जब बचाया पिल्ले को
दोस्तो, जीवन में अनेक ऐसी घटनाएं होती हैं, जो हमें कुछ नया सिखाती हैं।
दोस्तो, जीवन में अनेक ऐसी घटनाएं होती हैं, जो हमें कुछ नया सिखाती हैं। यह बात तब की है जब मेरे पिताजी फिरोजपुर जा रहे थे। उस दिन मेरे पापा के बड़े भाई भी घर आए हुए थे। सभी मेरे पापा की विदाई की तैयारियों में जुटे थे। दोपहर का वक्त था, मैं अपने दादा जी को खाना परोस रही थी। दस कदम की दूरी पर एक कुतिया अपने पिल्लों के साथ सामने बैठी थी। दादी जी ने उन्हें भगाने का संकेत दिया, तो मैंने डंडा घुमाकर उसकी तरफ फेंका। परंतु अनजाने में वह एक छोटे पिल्ले को लग गया। वह बेहोश हो गया। मैं बहुत बुरी तरह से डर गई। अंदर कमरे में बैठकर रोने लगी। मम्मी-पापा ने मुझसे मेरे रोने का कारण पूछा, तो मैंने उन्हें सब बता दिया। मैं उस पिल्ले के पास गई। वह अब भी वहीं पड़ा था। उसे उठाकर धूप में रखा और दवा दी। फिर उसे दूध पिलाने का प्रयास किया। दो घंटे बाद उस पिल्ले ने अपना मुंह खोला और मैंने उसे दूध पिलाया और रोटी खिलाई। उसके साथी पिल्ले उसके पास ही घूम रहे थे। उन्हें अपने भाई की चिंता थी। मुझे यह एहसास हुआ कि बेजुबान जानवरों में भी भावनाएं होती हैं। वे अपने लिए लड़ नहीं सकते, इसलिए हमें उन्हें परेशान नहीं, बल्कि उनकी मदद करनी चाहिए। मैंने शाम को अपने पापा को फोन करके बताया कि पिल्ला बिल्कुल ठीक है और मेरे साथ खेल रहा है। वे खुश हुए।
-वैशाली यादव पिथौरागढ़, उत्तराखंड