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क्या दिल्ली की इन छह राजशाही इमारतों के बारे में जानते हैं आप

इंडिया गेट, हजारों लोग हर रोज इसके इर्द-गिर्द बिछी हरी घास की चादर पर सुखद समय की अनुभूति करते हैं। इंडिया गेट के ही चारों ओर राजशाही भवन भी हैं। इनकी भव्यता के प्रति सब आकर्षित हैं, रोचकता से अनभिज्ञ हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 01 Apr 2017 12:51 PM (IST)Updated: Sun, 02 Apr 2017 12:05 PM (IST)
क्या दिल्ली की इन छह राजशाही इमारतों के बारे में जानते हैं आप
क्या दिल्ली की इन छह राजशाही इमारतों के बारे में जानते हैं आप

दरअसल ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम व महारानी मैरी ने प्रथम ïिवश्व युद्ध में मारे गए 60 हजार भारतीय सैनिकों की याद में एक मेमोरियल बनाने की चाहत रखी थी। इसके लिए पहले पुराने किले की तरफ से योजना बनाई गई जो सर एडविन लैंडसीर लुटियन को जरा भी पसंद नहीं आई। लुटियन ने मौजूदा स्थान पर इंडिया गेट बनाने की योजना बनाई और इसका डिजाइन पेरिस में बने एक मेमोरियल की तरह तैयार किया। 1936 में जॉर्ज पंचम की मौत के बाद उनकी याद में इंडिया गेट के पास ही एक मेमोरियल स्थल बनाया गया। कैनोपी में जॉर्ज पंचम की मूर्ति स्थापित की गई। आजादी के बाद इस मूर्ति को हटाकर बाहरी दिल्ली के कोरोनेशन पार्क में लगा दिया गया। और इंडिया गेट के चारों ओर छह शाही परिवारों के लिए भवन बनाए गए। 

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-अतिथियों का साक्षी :- 

अकबर रोड स्थित हैदराबाद हाउस पहला और लुटियन के पंसदीदा भवनों में से एक रहा। विश्व की विख्यात राजनीतिक हस्तियां बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश, ब्लादिमीर पुतिन, गोर्डन ब्राउन, बराक ओबामा के आगमन का भी साक्षी बन चुका है यह भवन। सुरक्षा की दृष्टि से यहां आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध है। आज भी बरकरार इसकी भव्यता इसके सुनहरे इतिहास को दर्शाती है। उस वक्त में इस भवन के निजाम ने 20 हजार पाउंड खर्च किए थे। हैदराबाद के निजाम जो उस समय दुनिया के सबसे अमीर राजाओं में शुमार थे, उन्होंने यहां अपनी सभी बेगम के लिए अलग-अलग कमरे भी बनावाए। शौकीन मिजाज के निजाम ने हैदराबाद में भी चार महल बनवाए हुए थे, जिसे कीमती पत्थरों से भी सजाया था। बहरहाल हैदराबाद हाउस के आर्किटेक्ट लुटियन ने स्तूप का इस्तेमाल तो किया ही साथ ही इसे तितली नुमा आकार में डिजाइन कराया था। इसकी उपमा राष्ट्रपति भवन से भी दी जाती रही है।  

लेखक एंड्रयूज, की किताब 'इंपीरियल दिल्लीÓ में इस भवन की बनावट के दौरान के किस्सों का खूबसूरत जिक्र किया गया है। किताब के मुताबिक लॉर्ड हार्डिंग ने जब पहली बार भवन का जनाना (रानियों के कमरे) देखा तो उसका विशेष वर्णन किया था। उन्होंने बताया कि भवन के पीछे वाले हिस्से में बनाए गए जनाना में कई कमरे बनाए गए, इनमें  छोटे-छोटे रोशनदान बनाए गए और नहाने के लिए कमरे में दो नल लगाए गए। 

-अंग्रेजी वास्तु की नजीर : 

अब आगे बढ़ते हैं बड़ौदा हाउस की ओर अब यहां रेलवे का दफ्तर है। रेलवे का इंजन और गेट पर लिखा बड़ौदा हाउस आपका स्वाद करता है। 

इसका डिजाइन भी लुटियन ने खुद ही किया था। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बड़ौदा के राजा गायकवाड़ की बारह साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार ने सन 1875 में ताजपोशी की थी। इसलिए भी राजा अंग्रेजों के काफी करीबी थे। हैदराबाद हाउस की तरह यहां जनाना नहीं बनाया गया क्योंकि राजा ने एक ही शादी की थी। चूंकि राजाओं को अंग्रेजी वास्तुशिल्प ज्यादा प्रभावित करती थी इसलिए इस महल के हर जर्रे में वही रहन-सहन उभरता है। पहनावे से लेकर रहन सहन यहां तक की महाराजा ने ब्रिटेन के लोगों को ही अपनी आर्मी की देख रेख के लिए भी चुना हुआ था। इस भवन के आगे रानी मैरी का पार्क है जहां जार्ज पंचम की रानी घूमने आया करती थीं। 

-सादगी का प्रतीक : 

