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हिंदू और मुस्लिम साथ-साथ करते हैं शिवलिंग की पूजा

एक लकवाग्रस्त अल्पसंख्यक व्यक्ति ने पुजारी का सारथी बनकर उन्हें नाव से मंदिर तक पहुंचाया तो पुजारी ने भी उसे पूजापाठ की इजाजत देकर कष्ट निवारण में मदद की।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 01 Aug 2016 06:01 AM (IST)Updated: Mon, 01 Aug 2016 06:10 AM (IST)
हिंदू और मुस्लिम साथ-साथ करते हैं शिवलिंग की पूजा

भोपाल जब देश में धर्मांधता बढ़ रही है, तब राजधानी भोपाल में गंगा-जमुनी तहजीब की एक अनूठी मिसाल देखने को मिली। एक लकवाग्रस्त अल्पसंख्यक व्यक्ति ने पुजारी का सारथी बनकर उन्हें नाव से मंदिर तक पहुंचाया तो पुजारी ने भी उसे पूजापाठ की इजाजत देकर कष्ट निवारण में मदद की। नतीजतन उस अल्पसंख्यक की भगवान भोलेनाथ में आस्था बढ़ी। अब वह सावन के महीने में नियमित रूप से पूजा-अर्चना कर रहा है। उसका कहना है कि मैंने अपना धर्म नहीं छोड़ा है, लेकिन मेरी ईश्वर में अटूट आस्था है।

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कलियासोत डेम में एक टापू पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर है। चारों ओर पानी से घिरे मंदिर के पुजारी सुनील हैं। लगभग तीन साल पहले डेम का जल स्तर बढ़ने से पुजारी मंदिर तक नहीं पहुंच पा रहे थे। वे डेम किनारे खड़े थे, तभी उनके पास एक नाव चलाने वाला लकवाग्रस्त व्यक्ति आया और पंडित जी से बोला कि मैं आपको मंदिर तक छोड़ देता हूं। तब से यह कार्य उस व्यक्ति की दिनचर्या का अंग बन गया। लकवे की वजह से उसके शरीर का एक भाग निष्क्रिय हो गया था, भगवान भोलेनाथ की कृपा से अब वह पूर्णत: ठीक हो गया है। ऐसा उसका मानना है।

दाहिने हिस्से ने काम करना बंद कर दिया

आनंद नगर निवासी अख्तर के परिवार में पत्नी और तीन बच्चियां हैं। वे मूलत: गुना जिले के रहने वाले हैं। दस वर्ष पहले वे रोजगार की तलाश में भोपाल आए और मछली ठेकेदार के यहां काम करने लगे। इस बीच वे लकवे का शिकार हो गए और उनके शरीर के दाहिने हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इस वजह से उनकी नौकरी भी चली गई। काफी इलाज करवाया, लेकिन कहीं से काेई फायदा नहीं हुआ। इस दौरान दोस्तों की सलाह पर वे सलकनपुर जाकर माता बीजासन के यहां भी माथा टेक आए। वहां उन्हें एक साधु बाबा मिले। उन्होंने अख्तर को लगातार पांच सोमवार तक भगवान भोलेनाथ की पूजा करने की सलाह दी।

