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युवा प्रतिभा: वो दिल्ली वाली लड़की है

ना मानो कि मेरी आंखों के नीचे/एक पौध उग रहा है झुर्रियों का

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 10:16 AM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 10:23 AM (IST)
युवा प्रतिभा: वो दिल्ली वाली लड़की है
युवा प्रतिभा: वो दिल्ली वाली लड़की है

1.

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ना मानो, मैं फिसल रही हूं/बारिश की

बूंदों-सी अंजुरी से

ना मानो, ठंडी बयार रोज छोड़कर जाती

है/सुलगते कोयले मेरी देहरी पे

ना मानो, मेरा कद घट रहा है/बच्चों की

बढ़ती गिनती में

ना मानो कि मेरी आंखों के नीचे/एक पौध

उग रहा है झुर्रियों का

2.

प्रबल प्रबल प्रबल हुए

ये भाव फिर से जल हुए

बढ़ चलें हवा के संग

जो आज थे वो कल हुए

3.

ढूंढ़ लेना तुम मुझे ,मेरे खोने से पहले

खेल के इस रेल में अब समय का चक्र

छूट चुका है

लुका-छिपी के बीच छलिया, निगोड़ा,

मुआं माधव उतर आया है

देखो......

फिर कातर नजरों से कात रहा है सूर्य

से सूत

बस कुछ बरस ही तो बीते हैं लेखन की उबड़-

खाबड़ जमीन पर पांव धरते हुए। थोड़ी कच्ची,

थोड़ी पक्की रचनाओं वाली ‘दिल्ली गर्ल’

रμता-रμता हस्ती का सामां हो रही है। जिंदगी

ने उसे बहुत तपाया है, हालात ने बहुत सबक

दिए और मुसीबतों ने मजबूती दी। हौसलों से

भरी महानगरीय लड़की अब गांवों-कस्बों में रहा

करती है। जब जो जी चाहा, लिख लिया। कविता

हो या कहानी, उसके पास दोनों हुनर कच्चे-पक्के

से हैं। कविताओं में जब उबाल खाती है तो कहानी

में थिर दिखाई देती है। हौले-हौले कथानक को

बुनती हुई अंजाम तक पहुंचती दिखती है।

उसकी कविताएं ज्यादा प्रतिक्रियावदी हैं,

कहानियां तकलीफों का जायजा लेती हैं। कविकहा

नीकार, बलिया में बच्चों को हिंदी-अंग्रेजी

पढ़ाने वाली दिल्ली गर्ल का सुना-अनसुना सा

नाम है संजना तिवारी। कविता और कहानी से

अपने प्रेम के बारे में वह कहती हैं, ‘मैंने कविता

से कहानी तक के सफर में खुद को कहानी के

अधिक करीब पाया है। कहानी में मैं खुद को बहुत

कुछ कह पाने में सक्षम और आनंदित महसूस

करती हूं। हालांकि कविता की तरह कहानी की

भी अपनी एक सीमा है लेकिन कहानी लिखकर

मुझे अधिक आत्मिक सुख मिलता है।’

कविताओं में वह अक्सर भावुक हो जाया

करती है। कहानी का आनंद कविता में दुख

बनकर छलछला उठता है। जीवन के संघर्ष और

अभाव ने जब जब सताया, वे कविता में पनाह

लेने चली गईं। कहानी में समस्याओं का समाधान

ढूंढ़कर उसे हैप्पी एंडिंग तक पहुंचाने की ख्वाहिश

जोर मारती है और कविताएं विलापों और

हाहाकारों से भरी हुईं। कहानी उनकी इच्छाओं के

नियंत्रण में हैं लेकिन कविताएं नहीं, वे सच की

तरफ कवि से छिटककर दूर चली जाती हैं। दोनों

विधाओं में एक ही लेखक कितना विरोधाभासी

हो सकता है, यह संजना में दिखता है। यह

अंतर्विरोध कई बार बेमेल दिखता है। कई बार

हम अपने कल्पित संसार को रचनाओं में रोपते

हैं। यही एक दुनिया है जो हमारे हाथ में हैं। संजना

इस बात को जानती है। उनकी हाल में कथादेश

में छपी एक चर्चित कहानी ‘हैव अ टी विद मन

बाबू’ में मुख्य पात्र ‘मन बाबू’ दुनिया का पाखंड

नहीं सह पाता और न चाहते हुए भी कहानीकार

के हाथों से फिसलकर किताब में समा जाता है।

कविता में स्त्री का दुख लिखने वाली कहानीकार

अपनी इस कहानी में शहरी और अभिजात्य स्त्री

पात्रों के विरुद्ध, कहानी में निर्ममता की हद तक

खड़ी नजर आती हैं। यानी यहां तक आते-आते

पुरानी प्रतिबद्धताएं ध्वस्त होती दिखाई देती हैं

और लेखक बिना भेदभाव के समाज के अंतिम

व्यक्ति के पक्ष में खड़ा हो जाता है। स्त्री लेखक

के लिए यह जोखिम भी है और चुनौती भी कि वह

खुद को पक्षपात से बचा ले जाए

गीताश्री


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