Move to Jagran APP

समझे धरती मां का दर्द

एक मां का दर्द एक मां से बेहतर और कौन समझ सकता है। आज फैक्ट्रियों, कीटनाशकों आदि के रसायनों, प्लास्टिक के प्रदूषण से धरती मां का सांस लेना दूभर हो रहा है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Thu, 13 Apr 2017 04:19 PM (IST)Updated: Fri, 14 Apr 2017 09:05 AM (IST)
समझे धरती मां का दर्द
समझे धरती मां का दर्द

एक मां, पत्नी, बहू या बहन होने के नाते आप घर की धुरी हैं। सबके जीवन व आदतों को आपका व्यक्तित्व प्रभावित करता है। इसीलिए आप द्वारा अपनाए गए नियम घर के अन्य सदस्यों के लिए भी अनिवार्य हो जाते हैैं। आइए जानें कैसे आप धरती मां की सहायता कर सकती हैैं। इन्हें अपनी व अपने परिवार की आदत बनाकर आप मना सकती हैं हर दिन अर्थ डे...।

loksabha election banner

पानी की बचत

पानी की बचत हर संभव तरीके से करें, कहती हैं एक बैंक में कार्यरत सीमा भाटिया। वह कहती हैं कि कपड़े या बर्तन धोते समय नल खुला न छोड़ें। बाल्टी में पानी लेकर कपड़े धोएं और बचे हुए पानी को फ्लश में डालने के लिए प्रयोग कर सकती हैं। यदि साफ पानी बचे तो पौधों में डाल दें, लेकिन ध्यान रहे कि डिटर्जेंट वाला पानी पौधों व धरती के लिए हानिकारक हो सकता है। सब्जियों को किसी बरतन में पानी लेकर धोएं तथा बाद में वह पानी पौधों में डालें।

ग्र्रीन कंज्यूमर बनें

पर्यावरण के लिए सुरक्षित वस्तुएं खरीदें यानी वे वस्तुएं जिन्हें बनाने या जिनके इस्तेमाल से पर्यावरण को किसी तरह की हानि न हुई हो। साथ ही उनकी पैकिंग में प्लास्टिक और एल्यूमिनियम का इस्तेमाल कम से कम किया गया हो या वह सामान रीसाइकल्ड वस्तुओं से तैयार किया गया हो, कहती हैं एमबीए की छात्रा मधुमिता शर्मा। वह कहती हैं कि जरूरी है कि हम तीन 'आर' का ध्यान रखें यानी जहां तक हो सके री-यूज, री-साइकल तथा रि-ड्यूस का नियम अपनाएं और घर के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए प्रेरित करें यानी वही सामान इस्तेमाल करें जिसे री-साइकल या पुन: इस्तेमाल किया जा सकता हो। डिसपोजेबल वस्तुओं के इस्तेमाल से बचें। उदाहरण के लिए डिस्पोजेबल रेजर के स्थान पर मशीन रेजर, पेपर नैपकिन के स्थान पर कपड़े से बने नैपकिन, रोटी लपेटने के लिए एल्यूमीनियम फॉइल के स्थान पर कपड़े का नैपकिन इस्तेमाल कर सकते हैं। शॉपिंग करते समय लिक्विड सोप, चाय, कॉफी, तेल आदि के नए पैक खरीदने की अपेक्षा रीफिल पैक खरीदें। इससे आपके पैसों की भी बचत होगी और कचरा भी कम उत्पन्न होगा। दो या तीन छोटी पैकिंग्स के स्थान पर एक बड़ा पैक खरीदने से पैसों के साथ गार्बेज में भी बचत होगी और धरती पर कूड़े का बोझ कम बढ़ेगा।

प्लास्टिक का प्रयोग न करें

होममेकर निधि शुक्ला का कहना है कि प्लास्टिक धरती मां की दुश्मन है। प्लास्टिक का कचरा पृथ्वी से पूरी तरह मिटाने के लिए सैकड़ों साल का समय लग सकता है। इसलिए किसी भी तरह के प्लास्टिक के सामान का त्याग करें। मैं बाजार से सामान लाने के लिए प्लास्टिक बैग की जगह कागज के लिफाफे या कपड़े के थैले का प्रयोग करती हूं। वह कहती हैं कि प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल भी कम करें। ऐसी वस्तुएं खरीदें जिनकी पैकिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल कम हो यानी वे कम कचरा उत्पन्न करें। जब भी शॉपिंग करने निकलें, अपना थैला साथ लेकर जाएं। इससे फालतू प्लास्टिक बैग घर में नहीं आएंगे। जब भी कोई दुकानदार प्लास्टिक बैग देने लगे तो स्वेच्छा से उसे लेने से इंकार करें।

