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इस बावड़ी में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया रहस्य बन गया

इस बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि यहां अरबों रुपए का खजाना छुपा हुआ है। इसमें ऐसी सुरंगों का जाल है जो दिल्ली, हिसार और लाहौर तक जाती हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 09 Nov 2016 03:05 PM (IST)Updated: Fri, 18 Aug 2017 11:20 AM (IST)
इस बावड़ी में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया रहस्य बन गया
इस बावड़ी में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया रहस्य बन गया

हरियाणा में बनी चोरों की बावड़ी का इतिहास में एक खास स्थान है। मुगलकाल में बनी ये बावड़ी यादों से ज्यादा रहस्यमयी कहानियों के लिये जानी जाती है। इस बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि यहां अरबों रुपए का खजाना छुपा हुआ है। इसमें ऐसी सुरंगों का जाल है जो दिल्ली, हिसार और लाहौर तक जाती हैं। इनाडु इंडिया के अनुसार इतिहास में इनका कहीं कोई जिक्र ही नही है। ये ऐसे प्रश्न हैं जो हम सब के लिये रहस्य थे और रहस्य ही बने हुए हैं। चोरों की इस बावड़ी को 'स्वर्ग का झरना' भी कहा जाता है।

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बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख केअनुसार इसका निर्माण 1658-59 ईसवी में मुगल राजा शाहजहां के सूबेदार सैद्यू कलाल ने करवाया था। इसमें एक कुआं है जिसके अंदर जाने के लिये 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती है। इसमें राहगीरों के आराम करने के लिये कमरे भी बनवाए गए थे। सरकार द्वारा उचित देखभाल न किए जाने के कारण यह बावड़ी जर्जर हो रही है। इसके बुर्ज व मंडेर गिर चुके हैं। कुएं का पानी काला हो चुका है।

इस बावड़ी को लेकर वैसे तो कई कहानियां गढ़ी गई हैं, लेकिन इनमें प्रमुख है ज्ञानी चोर की कहानी। कहा जाता है कि ज्ञानी एक शातिर चोर था। धनवानों को लूटता और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता था। अगले दिन फिर राहजनी के लिए निकल आता था। लोगों का यह अनुमान है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बावड़ी में मौजूद है। जो भी इस खजाने की खोज में अंदर गया, वो इस बावड़ी की भूल-भुलैया में खोकर खुद एक रहस्य हो गया।

इतिहासकारों के अनुसार ज्ञानी चोर के चरित्र का जिक्र इतिहास में कहीं नहीं मिलता। इतिहासकार डॉ. अमर सिंह ने कहा कि पुराने जमाने में पानी की जरुरतों को पूरा करने के लिए बावडिय़ां बनाई जाती थीं। इतिहासकारों को चाहिए कि बावड़ी से जुड़ी लोकमान्यताओं को ध्यान में रखते हुए फिर से अपनी रिसर्च शुरु करें।

बावड़ी के संरक्षक श्रीराम शर्मा के अनुसार विभाग द्वारा बावड़ी की मरम्मत का काम शुरु किया गया था। लेकिन 1995 में प्रदेश में आई बाढ़ की वजह से और फिर 1996 में भी यहां पानी भर गया था। मलबा बरसों से पड़ा है, कोई एक-दो दिन में तो यह सब हो नहीं जाता। विभाग के मुख्यालय को हर पहलू की जानकारी है। ऐतिहासिक धरोहर को हर हाल में सहेजकर रखा जाएगा।

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