मुंबई में कजरी के बहाने सियासत की बिसात
कांग्रेस और भाजपा ने मुंबई में बसे लाखों उत्तर भारतियों को सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए रिझाने की कवायद शुरू कर दी है।
मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी] । अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा के साथ-साथ मुंबई महानगरपालिका के भी चुनाव होने हैं। इसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और भाजपा ने मुंबई में बसे लाखों उत्तर भारतियों को सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए रिझाने की कवायद शुरू कर दी है।
मुंबई में उत्तर प्रदेश मूल के लोगों की संख्या करीब 40 लाख है। इस निर्णायक वोट बैंक पर लंबे समय से कांग्रेस का कब्जा रहा है। इसी वोटबैंक पर ध्यान रखते हुए कांग्रेस कृपाशंकर सिंह एवं संजय निरुपम जैसे हिंदीभाषियों को अपना मुंबई अध्यक्ष बनाती रही है। पिछले लोकसभा चुनाव से हिंदीभाषियों का रुझान भाजपा की ओर हुआ तो बाजी पलट गई। अब आठ महीने बाद होनेवाले मुंबई मनपा चुनावों में भाजपा इसी वोटबैंक के सहारे शिवसेना से टकराना चाहती है, तो कांग्रेस अपने इस पुराने वोटबैंक के सहारे शिवसेना-भाजपा की आपसी फूट का लाभ लेकर मनपा पर अपना झंडा गाड़नी चाहती है।
इन दिनों 'कजरी महोत्सव' का आयोजन इस सियासत की बिसात बन गया है। रविवार को उत्तरभारतीय बहुल उपनगर कांदीवली के एक छोर पर भाजपा विधायक अतुल भातखलकर और महासचिव अमरजीत मिश्र के मंच पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस कजरी का आनंद ले रहे थे। दूसरे छोर पर मुंबई के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह उत्तर क्षेत्रीय महिला मंच द्वारा लखनऊ की लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी एवं भोजपुरी अभिनेता रविकिशन को बुलाकर कजरी महोत्सव का आयोजन करते नजर आ रहे थे। अमरजीत मिश्र का कजरी महोत्सव पिछले 15 दिनों से मुंबई के अलग-अलग क्षेत्रों में हो रहा है, जिसमें सुरेश शुक्ल एवं मिर्जापुर की कजरी गायिका मधु पांडेय को सुनने बड़ी संख्या में उत्तरभारतियों का जमावड़ा देखा जाता है।
ये आयोजन सिर्फ कजरी गायन तक सीमित नहीं रहते। इन मंचों पर सियासत को परवान चढ़ाने की भरपूर कोशिश भी होती है। रविवार को मराठीभाषी भाजपा विधायक अतुल भातखलकर के मंच पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस कंधे पर लाल बनारसी अंगौछा डाले सीधे पल्ले में लंबा सिंदूर लगाए उत्तरभारतीय महिलाओं के साथ फोटो खिंचाते नजर आए। पिछले विधानसभा चुनाव में भातखलकर इस क्षेत्र के हिंदीभाषी कांग्रेस विधायक रमेश सिंह को हराकर विधानसभा में पहुंचे हैं। इन आयोजनों में मंच से बोलनेवाले ज्यादातर वक्ता अवधी या भोजपुरी जैसी आंचलिक बोलियों में ही बोलने का प्रयास करते हैं। ताकि सामने बैठे श्रोताओं से अपनापन स्थापित किया जा सके।