Move to Jagran APP

प्रकृति‍ और इत‍िहास को करीब से देखने की है चाहत, तो घूमें आन्ध्र का दिल विजयवाड़ा

एल.मोहन कोठियाल। दक्षिणी राज्य आन्ध्र प्रदेश में एक बेहद खूबसूरत जगह व‍िजयवाड़ा है। यह आन्ध्र का दिल तो है ही साथ ही इसका अपना अलग पर्यटन आकर्षण भी है...

By shweta.mishraEdited By: Published: Thu, 10 Aug 2017 04:39 PM (IST)Updated: Thu, 10 Aug 2017 04:44 PM (IST)
प्रकृति‍ और इत‍िहास को करीब से देखने की है चाहत, तो घूमें आन्ध्र का दिल विजयवाड़ा
प्रकृति‍ और इत‍िहास को करीब से देखने की है चाहत, तो घूमें आन्ध्र का दिल विजयवाड़ा

विक्टोरिया संग्रहालय

loksabha election banner

दक्षिणी राज्यों में अनेकानेक स्थान व शहरों अपना अलग आकर्षण है। इन्हीं आन्ध्र प्रदेश का शहर विजयवाड़ा भी एक है। इसके निकट ही आन्ध्र प्रदेश की नई राजधानी बसाने के निर्णय से विजयवाड़ा का नाम मुख्यधारा के चर्चित शहरों में आ चुका है। एक व्यवसायिक नगर होने के साथ यह आन्ध्र का दिल है जिसका अपना अलग पर्यटन आकर्षण भी है। इस नगर के आसपास भी देखने को बहुत कुछ है। नगर के एक ओर कृष्णा नदी पर बना बैराज व भवानी द्वीप हैं, तो नदी से सटी पहाड़ी पर दुर्गा का सुप्रसिद्ध मंदिर है। नगर का विक्टोरिया संग्रहालय व गांधी हिल्स भी देखने योग्य है, लेकिन इसके आस-पास भी अनेकानेक आकर्षण है। इनमें उन्डावल्ली का गुफा मंदिर व मंगलगिरि के दो विष्णु मंदिर, नगर से कुछ ही दूर कुचिपुडि नृत्य का आदि स्थल है। उत्तर में कोण्डापल्ली किला व कोण्डापल्ली कस्बा है, जहां का बोमालु हस्तशिल्प प्रसिद्ध है। इससे सटे गुण्टूर जिले में अमरावती है, जो एक समय भारत का प्रमुख बौद्ध केन्द्र था।

पौराणिक मान्यताएं

विजयवाड़ा का नाम दो पौराणिक दृष्टान्तों प्रचलित होने से है। एक समय इस क्षेत्र में नदी का प्रवाह कठोर पर्वतों से अवरुद्ध था। पानी की कमी से यहां पर रहने के लिए न उचित परिस्थितियां थीं और न कृषि हेतु उपयुक्त वातावरण ही। इसके लिए प्रजा ने भगवान शिव से अनुनय विनय की जिन्होंने कठोर पर्वतों के मध्य बेजम यानी सुरंग बनाकर कर नदी की राह बनाई। इसलिए इस स्थान का नाम बेजमवाड़ा हुआ। कालान्तर में यही नाम बदलकर विजयवाड़ा हुआ। दूसरी अनुश्रुति के अनुसार दुर्गा ने दुर्गम्मा नामक दैत्य का यहां की इन्द्रकील पहाड़ी पर वध कर जीत हासिल की थी। उस समय रूप सुनहला था, इसलिए देवी के इस रूप को कनक यानी सोने की दुर्गा कहा जाता है। दैत्य के वध के बाद वे कुछ समय तक यहां पर रहीं इसलिए उनको विजया भी कहा गया और यह स्थान विजया की धरती यानी विजयवाड़ा हो गई। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, द्वापर युग में इस इंद्रकील पहाड़ी पर अगस्त्य मुनि, मार्कण्डेय मुनि और पांडवों ने भी देवी की उपासना की थी। इनमें अर्जुन ने दैविक अस्त्र की चाह के लिए शिव की तपस्या की थी। आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने यहां पर श्रीचक्त्र की स्थापना की।

