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ज्योतिरादित्य के सामने विरासत बचाने की चुनौती

By Edited By: Published: Mon, 14 Apr 2014 01:57 AM (IST)Updated: Mon, 14 Apr 2014 01:10 AM (IST)
ज्योतिरादित्य के सामने विरासत बचाने की चुनौती

गुना [प्रणय उपाध्याय]। मध्य प्रदेश की गुना-शिवपुरी सीट पर कहने को मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है, लेकिन सियासी जमीन पर असली लड़ाई महाराज बनाम अन्य की है। ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां अब भी महाराज हैं जिनके आगे चुनौती है घराने की राजनीतिक विरासत बचाने की। मुकाबला भी बीते दो दशक से राजघराने के धुर विरोध की सियासत कर रहे जयभान सिंह पवैया से है जिनकी कोशिश 'मोदी सरकार' की अपेक्षाएं जगा चुनावी दांव भुनाने की है।

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गुना शहर से गुजरते आगरा-बांबे हाईवे पर कड़े सियासी मुकाबले के निशान साफ नजर आते हैं। शहर के प्रमुख चौराहों से लेकर ग्रामीण आंचलिक इलाकों में कच्चे मकानों की दीवारों तक नहले पर दहला का प्रचार युद्ध छिड़ा है। पोस्टर के मुकाबले पोस्टर की रणनीतिक नाकेबंदी है। सिंधिया सांसद रहते मंजूर 9 हजार करोड़ रुपये की विकास योजनाओं की फेहरिस्त गिनाते हैं। 12 सालों से इलाके का प्रतिनिधित्व कर रहे ज्योतिरादित्य के दावों में पिता के वक्त से चली आ रही योजनाओं का सिलसिला और विकास भी शामिल है।

ग्वालियर से 1999 में सांसद रह चुके पवैया के प्रचार में राजघराने के रुतबे को चुनौती का सुर तीखा है। 1998 में पवैया के साथ बेहद कम अंतर से जीत को माधवराव सिंधिया के ग्वालियर छोड़ गुना आने का कारण बताया जाता है। सो, महाराज बनाम सहज-सुलभ नेता का नारा दे राजघराने का तिलस्म तोड़ने में जुटे बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष पवैया का प्रचार 'मोदी सरकार' को लेकर उम्मीदें जगाने और भुनाने पर ज्यादा है। प्रचार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सूबे में मौजूद सरकार से ज्यादा जोर मोदी का चेहरा और उनके नारों को दिखाने पर है।

गेहूं उत्पादक इस इलाके में हालिया ओलावृष्टि से बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान हुआ है। ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में भी यह चिंता और चुनाव दोनों का विषय है। च्योतिरादित्य चुनाव प्रचार में बांह पर एक काली पट्टी बांधे हैं जो किसानों को मुआवजा न दिए जाने के खिलाफ नाराजगी का निशान है। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत आला नेता राच्य के साथ भेदभाव की शिकायतें सुनाते हैं।

हालिया विधानसभा चुनाव में इस इलाके में सियासी बाजी 5-3 से कांग्रेस के पक्ष में छूटी थी। गुना से सटे विदिशा के बुधनी से चुनकर तीसरी बार मुख्यमंत्री बने चौहान रिकार्ड सुधारने की जुगत में हैं। सो, शनिवार को गुना से 60 किमी दूर बामौर में चुनावी सभा करने पहुंचे चौहान ने कांग्रेस और केंद्र सरकार पर खूब हमला बोला। चौहान की सहज बातों पर तालियां भी खूब बजीं। 55 बरस के शुभचरण किरार सत्ता परिवर्तन की हिमायत करते हैं। पर नजदीक के गांव साढौरा से मुख्यमंत्री को सुनने आए 68 वर्षीय राधेश्याम धाकड़ को मुख्यमंत्री की यह दलील गले नहीं उतरती कि केंद्र सरकार सूबे को पैसा नहीं देती।

बहरहाल, बदलाव को लेकर सुगबुगाहट पूरे इलाके में है। आम आदमी पार्टी उम्मीदवार समेत 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा से राजमाता विजयाराजे सिंधिया और कांग्रेस से माधवराव सिंधिया को संसद पहुंचाते रहे इस क्षेत्र की बदलती हकीकत राजघराना भी भांप रहा है। लिहाजा, माता माधवीराजे ही नहीं, पत्‍‌नी और युवा बेटा महाआर्यमन भी ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर घूमकर अपील कर रहे हैं। गुना की चार विधानसभा सीटों पर युवा मतदाताओं की संख्या तीन लाख से ज्यादा है।

कंप्यूटर सेंटर वाले 35 वर्षीय राजेश जैन और टै्रवल कंपनी में कार्यरत 37 वर्षीय रमेश जाटव केंद्र में बदलाव के हिमायती हैं। पर सिंधिया के काम न करने और जनसुलभ न होने जैसे आरोपों को चुनावी करार देते हैं। राजघराने की मर्यादा का लिहाज कर शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे प्रचार से परहेज कर रही हैं।

17 में 12 बार जीत

गुना-शिवपुरी सीट पर राजघराने के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह लोकसभा सीट अब तक हुए 17 चुनावों में 12 बार सिंधिया परिवार के नुमाइंदे के पास रही है। अगर कोई गैर-सिंधिया जीता भी तो उसी हालत में जब राजघराने का कोई सदस्य मैदान में नहीं था। राजघराने में राजमाता सिंधिया, माधवराव सिंधिया जैसे नाम भी कभी स्वतंत्र पार्टी, कभी जनसंघ तो कभी भाजपा व कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरता रहा है। नवंबर 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में शिवपुरी से जीती भाजपा नेता यशोधरा राजे शिवराज सरकार में मंत्री हैं। गुना से ही लगे राजस्थान के झालावाड़ जिले से जीती वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री भी हैं। झालावाड़ से ही वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं और फिर से भाजपा के चुनाव उम्मीदवार भी।


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