अगला पड़ाव हमे पटियाला हाउस की ओर ले जाता है जिसे पंजाब के पटियाला महाराजा भूपिंदर सिंह के लिए बनवाया गया था। इसे भी डिजाइन तो लुटियन ने ही किया था लेकिन इसकी बनावट में सादगी का बहुत खयाल रखा गया। जाहिर है इस पर ज्यादा पैसे खर्च नहीं किए गए।  इसकी संरचना में तितली नुमा ढांचे की आकृति तो उभरती ही है। इसके अलावा छतरियों में पंजाबी शिल्प का भी प्रयोग किया गया है। राजा ने इस भवन को ब्रिटिश के साथ ही पटियाला में बने भवनों की तर्ज पर बनाने की इच्छा जाहिर की थी। वर्ष 1938 के बाद महाराजा यदविंदर सिंह ने यहां समय बिताया। वे अंग्रेजों के साथ क्रिकेट खेला करते थे। वर्ष 1970 के दशक में जब राज शाही को खत्म किया तो इसे सरकार को बेचा गया। उसके बाद यहां जिला अदालत बना दी गई। जिसे आप अब पटियाला हाउस कोर्ट के नाम से जानते हैं। 

-कलाकृतियों का सानी : 

जयपुर हाउस, जहां राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय है। इस भव्य महल में 1700 से ज्यादा आधुनिक कलाकृतियों को रखा गया है। चूंकि लुटियन अन्य भवनों को बनाने में व्यस्त थे इसलिए इस भवन को आर्किटेक्ट आर्थर ब्लूम फील्ड ने डिजाइन किया। इसलिए इसकी बनावट बाकी तीन भवनों से कुछ अलग प्रतीत होती है। जयपुर हाउस राजा सवाई मानसिंह के लिए बनवाया गया था। इस भवन को सजाने के लिए हाथी के चित्रों का खासकर इस्तेमाल किया गया। हालांकि इस भवन में भी स्तूप बनाया गया जिसके दोनों ओर कमरे भी बनाए गए। स्तूप (संस्कृत और पालि से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ 'ढेर' होता है) एक गोल टीले के आकार की संरचना है जिसका प्रयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है। 

इंडिया गेट के आसपास बने भवनों में अब बीकानेर भवन की ओर चलते हें। बीकानेर के राजा गंगा सिंह के लिए बनवाए गए इस भवन की अभिकल्पना भी आर्थर ब्लूम फील्ड ने की थी। इसे कई मायनों में ऐतिहासिक माना जाता है। आजादी की लड़ाई के दौरान हुई बहुत सी अहम बैठकों का भी साक्षी रहा है। यहीं पर करीब 526 शाही प्रदेशों, ब्रिटिश राज्यों के  एकीकरण करने के लिए बैठकें हुईं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गोल मेज सम्मेलन की बैठक में जाने से पहले यहीं कई नेताओं के साथ बैठक की थीं।

तो होता ग्वालियर हाउस भी ...

सर एडविन लैंडसीर लुटियन ने इंडिया गेट के चारों ओर छह भवनों की योजना बनाई थी। इसमें ग्वालियर हाउस नहीं बनाया गया था। इसके पीछे भी कहानी है। इन छह रियासतों व सूबे के महाराजाओं को ब्रिटिश सरकार ने इंडिया गेट के पास जगह दी। लेकिन ग्वालियर के महाराजा ने खुद ही भवन बनवाने से मना कर दिया। ऐसा बताया जाता है कि सन 1803 में पटपडग़ंज मराठों के अधीन था, उस समय यहां दौलत राम सिंधिया राजा हुआ करते थे। वर्ष 1803 में यहां ब्रिटिश और मराठे सिंधिया के बीच लड़ाई हुई जिसमें मराठों की हार हुई थी। इस युद्ध के तीन दिन बाद अंग्रेजों ने इस शहर पर कब्जा किया था। यह पटपडग़ंज की लड़ाई के नाम से मशहूर है। इसी लड़ाई में हार के कारण इनके वंशजों ने इंडिया गेट पर भवन नहीं बनवाया। सुमांता भौमिक की किताब 'प्रिंसली पैलेस' में लुटियन द्वारा डिजाइन किए गए भवनों का जिक्र है। किताब के मुताबिक राजधानी में अलग अलग प्रदेशों के कुल 28 भवन बनाए गए। लेकिन इंडिया गेट के पास सभी महत्वपूर्ण भवन बने। 

स्वपना लिडल, इतिहासकार

मुगल वास्तुकार को किया नजरअंदाज ...

आर्किटेक्ट अपने बिट्रिश वास्तुकला के लिए जाने जाते थे। अगर सब कुछ उनके मुताबिक होता तो शहर में बने भवन कुछ और ही अंदाज में होते। लेकिन उस समय के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने लुटियन को तमाम भवनों में भारतीय वास्तुकला को भी शामिल करने को कहा। इसलिए यहां शेर, मोर, हाथी जैसी प्रतिमाएं भी नजर आती हैं। घुमावदार आर्क मुगल वास्तुकला की विशेष पहचान मानी जाती थी लेकिन इसका भी यहां प्रयोग नहीं किया गया। इसकी जगह रोम वास्तुकला के तहत गोल आर्क में दरवाजे और खिड़कियां बनाई गईं। दरअसल ब्रिटिश लुटियन शहर को शाहजहांनाबाद से अलग दिखाना चाहती थी। इसके अलावा लुटियन ने मिस्र के पिरामिड आकार वाले पतले व लंबे खंभों का भी खूब इस्तेमाल किया। बड़ौदा हाउस और हैदराबाद हाउस में इन खंभों को देखा जा सकता है। इसके अलावा फूलदान आकार का डिजाइन बड़ौदा हाउस में देखने को मिलेगा। 

डॉ. प्रियालीन, एचओडी, स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग 

प्रस्तुति : विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली  


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