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मराठवाड़ा की प्यास बुझाएगी मुंबईवासियों की जनभागीदारी

प्यासे मराठवाड़ा की प्यास बुझाने के लिए जहां ट्रेन एवं हजारों टैंकरों की मदद ली जा रही है, वहीं मुंबईवासियों द्वारा भेजी जा रही एक-एक लीटर की बोतलें भी बहुत काम आ रही हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 10 May 2016 05:32 AM (IST)Updated: Tue, 10 May 2016 05:40 AM (IST)
मराठवाड़ा की प्यास बुझाएगी मुंबईवासियों की जनभागीदारी

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। प्यासे मराठवाड़ा की प्यास बुझाने के लिए जहां ट्रेन एवं हजारों टैंकरों की मदद ली जा रही है, वहीं मुंबईवासियों द्वारा भेजी जा रही एक-एक लीटर की बोतलें भी बहुत काम आ रही हैं।

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कुछ दिनों पहले बीड जिले के मानखुरवाड़ी गांव में 10,000 लीटर पानी की बोतलों से लदा बड़ा ट्रक पहुंचा तो गांववालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पिछले कई दिनों से शुद्ध पेयजल न देख पानेवाले गांव के लिए यह एक स्वप्न सरीखा था। 1700 की आबादी वाले 300 परिवारों के इस गांव में हर परिवार को 30-30 लीटर पानी बराबरी से बांटा गया तो लोगों की आंखें भर आईं। पानी की ये बोतलें मुंबई के गोरेगांव इलाके के करीब 7500 घरों से इकट्ठा की गई थीं। 'मराठवाड़ा जनभागीदारी ' नामक यह मुहिम 'वी द पिपुल ' नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा चलाई जा रही है।

संस्था के अध्यक्ष राजेश गंगर बताते हैं कि ये मुहिम यहीं नहीं थमने वाली। अगले सप्ताह पहले से कई गुना ज्यादा यानी 50,000 से एक लाख लीटर तक पानी की बोतलें बीड के प्यासे गांवों के लिए भेजी जाएंगी और आगे भी ये मुहिम जारी रहेगी। इस मुहिम में मुंबई के धनाढ्य लोगों से लेकर झोपड़पट्टी निवासी तक योजदान देकर संतुष्टि महसूस कर रहे हैं।

गंगर के अनुसार मराठवाड़ा और विदर्भ से सूखापीडि़त गांवों के परेशान लोगों की खबरें मुंबई तक टेलीविजन एवं अखबारों के जरिए पहुंचती रहती हैं। ज्यादातर मुंबईवासी सूखापीडि़तों की मदद भी करना चाहते हैं। लेकिन कोई भरोसेमंद जरिया उनके पास नहीं था। वी द पिपुल ने यह मुहिम चलाकर ऐसे लोगों को यह जरिया प्रदान किया है। गांधीवादी संस्था निर्मला निकेतन के विद्यार्थियों को साथ लेकर संस्था ने मुंबईवासियों से एक-एक, दो-दो लीटर पानी की बोतलें इकट्ठा कर उन्हें मराठवाड़ा के प्यासे गांवों तक पहुंचाने की योजना तैयार की है। इसी योजना के तहत मुंबई के विभिन्न क्षेत्रों से पानी की बोतलें इकट्ठा कर उन्हें मराठवाड़ा भेजा जा रहा है। जरूरतमंद गांव का चयन जिले के जिलाधिकारी पर छोड़ा गया है। लेकिन भेजा गया पानी बराबर बांटने का काम मुंबई से गए स्वयंसेवक ही करते हैं। गंगर बताते हैं कि पानी इकट्ठा करने के बहाने हो रहे व्यापक जनसंपर्क का उपयोग भविष्य में मराठवाड़ा की दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी किया जा सकता है।


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