क्या दिल्ली के कोल्हापुर, मथुरा और रोहतक से अंजान हैं आप
अब यह शोध का विषय है कि उत्तर दिल्ली की एक सड़क का नाम कोल्हापुर रोड रखने के पीछे क्या कारण रहा होगा?
आप हैरान हो सकते हैं कि अपनी दिल्ली में कोल्हापुर, लखनऊ, मथुरा और रोहतक भी हैं। यह सच है। शायद ही किसी अन्य शहर के भीतर इतने शहर हों। मतलब शहरों के नामों पर इतनी सड़क हों। अब जरा देखिए कि यहां पर कोल्हापुर रोड है। हालांकि इस सड़क के आसपास कभी मराठी परिवार आकर नहीं बसे फिर भी यह सड़क हो गई कोल्हापुर रोड। यह है घंटाघर और मलकागंज के बीच में। इधर सड़क के दोनों तरफ नीचे दुकान और ऊपर घर हैं। करीब 75 साल से इस सड़क का नाम कोल्हापुर रोड है। दिल्ली यूनिवर्सिटी का मेन कैंपस और चंद्रावल जैसा दिल्ली का पुराना गांव भी इसी के नजदीक है। सबको मालूम है कि कोल्हापुर महाराष्ट्र का प्रमुख शहर है। मुंबई से करीब 400 किलोमीटर दूर स्थित है कोल्हापुर। अब यह शोध का विषय है कि उत्तर दिल्ली की एक सड़क का नाम कोल्हापुर रोड रखने के पीछे क्या कारण रहा होगा?
अब चलते हैं लखनऊ रोड। इधर सेना का एक प्रमुख अस्पताल और रिसर्च सेंटर है। लखनऊ रोड है तिमारपुर के करीब। इधर ही है बनारसी दास एस्टेट जैसा पॉश आवासीय क्षेत्र। विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है लखनऊ रोड। इधर पंजाबी और वैश्य समाज का दबदबा है। मतलब इन दोनों समुदायों की आबादी खासी है। अब इधर पीजी भी खूब खुलने लगे हैं जिनमें छात्र-छात्राएं रहते हैं। लखनऊ रोड पर घूमते हुए आपको उस शहर की नफासत की बजाय दिल्ली के रंग मिलेंगे। यानी खाटी दिल्ली वालों का क्षेत्र है लखनऊ रोड। और अगर बात करें रोहतक रोड की तो माना जा सकता है कि क्योंकि यह सड़क सीधे जाटलैंड यानी रोहतक पहुंचती है। रोहतक रोड चालू होती है झंडेवालान मंदिर के करीब से। उसके बाद यह करोल बाग, पंजाबी बाग, पीरागढ़ी चौक होते हुए टीकरी गांव पहुंचती है। टीकरी गांव दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर लगने वाला आखिरी गांव है। इधर अब भी खेती होती है। इसके बाद हम हरियाणा में प्रवेश कर लेते हैं। तब शुरू हो जाता है जिला बहादुरगढ़। बहादुरगढ़ पहले या कहें कि 1997 तक रोहतक का अंग था। तब इसे हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने जिला बना दिया था। आपको रोहिणी, पीतमपुरा, अशोक विहार, शालीमार बाग समेत उत्तर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रोहतक के सैकड़ों परिवार मिल जाएंगे। इसके अलावा रोहतक का दिल्ली से इसलिए भी गहरा नाता है कि वहां से सैकड़ों लोग रोज राजधानी और एनसीआर के शहरों में नौकरी करने के लिए आते हैं। और सुनिए मथुरा का भी कुछ अंश तो दिल्ली में है। आइटीओ से निकलकर जब हम प्रगति मैदान और चिडिय़ाघर वाली सड़क पर आते हैं तो हम मथुरा रोड पर होते हैं। वास्तव में बहुत अहम सड़क है यह। मथुरा रोड सीधे आपको कृष्ण की नगरी यानी मथुरा लेकर जाती है। दिल्ली में इसकी सीमा बदरपुर में समाप्त हो जाती है। दरअसल 1967 तक जिस सड़क को बहादुरशाह जफर मार्ग कहा जाता है, उसे भी मथुरा रोड ही कहा जाता था। और दिल्ली में अजमेरी गेट, कश्मीरी गेट और लाहौरी गेट तो हैं ही।
विवेक शुक्ला
लेखक और इतिहासकार