अवैध निर्माण हटाने कब तक बनेगी नई नीति: हाईकोर्ट
अवैध निर्माण से निपटने सरकार नई नीति कब तक लेकर आएगी। शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से इस पर जवाब मांगा है। पिछली सुनवाई के दौरान सरकार ने अवैध निर्माण को लेकर नीति का एक मसौदा पेश किया था।
मुंबई। अवैध निर्माण से निपटने सरकार नई नीति कब तक लेकर आएगी। शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से इस पर जवाब मांगा है। पिछली सुनवाई के दौरान सरकार ने अवैध निर्माण को लेकर नीति का एक मसौदा पेश किया था।
इस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई थी। साथ ही सरकार को नीति पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति अभय िथप्से की खंडपीठ ने कहा कि मसौदे के रुप में पेश की गई सरकार की नीति एमआरटीपी कानून के खिलाफ है।
क्योंकि इसमें कहा गया है कि यदि औद्योगिक क्षेत्र में अवैध निर्माण किया गया है तो उसे रिहायशी क्षेत्र करके निर्माण को वैध कर दिया जाए। मामला नवी मुंबई के दिघा इलाके में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से बनाई गई अवैध इमारतों से जुड़ा है।
अनुबंध में निर्माणकार्य अवैध
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने पाया कि फ्लैट धारकों ने खरीद को लेकर बिल्डर से जो अनुबंध किया है। उसमें निर्माणकार्य के अवैध होने का उल्लेख है। फिर भी लोगों ने फ्लैट खरीदा है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि फ्लैट खरीदनेवालों को अवैध निर्माण की जानकारी नहीं थी। हाईकोर्ट ने फिलहाल मामले की सुनवाई तीन फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है।
नैतिकता को परिभाषित करे
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार व फिल्म सेंसर बोर्ड को नैतिकता को परिभाषित करने को कहा है। हाईकोर्ट ने यह बात शुक्रवार को रिलिज हुई फिल्म क्या कूल हैं हम-3 के माध्यम से अश्लीलता व फूहड़ता फैलाने के आरोप को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।
साथ ही अदालत ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सामाजिक कार्यकर्ता जुबेर खान ने जनहित याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति नरेश पाटील व गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के समक्ष सेंसर बोर्ड की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा- फिल्म को वयस्क श्रेणी (ए कैटेगरी) में रखा गया है।
बच्चे इस फिल्म को नहीं देख सकते। इस दलील पर याचिकाकर्ता के वकील मोहम्मद जावेद ने कहा- फिल्म को भले वयस्क श्रेणी में रखा गया है पर उसके पोस्टर बेहद अश्लील है। िजसे बच्चे देख सकते हैं। यह किसी भी दृष्टि से नैतिक व उपयुक्त नहीं है।
रेलवे के रुख पर अदालत नाराज
रेल दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों के प्रति रेलवे के रुख पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने कहा-मुंबई लोकल ट्रेन में सफर करना दुनिया का सबसे खतरनाक काम है। लोकल ट्रेन दुर्घटना में सालाना चार हजार लोगों की होनेवाली मौत को देखकर महसूस होता है कि रेलवे ने इसे सामान्य घटना मान लिया है।
फिर भी रेलवे का इन मौतों के प्रति क्या नजरिया है। हम जानना चाहते है। न्यायमूर्ति नरेश पाटील व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कही।
खंडपीठ ने कहा कि रेलवे परिचालन में राज्य सरकार से सहयोग लेने में क्यों हिचकिचा रही है। क्या उसे भय है कि कोई उससे रेलवे को छीन लेगा। इससे पहले सरकारी वकील पीपी काकडे ने लोकल की भीड़ कम करने के लिए कार्यालयों के समय में बदलाव करने के बारे में कहा कि हमने स्कूल-कॉलेज, विभिन्न विभागों के लोगों के सुझावों को मंगा लिया है। उसका विश्लेषण किया जा रहा है।