कांग्रेस में कलह पर सख्त हुई सोनिया
लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद अब कांग्रेस में तमाम नेताओं का मौन मुखर हो रहा है। हार की टीस ने अब तक परिणाम से परे माने जा रहे राहुल गांधी को निशाने पर लिया तो पार्टी में प्रियंका को लाने के स्वर और तेज हो गए हैं। इस सब के बीच संप्रग सहयोगी एनसीपी ने महाराष्ट्र में विधानसभा च
नई दिल्ली, [सीतेश द्विवेदी]। लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद अब कांग्रेस में तमाम नेताओं का मौन मुखर हो रहा है। हार की टीस ने अब तक परिणाम से परे माने जा रहे राहुल गांधी को निशाने पर लिया तो पार्टी में प्रियंका को लाने के स्वर और तेज हो गए हैं। इस सब के बीच संप्रग सहयोगी एनसीपी ने महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में ज्यादा हिस्सेदारी को लेकर कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया है। पार्टी व सहयोगियों के बीच संतुलन साधने की चुनौती के बीच पार्टी अध्यक्ष सोनिया ने कड़े फैसले लेने के संकेत दिए हैं।
हार के बाद कांग्रेस में बगावत नई बात नहीं है। 1967 व 1977 के चुनावों में हार के साल के भीतर पार्टी टूट गई थी। हालांकि, इस बार पार्टी में टूटने लायक शक्ति नही है, लेकिन कलह तेज हो गई है। 'टीम राहुल' के नाम पर राहुल गांधी पर होते परोक्ष हमलों के बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष के करीबियों ने भी आक्रामक अभियान छेड़ दिया है। उनका कहना है कि संप्रग दो की 'ब्रांड वैल्यू' ही खराब थी। रामदेव, टूजी, तेलंगाना, राडिया टेप जैसे मुद्दों पर संप्रग की कार्यशैली ने सरकार व संगठन को नुकसान पहुंचाया। ऐसे में मुश्किल से साल भर पहले चुनाव अभियान संभालने वालों को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
बयानबाजी-गुटबाजी से असहज सोनिया संसदीय दल की बैठक बाद कड़ा संकेत दे सकती हैं। पार्टी में प्रियंका की बढ़ती मांग के बीच संकेत हैं कि फिलहाल उनकी भूमिका सीमित रहेगी। राज्यों के विस चुनावों के मद्देनजर प्रियंका पर फैसला अगले वर्ष ही होगा। इस बीच न सिर्फ संगठन दुरुस्त किया जाएगा बल्कि नई सरकार का हनीमून पीरियड खत्म हो जाएगा।
वहीं, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने तो संप्रग के सहयोगी दलों की हार का ठीकरा भी कांग्रेस पर फोड़ा है। उन्होंने कहा, जिन दलों ने संप्रग का समर्थन किया उन्हें मतदाताओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा।