योगा सिखा कर जीता नेशनल अवॉर्ड
आंखों में सफलता का सपना लेकर दो दशक पहले ओडिशा से मुंबई पहुंचे बिजयकुमार महाराना (47) ने मेहनत और लगन के बल पर एक खास मुकाम हासिल किया है। महाराना को यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स मिनिस्टरी की ओर से इस साल का नेशनल यूथ अवॉर्ड दिया गया है।
मुंबई। आंखों में सफलता का सपना लेकर दो दशक पहले ओडिशा से मुंबई पहुंचे बिजयकुमार महाराना (47) ने मेहनत और लगन के बल पर एक खास मुकाम हासिल किया है। महाराना को यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स मिनिस्टरी की ओर से इस साल का नेशनल यूथ अवॉर्ड दिया गया है।
फुटपाथ से शुरू हुआ सफ़र....
- फुटपाथ से शुरू हुए सफर को इस मंजिल तक पहुंचाने के लिए महाराना को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
- महाराना को गरीबों, कैंसर पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों को मुफ्त योग का प्रशिक्षण देने के लिए यह अवॉर्ड मिला है।
- योग के जरिए महाराना इन लोगों को तनाव से निपटना सिखाते हैं।
- टाटा मेमोरियल अस्पताल में कैंसर के मरीजों और उनके रिश्तेदारों के बीच महाराना एक जाना पहचाना चेहरा हैं।
मिली डिब्बेवाले की नौकरी
- महाराना 1995 में जब सीएसटी पहुंचे थे तो शहर में उनका कोई रिश्तेदार नहीं था। जेब में पैसे भी नहीं थे।
- फुटपाथ और रेलवे स्टेशन पर सोकर वक्त गुजरने लगा। इसी बीच उन्हें डिब्बेवाले की नौकरी मिली।
- पैसे की जरूरत के चलते वे मुंबई यूनिवर्सिटी के कलीना कैंपस में विद्यार्थियों और कर्मचारियों तक साइकिल से टिफिन पहुंचाने लगे।
- इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। महाराना ने 1996 में फिलॉसफी में मास्टर की डिग्री के लिए एडमिशन लिया।
- पढ़ाई जारी रखते हुए 2011 फरवरी में प्रोफेसर शकुंतला सिंह के मार्गदर्शन में योग में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
- डिग्रियों के बावजूद महाराना को अभी भी नौकरी की तलाश है। लेकिन इस बीच उन्होंने समाज सेवा जारी रखी।
राज्यपाल ने किया सम्मानित
महाराना ने एक गैरसरकारी संस्था की स्थापना की है जो ग्रामीण इलाकों में गरीबों को योगा सिखाती है। 67वें गणतंत्र दिवस के मौके पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने उन्हें राजभवन में आमंत्रित किया था। महाराना इसे अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।