पवार का बयान बना प्रज्ञा की गिरफ्तारी का कारण ?
पवार के अनुसार उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्रालय से कहा था कि जो लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल हैं और समाज में बैर पैदा कर रहे हैं, चाहे वे बजरंग दल के हो या सिमी के, उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए।
मुंबई। मालेगांव विस्फोटकांड (द्वितीय) के चंद दिनों बाद ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार द्वारा पहली बार आतंकवाद के मामलों में सिर्फ मुस्लिम संगठनों के बजाय हिंदू संगठनों पर भी निगाह डालने की गुजारिश पुलिस विभाग से की गई थी। इस बयान के बाद ही हिंदू आतंकवाद की चर्चा खुलकर होने लगी और 18 दिन बाद ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था।
नासिक जिले मालेगांव कस्बे में दो साल के अंदर यह दूसरा विस्फोट 29 सितंबर, 2008 को हुआ था। जिसमें चार लोग मारे गए थे और 79 घायल हुए थे। महाराष्ट्र पुलिस एवं उसका आतंकवाद निरोधक दस्ता इसके आरोपियों को पकड़ने के लिए हाथ-पांव मार रहा था। जिस मोटरसाइकिल का विस्फोटक के रूप में इस्तेमाल किया गया था, वह एटीएस के लिए आरोपियों तक पहुंचने का सबसे बड़ा सूत्र साबित हो सकती थी। इसी बीच विस्फोट के चंद दिनों बाद ही तब राज्य की सत्ता में शामिल रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता एवं केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार ने अलीबाग में हो रहे अपनी पार्टी के दो दिवसीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए पहली बार कहा कि यदि मुस्लिमों को आतंकवादी होने के कारण निशाना बनाया जाता है, तो बजरंगदल एवं सनातन प्रभात जैसे संगठनों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती ?
पवार के अनुसार उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्रालय से कहा था कि जो लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल हैं और समाज में बैर पैदा कर रहे हैं, चाहे वे बजरंग दल के हो या सिमी के, उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। बता दें कि उस समय महाराष्ट्र का गृहमंत्रालय भी राकांपा के ही पास था। पवार के इस बयान के बाद प्रचार माध्यमों के जरिए खुलकर भगवा आतंकवाद पर चर्चा होने लगी थी एवं तीन दिन बाद ही आठ अक्तूबर को साध्वी प्रज्ञा को हिरासत में ले लिया गया था।
हालांकि पुलिस रिकॉर्ड में उनकी गिरफ्तारी 23 अक्तूबर को बताई गई। प्रज्ञा की गिरफ्तारी विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल को सूत्र बनाते हुए की गई थी। बता दें कि तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के नेतृत्व में साध्वी एवं कुछ अन्य लोगों की गिरफ्तारी तो हो गई थी, लेकिन 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में मारे जाने के कारण करकरे इस मामले की जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके थे।