अगर बिहारी जायकों का लेना है आनंद तो जरूर जाएं इस जगह
बिहार के असल व्यंजनों का स्वाद लेना है तो राजधानी स्थित इस जगह पर जरूर जाएं। यहां बिहार के पारंपरिक जायके विदेशी पर्यटकों तक की खास पसंद होते हैं।
बिहार निवास के रेस्तरां पॉट बेली में प्रवेश करते ही वहां के अंचल का सुखद एहसास होने लगता है। बांस से बने बाड़े, बेत से बनी छप्पर, उससे झूलती हुई लालटेन को छू कर गुजरती माघी हवाएं। यह गली एक ऐसे आंगन की ओर ले जाती है जिसमें स्वाद की बगिया बसती है। बगिया इसलिए क्योंकि इसमें केले के पेड़ हैैं, तो दूर दराज के रेलवे हाल्ट का अहसास कराने वाले हरे रंग के बाड़े भी हैैं जिस पर लाल, हरी, पीली रंग वाली भारी भरकम लाइटें लगी हैैं। लोहे की गोल मेज के चारों ओर रखीं सफेद कुर्सियां हैं। मानों आप रेस्तरां में नहीं बल्कि गांव में घर के आंगन में हों।
सादे गोल टेबल पर रखीं रंग बिरंगी बोतलों में पानी सर्व किया जाता है। मेन्यू कार्ड भी बेहद दिलचस्प है।
इसमें लिट्टी-चोखा की थाली के साथ बिहारी अंचल की तरह तरह की थालियां भी हैं, इसमें भोजपुरी थाली, मैथली थाली, तरकारी थाली, चंपारण थाली शामिल हैं। लेकिन इन सभी थाली के जायकों का स्वाद लेने से पहले दिल खुश कर देने वाले स्टार्टर का स्वाद लेना भी जरूरी है।
खाने से पहले खाए जाने वाले स्टार्टर के नाम में ही स्वाद भरा हुआ है। पकौड़ा बास्केट, साबूदाना बास्केट, बगिया बास्केट, पराठा बास्केट को मिट्टी के बास्केट में ही परोसा जाता है। हंसनुमा इस बास्केट में दो छोटी बड़ी कटोरी में लजीज हरी चटनी और तरह तरह के पकौड़ों की वैरायटी परोसी जाती है। दिल खुश कर देने वाले इस अनूठे स्वाद के बाद भी बहुत कुछ है जिसका जायका लिया जा सकता है।
पॉट बेली की संचालिका पूजा साहू बताती हैैं कि राजधानी में बिहार के जायकों के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। बिहार से ताल्लुक रखने के कारण वहां के अंचल में बसे स्वाद के खजाने से चीर परिचित थी, इसलिए जायके के सुहाने सफर की शुरुआत यहीं से छह साल पहले की। मेरा मकसद मां के हाथों के बने जायकों से लोगों को रूबरू कराना था। बिहार के कोने कोने से आने वाले लोगों को उनके अंचल का जायका व मां के हाथों से बने सादा खाने की भी याद करवा देता है। अब तो दूतावासों के राजनयिकों को भी बिहारी खाना बहुत भाने लगा है। यहां की खास बात यहां के जायके और उसके साथ परोसी जाने वाली चटपटी चटनी है। हर थाली में इस स्वाद को जरूर परोसा जाता है। तीसी (अलसी) की चटनी, ओल (जिमीकंद)का अचार, बैैंगन और आलू की चटनी, सिलबट्टे पर पिसी धनिया, मिर्च की चटनी का स्वाद यहीं लिया जा सकता है।
झींगा मछली झोल
मछली खाने के शौकीनों को लिए भी यह जगह मुफीद सबित हो सकती है। यहां बिहारी स्टाइल में पकाई गई झींगा मछली, सरसों के झोल में पकी रोहू मछली, पोस्ता मछली का स्वाद लिया जा सकता है।
मिट्टी की सौंधी खुशबू और मटन मटका
मटन को पकाने के लिए जहां खड़े मसालों का इस्तेमाल किया जाता है वहीं इसे पकाने के लिए मिट्टी के बर्तन का प्रयोग किया जाता है। चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में मटन को धीमी आंच में पकाया जाता है, फिर इसे परोसने के लिए भी मिट्टी के चुक्के (कुल्हड़) का ही इस्तेमाल किया जाता है। जाहिर है देसी तरीके से परोसे जाने वाले इस जायके का स्वाद लाजवाब और लजीज होगा।
किस्म-किस्म की थालियों का स्वाद
भोजपुरी थाली, तरकारी थाली, मैथली थाली, लिट्टी-चोखा, दाल पिट्ठी, दाल भात थाली का स्वाद यहां लिया जा सकता है। इन थाली में मौसमी तरकारी, बैंगन का भरता, जिमीकंद का भरता, तोरी का भरता के साथ पालक की पूरियां, दाल की पूरियां और रोटियां परोसी जाती हैं।
कुछ मीठा भी जरूरी है
लजीज खाने के बाद कुछ मीठा न हो तो खाना अधूरा ही रह जाता है। यहां की खास बात यहां के स्वीट डिश हैं जो हर रोज अलग अलग रखे जाते हैैं। एक दिन में एक ही तरह की स्वीट डिश तैयार की जाती है। मखाना खीर, चावल खीर, गुड़ की खीर और मुंह में घुल जाने वाले मालपुए का स्वाद यहां लिया जा सकता है।
प्रस्तुति : विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली