खेलों के रोमांच के साथ चाहिए योग की शांति, तो जाएं हिमालय की गोद ऋषिकेश
प्रकृति प्रेमी हैं। घुमक्कड़ी अंदाज है और योग-ध्यान-सुकून-शांति के लिए किसी उपयुक्त स्थल की खोज में हैं तो योग की अंतरराष्ट्रीय राजधानी ऋषिकेश आपकी बाट जोह रहा है।
ऋषिकेश का अनूठा अहसास
हरिद्वार आकर आप शांत प्रवाहिनी गंगा की तरह आध्यात्मिक अनुभूति करते हैं तो यहां से मात्र करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऋषिकेश आपको आध्यात्मिकता के शीर्ष पर पहुंचा सकता है। इस स्थल को प्राचीन काल में कई ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना के लिए चुना था। शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में प्राकृतिक खूबसूरती के बीच सुबह-शाम गूंजने वाली वेद ऋचाएं यहां की अध्यात्मिक शांति की संजीवनी हैं। यहीं से गंगा की धारा शांत-संयमित होकर गंगासागर की ओर बढ़ती है। योग-ध्यान के इस केंद्र को आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने भी हिमालय गमन से पहले अपना पड़ाव बनाया था। राष्ट्रपिता गांधी को यहां गंगा की लहरें खूब लुभाती थीं। महर्षि महेश योगी ने इस स्थल को कर्मभूमि बनाया और 'चौरासी कुटी' की स्थापना की। तकरीबन 50 साल पहले दुनिया के मशहूर इंग्लिश रॉक बैंड बीटल्स के सदस्य पहली बार जब यहां आए तो ऋषिकेश से निकल कर पश्चिम में भी पूरब की लाली फैलने लगी। महर्षि महेश योगी के साथ-साथ डॉ. शिवानंद सरस्वती, डॉ. स्वामी राम, स्वामी दयानंद सरस्वती, बाबा काली कमली वाले की भी ऋषिकेश कर्म भूमि रही है। पर केवल योग-ध्यान ही नहीं, आप चाहें तो यहां खुद की गर्मजोशी, साहसिक जज्बे की भी परीक्षा ले सकते हैं! दरअसल, यहां तमाम साहसिक-रोमांचक खेलों का अनूठा आनंद लिया जा सकता है, क्योंकि यह 'भारत के रोमांचक खेलों की राजधानी' के नाम से भी जो जाना जाता है।
ऋषिकेश से पहाड़ चढ़ेगी रेल
विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारतीय रेल अब ऋषिकेश से हिमालय की पहाडिय़ों में रेल चढ़ाने की तैयारी में है। भारतीय रेल के रेल विकास निगम ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का काम भी शुरू कर दिया है। भारतीय रेल की इस महत्वकांक्षी रेल परियोजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि 125 किलोमीटर लंबी यह रेल लाइन 105 किलोमीटर का सफर सुरंगों के भीतर तय करेगी। इस रेल लाइन पर करीब 16 सुरंगें और 16 रेल पुल बनाए जा रहे हैं। भारत में रेलवे की सबसे लंबी 15.100 किमी की सुरंग भी इसी रेल परियोजना पर तैयार होनी है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक कुल 11 रेलवे स्टेशन होंगे। रेल विकास निगम के परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश मालगुड़ी के मुताबिक, परियोजना पर काम शुरू हो गया है। परियोजना के द्वितीय चरण के लिए भी वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है।
टिहरी झील
ऋषिकेश से 85 किलोमीटर की दूरी पर टिहरी बांध है, जो गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बांध की ऊंचाई 261 मीटर है जो इसे विश्र्व का पांचवां सबसे ऊंचा बांध बनाती है। इस बांध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। इस बांध के बनने से यहां भागीरथी व भिलंगना घाटी पर 42 वर्ग किलोमीटर लंबी कृत्रिम झील का निर्माण हो गया है। इस झील के नीचे पुराने टिहरी शहर के रूप में एक समृद्धशाली संस्कृति समाधि लिये हुए है। सर्दियों में झील का जलस्तर घटने पर अभी भी झील के बीच इस सभ्यता के निशान नजर आ जाते हैं। 42 वर्ग किमी. लंबी यह झील में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां साहसिक पर्यटन की वोटिंग, रॉफ्टिंग, वाटर स्कूटर जैसी गतिविधियां भी संचालित की जाती हैं।
डाक से घर-घर गंगा जल
केंद्र सरकार ने ठीक एक वर्ष पूर्व गंगा जल को डाक के माध्यम से घर-घर तक पहुंचाने की योजना शुरू की थी। इसके तहत ऋषिकेश, हरिद्वार व गंगोत्री से गंगाजल भरकर देश-विदेश तक पहुंचाने की योजना थी लेकिन अभी इसके लिए सिर्फ ऋषिकेश से ही गंगाजल भरा जा रहा है। ऋषिकेश में मुनि की रेती के शिवानंद नगर स्थित डाकघर को इसका जिम्मा सौंपा गया है। डाक विभाग की इस योजना का एक वर्ष का समय पूरा हो गया है और अब तक देश-विदेश में करोड़ों लीटर गंगाजल सप्लाई की जा चुकी है। डाक अधीक्षक टिहरी जीडी आर्य के मुताबिक, 'देश भर में गंगा जल की मांग बढ़ रही है पर अभी तक डाकघर के पास ढांचगत सुविधाओं का विकास नहीं हो पाया है।'
चौरासी कुटी
राजाजी पार्क के गौहरी रेंज के अंतर्गत स्थित चौरासी कुटी आने के बाद आप न केवल अतीत की ऐसी यादों में खोने लगेंगे बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर भी गर्व की अनुभूति होगी। महर्षि महेश योगी ने वर्ष 1962 में यहां 84 कुटिया, एक भव्य आश्रम और ध्यान करने के लिए एक मेडिटेशन हॉल बनवाया था। इसके लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 20 साल की लीज भी दी थी। यह स्वर्गाश्रम क्षेत्र में स्थित है, जिसे शंकराचार्य नगर के नाम से भी जानते हैं। चौरासी गुंबदनुमा इन कुटिया की शैली लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर कर देती हैं। वर्ष 1980 में राजाजी राष्ट्रीय पार्क बनने के बाद इसे 1985 में बंद कर दिया गया था, जो करीब दो दशक तक बंद रहा।