ईको फ्रेंडली वॉशिंग

एक स्कूल में पढ़ाने वाली पूर्वा कोहली कहती हैं कि मैं मोटे कपड़े धोने के लिए भी हमेशा ठंडे पानी का ही इस्तेमाल करती हूं। इससे बिजली का बिल कम आता है। इसी प्रकार अधिक रासायनिक डिटर्जेंट के स्थान पर मैं नार्मल डिटर्जेंट का प्रयोग करती हूं। ये हमारी वॉशिंग को ईको फ्रेंडली बनाते हैैं। वह कहती हैं कि आजकल वॉशिंग मशीनों के नए मॉडल 30 से 60 प्रतिशत तक पानी की बचत में सहायक हैं और ईको 

फ्रेंडली वॉशिंग में भी।

गो ग्रीन

हरियाली हवा को साफ करती है। इसलिए अपने घर व आसपास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं व उनकी देखभाल करें। इससे आपको स्वच्छ वातावरण तो मिलेगा ही। साथ ही मानसिक शांति व सुकून भी। यह कहना है पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़ी राधा अग्रवाल का। वह कहती हैं कि घर के अंदर रखे पौधे भी ठंडक प्रदान करते हैैं। इसलिए घर के अंदर भी पौधे अवश्य लगाएं। घर से निकलने वाले कूड़े में कई वस्तुओं का प्रबंधन करके आप इन पौधों के लिए खाद भी तैयार कर सकती हैैं, जैसे सब्जियों व फलों के छिलकों को कम्पोस्ट बनाकर खाद की तरह इस्तेमाल करें।

करें बिजली की बचत

पर्यावरण पर रिसर्च कर चुकी एजुकेशनिस्ट डॉ. शालिनी गुप्ता का कहना है कि समाज की सबसे छोटी ईकाई यानी परिवार से बदलाव की बयार चले तो समाज में तेजी से परिवर्तन संभव है। इसके लिए बिजली की बचत की बात करें तो घरों में एलईडी लाइट्स लगाकर बिजली के बिल में कटौती के साथ ही जो ऊर्जा की बचत होती है उससे बिजली के कट्स में भी कमी आएगी। नतीजतन जनरेटर कम चलेंगे। इनके कम चलने से वायु प्रदूषण घटेगा। इसके अलावा बड़े-बड़े शिक्षा संस्थानों आदि का निर्माण ही ग्र्रीन बिल्डिंग्स के तौर पर हो, जिनमें रेन वाटर हारवेस्टिंग के अलावा सोलर पैनल लगा कर अक्षय ऊर्जा का उपयोग हो तो हम काफी ऊर्जा बचा सकते हैं। अधिक बिजली के उपकरणों के इस्तेमाल का मतलब है अधिक ग्लोबल वॉर्मिंग। इसलिए जितनी आवश्यकता हो उतनी ही बिजली इस्तेमाल करें। ट्यूबलाइट्स साफ रखें, इससे वे अधिक रोशनी देंगी। जब भी अवसर मिले परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर गपशप करें। इससे अलग-अलग कमरों के एसी, पंखें, कूलर व लाइटें नहीं जलेंगी। इससे भी बिजली की बचत होगी।

वेस्ट का किया बेस्ट यूज

भैरवी मलकानी, सीईओ,

मैंने मुंबई से अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद आट्र्स ऐंड क्रॉफ्ट्स का कोर्स किया। कुछ समय टीचिंग की। साथ ही और भी काम किए। फिर भी अधूरापन लग रहा था। इसलिए जॉब छोड़ दी। कुछ क्रिएटिव करने का दिल हो रहा था। मैंने अपने आसपास के टेलर्स से कॉन्टैक्ट किया, जिनके पास रोजाना काफी वेस्ट मैटीरियल निकलता था। वेस्ट मैटीरियल्स से होम डेकोर, बैग्स आदि बनाने का काम शुरू किया। प्रदर्शनी भी लगाईं। धीरे-धीरे लोगों को मेरे काम के बारे में पता चला। उन्हें प्रोडक्ट्स पसंद आए। फिर मैंने 'क्रिएटिव बॉक्सÓ नाम से एक ऑनलाइन प्लैटफॉर्म स्टार्ट किया। इसका काफी बढिय़ा रिस्पॉन्स मिला। फैमिली मेरी प्राथमिकता है, लेकिन घर पर भी आइडल या मोनोटोनस लाइफ नहीं लीड कर सकती हूं। टाइम मैनेज कर घूमने और ऑनलाइन कम्युनिटी के लिए भी समय निकाल लेती हूं। एक वाक्य में कहूं तो आई लव माई लाइफ।

