लघुकथा: शक का घेरा
मौका मिलते ही मुझे घूरने लगता है। पत्नी नहाने जाती है तो वह किसी बहाने रसोईघर में घुस आता है और मेरे इर्द-गिर्द मंडराने की फिराक में रहता है।
एक कामवाली ने दो अलग-अलग घरों में काम करना शुरू किया। उसके पति ने पुरुषोचित उत्सुकता से उन घरों
के बारे में विस्तृत जानकारी मांगनी शुरू कर दी। कामवाली ने बताया, ‘पहले घर में पति-पत्नी और दो बच्चे हैं। पत्नी देखने में अच्छी नहीं है। उसका पति दिलफेंक टाइप का है।
मौका मिलते ही मुझे घूरने लगता है। पत्नी नहाने जाती है तो वह किसी बहाने रसोईघर में घुस आता है और मेरे इर्द-गिर्द मंडराने की फिराक में रहता है। गंदे-गंदे गाने गुनगुनाने लगता है। पर क्या करूं, मैडम जी अच्छी हैं। मेरा बहुत ख्याल रखती हैं और पैसे समय पर हाथ में रख देती हैं। इसलिए काम छोड़ नहीं सकती।’ कामवाली के पति ने कहा, ‘ठीक है। मगर हमेशा होशियार रहा करना। अब बता, दूसरा घर कैसा है?’
दूसरे घर के नाम से कामवाली खिल उठी। उसे कहा, ‘दूसरे घर के साहब बड़े नेक इंसान हैं। उनकी पत्नी है और
एक बच्चा। काम भी कम है। साहब जल्दी मेरी तरफ देखते नहीं। जब मैं काम पर जाती हूं, वे बराबर अपने कमरे में रहते हैं। कोई काम हो तो मेमसाहब को ही पुकारते हैं। मुझे तो यह अच्छे चरित्रवाला लगता है। मुझे उनसे बिल्कुल डर नहीं लगता। तू भी मत डरना। मैं वहां परी तरह ठीक हूं।’
कामवाली के पति ने कुछ देर चुप्पी साधे रखी। फिर कहा, ‘ज्यादा भोली मत बन। क्या तू मर्दों को नहींजानती? ऐसे लोगों से ज्यादा बचने की जरूरत है। अक्सर ये ऊपर से सफेद चादर ओढ़ते हैं, मगर अंदर से ये बहुत काले निकल जाते हैं।’
ज्ञानदेव मुकेश,
μलैट संख्या-102, ई-ब्लॉक,
प्यारा घराना कांप्लेक्स, चंदौती मोड़, गया-823001 (बिहार)