शहर का आकर्षण

नये राज्य बनने के बाद विजयवाड़ा नये बने आन्ध्र का दिल बन चुका है, जो राज्य के एकदम मध्य में है। विशाखपट्टनम के बाद अब यह राज्य का दूसरा बड़ा नगर है। यह चोल एवं विजयनगर साम्राज्यों के लंबे इतिहास का भी साक्षी रहा। आस पास छोटी-छोटी पहाडि़यां व कृष्णा नदी इस नगर की भौगोलिक सीमाएं तय करती हैं। रेलवे स्टेशन के पीछे ही यहां की सबसे ऊंची पहाड़ी गांधी हिल है। जिस पर बना 16 मीटर ऊंचा स्तूप, तारामंडल व टॉयट्रेन इसका आकर्षण है। गांधी हिल से नगर व बैराज का दूर-दूर तक का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। कृष्णा नदी पर ही दूसरी पहाड़ी इन्द्रकील के एक ओर प्रकाशम बैराज है। इससे बनी मीलों लंबी झील व निकली नहरें नगर की नई पहचान है। झील किनारे पर प्रमुख Fान घाट है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पूजा, स्‍नान आदि को आते हैं। स्‍नान घाट से लगी इन्द्रकील पहाड़ी पर ही कनकदुर्गा का मंदिर है। यहां पर राज्य के अलावा दक्षिण व पूर्वी हिस्सों से यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। विजयवाड़ा में भी ही बारह साल में एक कुम्भ जैसा विशाल पुष्करम मेला होता है। उस समय लाखों लोग यहां जुटते है। बैराज के मध्य भवानी टापू एक पिकनिक स्थल है, जहां रहने के लिए अनेक आवास है, तो अंदर एक वन पार्क है। इसके एक ओर कई प्रकार की वाटर स्पोर्ट्स गतिविधियां चलती रहती हैं।

गुफा मंदिर

प्रकाशम बैराज के दूसरी ओर गुन्टूर जिला है, जहां कई दर्शनीय स्थान हैं। यहां से मात्र 12 किमी। दूर उन्डावल्ली स्थित गुफा मंदिर एक प्रमुख आकर्षण है। 7वीं शती में बना यह एक गुफा मंदिर है जो चट्टानों को काट कर बनाया गया। इसमें मौजूद तेलुगू शिलालेख दसवीं शती के बताए जाते हैं। इसी तरह की संरचनाए ओडिशा के भुवनेश्र्वर में खण्डागिरि व उदयगिरि में भी देखने में आती हैं। यह गुफा मंदिर तीन तलीय है, जिसके अंदर कई मण्डप हैं। यहां बने विभिन्न कक्षों में अनेक हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके दूसरे तल पर शेषनाग पर अनन्तशयन मुद्रा में विष्णु की एक दर्शनीय मूर्ति है, जो पांच मीटर लंबी है। प्राचीन व महत्वपूर्ण गुफा मंदिर होने के कारण इस स्थल की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।

मंगलगिरि

उन्डावल्ली से गुन्टूर जाने वाले मुख्यमार्ग से 15 किमी। पर मंगलगिरि है, जहां भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित दो मंदिर है। पहाड़ी पर स्थिति मंदिर पणनरसिंह का है, जहां वाहन से व पैदल जाया जा सकता है। पहाड़ी के आधार पर लक्ष्मी-नरसिंह मंदिर है। मंगलगिरि का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भगवान नरसिंह ने कुछ समय यहां समय बिताया था। मंगलगिरि के नरसिंह मंदिर का गोपुरम दक्षिण भारतीय मंदिरों में सबसे ऊंचा है। मंगलगिरी अपने सूती कपड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है।

