जब बच्चों में पनपने लगे जलन की भावना
अगर आप पातें हैं कि आपके बच्चे अपने फ्रेंड्स या अपने सिबलिंग्स से किसी बात को लेकर जलन की भावना रखते हैंतो उन्हे प्यार से समझायें।
ईर्ष्या एक ऐसा भाव है जो किसी भी इंसान के अंदर बहुत जल्दी घर कर जाता है। इसी तरह ये बच्चे के अंदर भी ये बहुत जल्दी देखने को मिलता है। ये भावना उनके अंदर उनके ही फ्रेंड्स, क्लासमेट्स या उनके भाई बहन से आती है। एक सामान्य सी वजह जैसे अगर उनके फ्रेंड्स के पास नया साईकिल है तो इस बात से उन्हें जलस हो सकती है। लेकिन अगर बचपन से ही इस भावना को कंट्रोल ना किया जाए तो ये आगे चलकर उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। आइए जानते हैं कैसे उनकी आदतों से डील किया जा सकता है। सबसे पहले ये जानना बेहद जरुरी है कि कुछ पेरेंटिग मिस्टेक भी हैं जिससे बच्चों में ये भावना उत्पन्न होती हैं-
बच्चों को बिगाड़ना
अगर आप बच्चे को बहुत ज्यादा प्यार दुलार करते हैं तो वे जिद्दी स्वभाव के हो जाते हैं। अगर घर पर कोई नया मेहमान या नया बच्चा आता है तो वो वे थोड़ा इन्सिक्योर फील करने लगते हैं। इस वजह से वे अवसाद में भी जा सकते हैं। उन्हें घर पर अपना अस्तित्व खतरे में लगने लगता है।
जरुरत से ज्यादा सुरक्षा
एक पेरेंट जब अपने बच्चे की जरुरत से ज्यादा सुरक्षा करते हैं तो ये भी बच्चे के लिए नुक्सानदेह हो सकता है। इसी तरह जब वे अपने सामने किसी कॉंफिडेंट बच्चे को देखते हैं तो अपने आप को कमजोर फील करने लगते हैं।
सख्ती करने वाले पेरेंट
बच्चों पर जरुरत से ज्यादा कंट्रोल करना भी सही नहीं माना जाता है। ऐसा करने से भी उनके अंदर ईर्ष्या की भावना पैदा होती है। उनमें कॉंफिडेंस कम होता है और वे अपनेआप को अपने सिबलिंग्स से कमतर आंकते हैं।
दूसरों से तुलना
एक दूसरी सबसे बड़ी मिस्टेक जो पेरेंट करते हैं वो ये है कि वे अपने बच्चों की तुलना किसी दूसरे बच्चे से करते हैं। ये सामान्य है कि किसी से भी तुलना आपको ईर्ष्या करने को मजबूर कर देता है। अनहेल्दी कॉंपटीशन भी उनके अंदर ईर्ष्या की भावना पैदा कर सकती है।
बर्थ क्रम
बच्चों के जन्म के क्रम पर भी ये प्रभाव पड़ता है। कभी पेरेंट बड़े बच्चे की अपेक्षा छोटे नए बच्चे पर ज्यादा अटेंशन देते हैं जिससे बड़े बच्चों में जलन की भावना पैदा हो जाती है।
कैसे डील करें
उनकी जलन की भावना को उनका लक्ष्य बनायें
बच्चे के अंदर जिस बात को लेकर ईर्ष्या है उसी को उनके लिए एक लक्ष्य बना दें। उन्हें जलने के बदले उस लक्ष्य को पाने की तरफ एफर्ट लगाने को कहें। प्रत्येक बच्चे में अलग अलग क्षमता होती है और हर बच्चा अपने आप में युनिक होता है। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें।
उनकी बातों को सुनें
उनकी बातों को ध्यान से सुनें कि वे आखिर किस बात से डिप्रेशन में जा रहे हैं उनका सेल्फ कॉंफिडेंस कम हो रहा है। उनके जलसी के पीछे के कारण को जानने की कोशिश करें। उन्हें अच्छी-अच्छी प्रेरक कहानियां सुनायें। उन्हें पॉजीटीव फीलींग का एहसास करायें। उनके साथ काफी उदार रहें और उन्हें उनके अचीवमेंट और उनके सेंस ऑफ ह्युमर की तारीफ करना ना भूलें।
शेयरिंग का महत्व समझायें
बच्चों में ये स्वाभाविक होता है कि वे अपना कुछ भी दूसरे बच्चों के साथ शेयर नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में उन्हे शेयरिंग का महत्व समझायें। आप बहुत जल्द ही पायेंगे कि वे अपनी न्यू कंपनी को एंजॉय कर रहे हैं। अपने बच्चों से प्यार करें। अलग-अलग मौके पर उन्हें प्यार की बहुत जरुरत पड़ती है।
तुलना करने से बचें
तुलना करने से बच्चों के दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वे सोचने लगते हैं कि आप उनसे नहीं दूसरों से ज्यादा प्यार करते हैं और उनसे ज्यादा वे काबिल और अच्छे हैं। इसी तरह उनके दोस्तों या उनके सिबलिंग्स से उनके क्लासवर्क की तुलना ना करें। आपकी ये हरकत उन्हें और ज्यादा मेहनत करने को प्रोत्साहित नहीं करेंगी बल्कि इसका उल्टा असर पड़ेगा।