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इस देश में हैं एक ऐसी 'क्रेजी आंटी', जो लाखों महिलाओं के लिए बन गई हैं मिसाल

यह देश महिलाओं के उत्‍थान के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। घर की दहलीज के भीतर पर्दे की आड़ में महिलाओं की आजादी और अधिकारों का हनन किया जाता है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 01:14 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 08:08 PM (IST)
इस देश में हैं एक ऐसी 'क्रेजी आंटी', जो लाखों महिलाओं के लिए बन गई हैं मिसाल
इस देश में हैं एक ऐसी 'क्रेजी आंटी', जो लाखों महिलाओं के लिए बन गई हैं मिसाल

आज महिला दिवस पर हर कोई महिला सशक्तिकरण की बातें कर रहा है। तो चलिए हम भी आपको इस मौके पर एक ऐसी महिला से मिलवाते हैं, जो महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं। जी हां, बात कर रहे हैं मोसम्‍मत जैसमिन की जो बांग्‍लादेश की इकलौती महिला रिक्‍शा चालक हैं। जबकि यह देश महिलाओं के उत्‍थान के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। घर की दहलीज के भीतर पर्दे की आड़ में महिलाओं की आजादी और अधिकारों का हनन किया जाता है। ऐसे समाज की बीच, वो भी मोसम्‍मत ने पुरुषों के ऐसे कार्यक्षेत्र में दखल दी है जिसमें महिलाओं की लोग कल्‍पना तक नहीं करते होंगे।

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हालांकि अब तो ऑटो रिक्‍शा के क्षेत्र में भारतीय महिलाएं सड़कों पर उतर चुकी हैं, लेकिन रिक्‍शा चालक के तौर पर अपनी पहचान बनाने वालीं मोसम्‍मत लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत हैं। वो खुद को पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं आंकती और रिक्‍शा चलाकर अपने घरवालों का पालन-पोषण कर रही हैं।

बांग्लादेश के चटगांव शहर में रहनी वालीं 45 साल की मोसम्मत को लोग 'क्रेजी आंटी' के नाम से भी जानते हैं। पति के छोड़कर चले जाने के बाद उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और यही वजह है कि आज वो एक मिसाल बन चुकी हैं। छह-सात साल पहले मोसम्‍मत के पति ने दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद वो और उनके तीन बच्‍चे अकेले पड़ गए। घर चलाने के लिए शुरुआत में मोसम्मत ने दूसरे के घरों में काम करना शुरू किया, लेकिन इससे परिवार का गुजारा नहीं हो पा रहा था। उन्होंने फैक्ट्रियों में भी काम किया, लेकिन ज्यादा देर ड्यूटी करनी पड़ती थी और उस हिसाब से पैसे नहीं मिलते थे। वहीं अपने बच्चों को वो समय भी नहीं दे पा रही थीं।

इसके बाद मोसम्‍मत ने पड़ोसी से किराए पर रिक्‍शा लेकर चलाना शुरू किया, लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं रहा। लोग उनका मजाक उड़ाते, कुछ लोग तो उनके रिक्‍शे पर चढ़ने से डरते। आते-जाते लोग ताने मारते, इस्‍लाम की दुहाई देते हुए कहते कि औरतों को ऐसे खुलेआम सड़कों पर घूमने की इजाजत नहीं है। हालांकि लोगों की बातों, उनके व्‍यवहारों से मोसम्‍मत भले ही आहत होतीें, मगर बच्‍चों के ख्‍याल आते ही अपने काम में जुट जातीं।

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मोसम्मत रिक्शा चलाते वक्‍त अपनी सुरक्षा का भी ख्याल रखती हैं, इसलिए हेलमेट लगाकर रिक्शा चलाती हैं। मोसम्मत रोजाना तकरीबन आठ घंटे रिक्शा चलाती हैं, जिसमें 600 टका (करीब 500 रुपए) कमा लेती हैं। वहीं वो अपनी जैसी दूसरी औरतों से कहना चाहती हैं कि जब तक वो डरती रहेंगी, तब तक समाज उन्हें दबाता रहेगा। हर महिला को समझना होगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, कम से कम दूसरों के सामने हाथ फैलाने से तो अच्‍छा ही है।

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