अमरावती बौद्ध का केंद्र

एक समय आन्ध्र में बौद्ध धर्म दूर-दूर तक फैला था, इसलिए यहां पर अनेक मौर्य व गुप्तकालीन अवशेष मौजूद हैं। इनमें विजयवाड़ा से 30 किमी। दूर कृष्णा नदी के किनारे अमरावती है, जो प्राचीन समय में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। यहां पर 2 हजार साल पुराना स्तूप, भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा व दो संग्रहालय हैं। बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा घंटशाल अमरावती से मात्र पांच किमी। दूर है। बौद्ध धर्म के पतन के बाद अमरावती रेड्ड़ी शासकों की राजधानी बनी। यहीं पर कृष्णा नदी के किनारे अमरेश्र्वर शिव मंदिर है। विजयवाड़ा से 30 किमी। की दूर गुन्टूर में ही बौद्ध धर्म का केंद्र नोम्बरु है। यहां के सातवाहन राजाओं के साम्राज्य की सामग्री आचार्य नागार्जुन विश्र्वविद्यालय के संग्रहालय में देखी जा सकती है। नोम्बरू में प्रसिद्ध हृंकर जैन तीर्थ है। विजयवाड़ा-भद्राचलम राजमार्ग पर 20 किमी। दूर कोंडापल्ली में पहाड़ी पर सातवीं शताब्दी में कोंडावेट्टी राजाओं के किले के खंडहर विद्यमान है। इस गांव में लकड़ी के सुंदर गुडि़या खिलौने बनते हैं। इनका विदेश को भी निर्यात होता है।

कुचिपुड़ी गांव

देश के पांच प्रमुख नृत्यों में से कुचिपुड़ी भी एक है। विजयवाड़ा से 60 किमी। दूर कुचिपुड़ी गांव में इस शास्त्रीय नृत्य का आदि स्थल है। कुचिपुडी़ नृत्य की विधा का आरंभ दूसरी शताब्दी में सातवाहन राजाओं समय हुआ बताया जाता है। इस शैली के सर्जक सिद्धेन्द्र योगी ने इस गांव में गुरुकुल की स्थापना की थी। इस गुरुकुल को विजयनगर साम्राज्य का संरक्षण प्राप्त था। विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद भी सिद्धेन्द्र योगी ने गांव नही छोड़ा। गोलकुंडा के नवाब ने कुचिपुड़ी गांव के कलाकारों को भी पुरस्कृत किया था। यह गांव नृत्यकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए प्रेरणा का केंद्र जैसा है। कुचिपुड़ी में बौद्धधर्म के महायान संप्रदाय के महान आचार्य नागार्जुन भी कुछ दिन रहे। यही कारण है कि कुचिपुड़ी के कुछ कथानकों पर बौद्ध मत का भी पर्याप्त प्रभाव दिखता है।

मछलीपट्टनम बंदरगाह

विजयवाड़ा के 60 किमी। दक्षिण पूर्व में मछलीपट्टनम बंदरगाह है, जो प्राचीन समय में एक व्यावसायिक बंदरगाह था। मछलीपट्टनम अपनी अलग वस्त्र छपाई कला कलमकारी के लिए प्रसिद्ध है। यहां की साडि़यां तथा वस्त्र देश भर में पसंद किए जाते हैं। विजयवाड़ा दक्षिण में सबसे बड़ा रेल जंक्शन है, जहां से देश के हर भाग के लिए रेल सेवाएं गुजरती है। नगर प्रमुख नगरों से हवाई सेवा से भी जुड़ा है। कई राजमार्ग भी यहां से गुजरते हैं। हर तरह के पर्यटकों के लिए यहां पर सुविधाएं उपलब्ध हैं। खान-पान पूरी तरह से दक्षिण भारतीय। हां, प्रयास करने पर आपको उत्तर भारतीय खाना परोसने वाले रेस्टोरेन्ट भी मिल जाएंगे। भाषा तेलुगू है। यदि पूरी जानकारी के साथ घूमे तो समय बचाया जा सकता है और सैर का बेहतरीन समय है अक्टूबर से फरवरी के मध्य।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.