अख्तर की शिव आराधना का यह क्रम दो वर्ष से निरंतर जारी

साधु ने दावा किया कि अगर वे ऐसा करेंगे तो उनकी बीमारी जल्द ठीक हो जाएगी। काफी भटकने के बाद उन्हें फिर से काम मिल गया। एक मछली ठेकेदार ने उन्हें कलियासोत डेम पर चौकीदारी का काम सौंप दिया। दो साल पहले डेम का जलस्तर बढ़ने से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का रास्ता जलमग्न हो गया। मंदिर के पुजारी डेम के किनारे ही खड़े होकर पूजा करते और चले जाते थे। अख्तर यह नजारा दो-तीन दिन तक देखते रहे। एक दिन अख्तर ने पुजारी से कहा कि क्या मैं आपको नाव से मंदिर तक छोड़ दूं तो पुजारी ने कहा कि नेकी और पूछ-पूछ। इस तरह अख्तर रोजाना पुजारी को नाव में बैठाकर मंदिर तक ले जाने लगा। एक बार अख्तर ने पुजारी से पूछा कि क्या मैं भी मंदिर में आकर पूजा कर सकता हूं? पुजारी ने कहा कि क्यों नहीं? यह सुनकर अख्तर की जैसे मुराद पूरी हो गई। फिर क्या था अख्तर अपनी नाव से पुजारी सुनील को लेकर मंदिर की ओर जाते। फिर दोनों मंदिर में पहुंचकर शिवजी का अभिषेक करते हैं। यह सिलसिला चल निकला। चंद दिनों में अख्तर भी पूरे विधि-विधान से शिवजी की पूजा-अर्चना करने लगे। उनका कहना है कि जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे उनकी सेहत में भी सुधार होने लगा। अख्तर की शिव आराधना का यह क्रम पिछले दो वर्ष से निरंतर जारी है। अब आलम यह है कि 34 वर्षीय अनपढ़ अख्तर संस्कृत में धाराप्रवाह मंत्र पढ़ते हैं। उनका कहना है कि जितनी आस्था मुझे अपने इस्लाम धर्म में है, लगभग उतना ही विश्वास देवी-देवताओं पर भी है। मेरी पत्नी और तीनों बेटियां चैत्र नवरात्र में माता रानी की पूजा और उपवास भी करती हैं। मेरी बेटियां सावन सोमवार पर शिव पूजा करने के साथ ही व्रत रखती हैं। मैं चैत नवरात्र पर 75 किलों मीटर की पैदल यात्रा करता हूं। इस दौरान देवी की पताका (ध्वज) लेकर सलकनपुर तक जाता हूं। नवरात्र पर भंडारा भी कराता हूं। अख्तर का कहना है कि भगवान भोलेनाथ और माता रानी की कृपा से मैं पूर्णत: स्वस्थ हूं और मेरा परिवार भी सुखी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैंने अपने धर्म को नहीं छोड़ा है। ईदुलफितर और ईदुज्जुहा पर नमाज पढ़ने ईदगाह पर जाता हूं।

जलहरी और शिवलिंग दोनों यहां मिले थे
जल संसाधन विभाग ने वर्ष 1986 में डेम का निर्माण साउथ की एक कंपनी एसआरईके से कराया। लगभग पांच किलोमीटर लंबे इस डेम का नाम कलियासोत रखा गया। बताया जाता है कि डेम निर्माण के समय कंपनी को काफी परेशानी का सामान करना पड़ रहा था। कंपनी के ठेकेदार कर्नाटक के ब्राह्मण थे और वे भगवान शिव के भक्त थे। खुदाई के दौरान ही वन पीस जलहरी और शिवलिंग दोनों एक साथ बने हुए मिले। डेम खुदाई के दौरान ही पशु-पक्षियों के लिए लगभग 10 हजार वर्ग फीट का टापू बनाया गया था। उसी के ऊपर अस्टकोण मंदिर का निर्माण किया गया और उसमें भगवान काशी विश्वनाथ शिवलिंग की विधि-विधान के साथ स्थापना की गई। मंदिर की जिम्मेदारी पुजारी सुनील को सौंप दी गई, जो आज भी मंदिर में भगवान की सुबह-शाम पूजा-अर्चना करते हैं। पुजारी सुनील श्री काशी विश्वनाथ शिक्षा एवं सेवा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं। चारों ओर पहाड़ों से घिरे कलियासोत डेम में बड़ी झील का पानी आता है। यहां सालभर पर्यटकों की आवाजाही लगी रहती है।

अब अख्तर पूरी तरह स्वस्थ
अख्तर को मैं पिछले 12 साल से जानता हूं। उसने लकवे का काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। भगवान के प्रति आस्था की वजह से अब वह पूरी तरह स्वस्थ है। वह नवरात्र और श्रावण मास में विधि-विधान से पूजापाठ करता है।
भागीरथ बाथम, निवासी बुधवारा (अख्तर के मित्र)


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