धरती को बचाएंगे घड़े और पत्तल

निर्मल विक्रम, प्रधानाचार्या एवं साहित्यकार

जम्मू में प्रधानाचार्या व डोगरी कथाकार निर्मल कहती हैं जमाना बदल रहा है, पर जमाने से ज्यादा हमारी आदतें बदल गई हैं। मुझे अपने बचपन की याद है मां हमारे लिए स्टील के टिफिन खरीद कर लाती थीं। यदि यही चलन फिर से शुरू हो तो टिफिन के नाम पर इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक को कम किया जा सकता है। गर्मी में प्लास्टिक के टिफिन हीट देने लगते हैं। इससे खाना भी पहले के मुकाबला जल्दी खराब होने लगता है। अपने स्कूल में मैं जब बच्चों को प्लास्टिककी रंग-बिरंगी बोतलों में पानी लाते देखती हूं तो सोचती हूं कि किस तरह इनके इस्तेमाल से रोका जाए। इस बार मैं स्कूल में आर ओ लगवाने वाली हूं। साथ ही मैंने इस बैसाखी पर 'टैप'वाले घड़े खरीदे हैं स्कूल के लिए। यह प्राकृतिक भी हंै और शुद्ध भी। इनका ठंडा पानी सेहत के लिए भी अच्छा होता है। अब बच्चों को अपने साथ पानी की बोतल लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह उपाय हम किसी भी संस्थान में कर सकते हैं और अपने घर में भी। आजकल लगभग हर आयोजन में डिस्पोजेबल बर्तनों का इस्तेमाल होता है। इनकी जगह यदि हम पत्तलों का इस्तेमाल करें तो पर्यावरण की अधिक रक्षा होगी। सबसे अच्छी बात इस्तेमाल किए हुए पत्तलों को जानवर भी खा लेते हैं। इससे कचरे की समस्या भी नहीं रहती। इन छोटे-छोटे उपायों से धरती मां को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।

शुरू से ही ऊर्जा संरक्षण की नींव

गुरसिमरन, छात्रा (जालंधर)

गुरसिमरन की उम्र भले ही कम है, लेकिन उसने देश के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला लेने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को सोचने पर मजबूर कर दिया। वेब के माध्यम से मंत्री से रूबरू हुए बच्चों में से गुरसिमरन ने उन्हें सुझाव दिया था कि ऊर्जा संरक्षण की महत्ता को आंकते हुए इसे पाठ्यक्रम का विषय बना दिया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने तुरंत हामी भर दी थी और अब इस सत्र से उनके स्कूल से शुरूआत करते हुए इसे लागू कर दिया गया है। गुरसिमरन का कहना है कि यदि घर और स्कूल में ऊर्जा संरक्षण की छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखना बचपन से ही सिखा दिया जाए तो वह व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाएगा। हमारे ऊर्जा के स्रोतों की खपत कम होगी तो जाहिर है कि उनके पुनर्निर्माण के लिए खर्च होने वाले संसाधनों की भी बचत होगी यानी धरती मां की गोद हरी-भरी रहेगी।

धरती मां का सम्मान करना सीखें

बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल, पर्यावरण संरक्षक

पर्यावरण संरक्षक के रूप में विश्वभर में लोकप्रियता पा चुके बाबा सीचेवाल का कहना है कि गुरु ग्र्रंथ साहिब में लिखा है 'पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत...' यानी सैकड़ों वर्ष पहले से ही यही सीख दी जाती रही है कि प्रकृति का गुरु और माता-पिता के समान आदर करो। जिस दिन मानव धरती को अपनी मां मानने लगेगा उसी दिन से उसके मन में उसके प्रति सम्मान भी आ जाएगा। अधिक पैदावार के लालच में फसलों पर जहरीला छिड़काव न करें। जैसे मां का हृदय विशाल होता है और वह बच्चों की गलतियां माफ कर देती है, वैसे ही अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है। हम चेत जाएं और हवा, पानी, धरती की सुरक्षा करें तो अपने बच्चों के जीने लायक धरती बचा सकते हैं, क्योंकि सुबह का भूला शाम को घर आए तो वह भूला नहीं कहलाता।

फैशन में रिसाइकलिंग की बहार

पारोमीता बनर्जी, फैशन डिजाइनर

इन दिनों हाई एंड फैशन में भी रिसाइकलिंग की बहार है। जाने-माने डिजाइनर्स वेस्ट और बचे हुए फैब्रिक के साथ नए प्रयोग कर रहे हैं। हाल ही में संपन्न हुए एमेजॉन इंडिया फैशन वीक में पारोमीता ने अपने कलेक्शन में रीसाइकलिंग को महत्व दिया। वह कहती हैं, 'इस बार मैंने नोटबुक के कवर पेपर, ग्रीटिंग काडर््स, बटन, कांगड़ी बॉर्डर और हैंडमेड पेपर का इस्तेमाल करके एक्सेसरीज बनाई हैं। हम एक नए प्रोजेक्ट के तहत बचे हुए फैब्रिक्स और अन्य मैटीरियल्स को विभिन्न रचनात्मक तरीकों से परिधानों और एक्सेसरीज बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इस प्रयोग को लोग पसंद भी कर रहे हैं। इससे एक तो हमारा बचा हुआ मैटीरियल वेस्ट नहीं होता, दूसरे पर्यावरण को बचाने में भी सहायता मिलती है। आगे भी मैं अपने कलेक्शन में रिसाइकलिंग को अपनाती रहूंगी।

वंदना वालिया बाली

इनपुट नोएडा से यशा माथुर, अंशु सिंह, जम्मू से योगिता यादव


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.