपुर के राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है। या यूं कह लीजिए कि वैज्ञानिक गंगा के उस ब्रह्म तत्व की खोज कर रहे हैं, जिसका उल्लेख पुराणों और मान्यताओं में मिलता है। इसके लिए वैज्ञानिकों के दल ने बीती 25 मई से 2 जून तक गंगा नदी के उद्गम गोमुख से लेकर टिहरी बांध तक के जल नमूनों का संकलन किया। सहायक नदियों के उद्गम स्थल से भी जल के नमूने लेकर उनके गुणों को जांचा जा रहा है। खास बात यह भी है कि शुरुआती तथ्यों से गंगा नदी के विशेष गुणों को वैज्ञानिक आधार मिल रहा है। गंगा के पानी में बीमारियों से लडऩे के गुणधर्म होने के प्रमाण भी मिले हैं।
पुनर्शुद्धिकरण शक्ति की जांच
पौराणिक वेद शास्त्रों में गंगा को बहुत शुद्घ बताया गया है। गंगा में ऐसे कौन से गुण हैं, जो उसे पुनर्शुद्ध होने की शक्ति देते हैं। इन सारी बातों की जांच की जा रही है। इसके साथ गंगा नदी में प्रदूषण बढ़ानेवाले स्थानों, मसलन मानव समूहों के स्थान, उद्योगों की जांच की जा रही है।
सहायक नदियों का भी परीक्षण
वैज्ञानिकों का दल न केवल गंगाजल की गुणवत्ता का, बल्कि सहायक नदियों के जल का भी परीक्षण कर रहा है। टीम ने बद्रीनाथ धाम से बहनेवाली अलकनंदा और सीमांत गांव माना में बहनेवाली सरस्वती नदी के जल का भी परीक्षण किया है। दूसरे दौर के नमूना संग्रहण में टीम को कई रोचक तथ्य प्राप्त हुए हैं।
13200 फीट की ऊंचाई से लेकर 250 मीटर गहराई तक जल परीक्षण
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत नीरी की एक टीम हाल ही में गंगा के उद्गम से हुगली नदी तक गंगा नदी में पाए जानेवाले विशेष गुणों की खोज कर रही है। टीम गंगा नदी के उद्गम स्थान उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले में गोमुख गई थी। समुद्रतल से 13, 200 फीट की ऊंचाई पर इस टीम ने गंगा के पानी के नमूनों के सैंपल लिए।नमूने लेने की प्रक्रिया कोलकाता में बहनेवाली हुगली नदी (गंगा का स्थानीय नाम) तक अपनाई जानी है। सैंपलिंग के दूसरे चरण में टीम ने गोमुख से उत्तरकाशी जिले के ही टिहरी बांध से भी जल नमूनों की जांच की। टीम के एक वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने बताया यहां जांच के लिए टीम ने बांध की सतह से 250 मीटर गहराई तक के सैंपल लिए।