नारी सशक्तिकरण: लता की दादी को पोता नहीं पोती की चाह
सोनीपत के गांव तिहाड़ मलिक निवासी कवयित्री लता मलिक ने दादी पोती के रिश्ते का यह नया अंदाज अपनी कविताओं के माध्यम से बखूबी व्यक्त किया है।
हर दादी की चाह अपने पोते को गोद में खिलाने की होती है, मगर लता दादी की चाह कुछ अलग हटकर है। वह न केवल पोती को गोद में खिलाना चाहती है, बल्कि उसे पोते से बढ़कर दुलार देना चाहती है। सोनीपत के गांव तिहाड़ मलिक निवासी कवयित्री लता मलिक ने दादी पोती के रिश्ते का यह नया अंदाज अपनी कविताओं के माध्यम से बखूबी व्यक्त किया है। उनकी कविताओं में दादी पोती के रिश्तों की संपूर्ण कहानी मिलती है।
इनकी एक कविता की बानगी कुछ यूं है:
’जब पोती ने अपनी चुन्नी से लहंगा बनाया
बड़े चाव से उसने गोटा लगाया
उसे पहनकर जब जोर से ठुमका लगाया
तो मुझे मेरा बचपन याद आया
बेटी तो बेटी होती है दादी का
बचपन पोती है।
इस कुदरती तोहफे को आंखों में बसाइए
बेटी बचाइए बेटी बचाइए
जाते जाते सुनते जाए‘
दादी चाहे पोती आए
कविताओं को
सुनकर हर कोई इन्हें गुनगुनाने को मजबूर हो जाता है।
सूरजकुंड में आयोजित दूसरे कृषि शिखर सम्मेलन में लता किसानोें और ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली महिलाओं को
बेटी के अधिकारियों के प्रति जागरूक कर रही है। उन्होंने बेटी के अधिकारियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अपनी कविताओं को माध्यम बनाया है।
लता बताती है कि ग्रामीण परिवेश से आने के कारण उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि गांव के लोग बेटियों को अधिकार देने के प्रति अभी भी जागरूक नहीं ह ं, जबकि प्रदेश सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लता की कविताओं को कई जिलों में स्कूलों ने अपनी दीवारों पर भी लगाया है।
नारी सशक्तीकरण के लिए भी करती हैं काम :
लता न सिर्फ दादी और पोती के रिश्तों पर कविताएं लिखती है, बल्कि नारी सशक्तीकरण के लिए काम
करती है। उन्होंने महिलाओं के लिए एक एनजीओ बनाया हुआ है, जिसमें 60 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई है।
दीपक पांडेय ’ फरीदाबाद