मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों ‘लाइक’ किया
ध्यान रहे, लाइक और कमेंट के बीच ज्यादा गैप न रहे। कोई असर न हो, तो सोते-जागते, उठते-बैठते हरी बत्ती दिखाएं।
मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों ‘लाइक’ किया...! वाकई मर्ज बढ़कर अब लाइलाज रोग की ओर अग्रसर है। लाइलाज रोग में सिर्फ एक्सपेरिमेंट होते हैं, कोई दवा काम नहीं करती, अलबत्ता सारी उम्मीद दुआ पर आ टिकती है। ऐसे लाइलाज रोग के निस्संदेह भविष्य में एक्सपर्ट डॉक्टर भी होंगे- लाइक स्पेशलिस्ट, फेसबुकियाट्रिशियन, कमेंटोलॉजिस्ट, साइटोसर्जन, व्हाट्सएपोलॉजिस्ट, ट्विटरोलॉजिस्ट इत्यादि, जो प्रिस्क्रिप्शन भी ऐसे लिखेंगे, हर दो-दो घंटे में पांच-पांच लाइक्स दें। बीच में कमेंट देते रहे हैं। ध्यान रहे, लाइक और कमेंट के बीच ज्यादा गैप न रहे। कोई असर न हो, तो सोते-जागते, उठते-बैठते हरी बत्ती दिखाएं।
भविष्य का सीन यह बन रहा है कि किसी को अस्पताल लेकर आए हैं। स्ट्रेचर से सीधे इमरजेंसी में ले जाया गया। डॉक्टर ने आंख की पुतली पलटते हुए पूछा, ‘कब से है यह हाल, लाइक-कमेंट ठीक से नहीं आ रहे क्या?’ घर वाले बताएंगे, ‘शाम तक तो ठीक था, उसके बाद अचानक तबीयत खराब हो गई, बदहवास सा, अंड-बंड बकने लगा। कोई मुझे लाइक नहीं करता, पूरे दस सैकंड हो गए, अभी तक किसी ने लाइक नहीं किया। ऐसे जीने से मर जाना अच्छा है, ऐसा कहते-कहते बेहोश हो गया। जब अस्पताल लेकर आ रहे थे, तब रास्ते में कुछ इस तरह बड़बड़ा रहा था- लाइक किया क्या, लाइक आया क्या, जबकि हम इसे इत्ता लाइक, इत्ता लाइक करते हैं
कि लाइक की कसम!’
डॉक्टर फौरन एक इंजेक्शन लाइक्स देगा। थोड़ा- थोड़ा होश आने लगा, तब एक कमेंट्स का इंजेक्शन ठोक दिया। बंदे ने आंखें खोल दीं। ‘अब कैसा लग रहा है, ठीक फील हो रहा है?’ डॉक्टर ने पूछा, ‘देखो तुम्हें लाइक करने के लिए कितने लोग खड़े हैं।’
कोई आश्चर्य नहीं! बहुत जल्द यह सब नॉर्मल होने वाला है। एक वर्चुअल वल्र्ड ‘लाइक’ की धुरी पर घूम रहा है। भौतिक दुनिया रहने लायक नहीं रह गई है। बहुत जल्द लोग वर्चुअल वल्र्ड में शिफ्ट हो लेंगे। जहां चौबीसों घंटे सोशल साइट्स पर विचरने की सुविधा है।
लाइक्स और कमेंट्स की चाह पागल बना रही है। इसकी गिरफ्त में आए लोग चौबीस घंटे टकटकी लगाए स्क्रीन तकते रहते हैं कि अब आया, अब आया! ‘डॉक्टर साहब, देखिए तो इसे क्या हो गया है। वैसे तो सोता नहीं है, भूल से कभी आंख लग जाए तो सोता कम है, बड़बड़ाता ज्यादा है।’
डॉक्टर लिखेगा, घर का प्रत्येक बंदा रोज उठते ही इसके जागने से पहले लाइक करना न भूलें। खाने से पहले यानी खाली पेट लाइक्स दें, खुशी में भूख खुलकर लगेगी। खाने के बाद कमेंट दें। पाचनक्रिया ठीक रहेगी। अनिद्रा के शिकार हों, तो अपने सगे-संबंधी, ईष्ट-मित्रों से भी आग्रह करें कि वे भी इन्हें ढेर सारे लाइक्स दिया करें, इससे बेचैनी
कम होगी। यदि नौजवान टीनेज में है, तो आप सीनियर सिटीजन के लाइक उतने असरकारक नहीं होंगे, इस
उम्र में सिर्फ कन्याओं, षोडसियों के लाइक, कमेंट ही एंटीबायोटिक का काम करते हैं। मुमकिन हो तो सब
घरवाले लड़कियों के नाम से फेसबुक अकाउंट बना लें। फेक ही अब सत्य है। रात को सोने से पहले इन
अकाउंट्स का इस्तेमाल करें। इससे कई किस्म के ख्याल आएंगे, बच्चा वर्चुअल वल्र्ड के स्वप्नलोक में विचरने
लगेगा, इसी के साथ निद्रा भी आ सकती है, हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है।
यदि बच्चा लाइक को लेकर हाइपर है, तो यह जरूर ध्यान रखें कि एकदम से ज्यादा लाइक न दें, नहीं तो एलपी (लाइक प्रेशर) होने का अंदेशा है। अगर लाइक्स चार-पांच सौ से ज्यादा आएं, तो खतरा यह भी है कि बच्चा एकदम से ही घरवालों को पहचानने से इंकार कर दे।
लाइक्स ने यूं जीवन का अधिग्रहण किया, तो फिर यह बहुआयामी हो जाएगा। लाइक्स कारोबार की शक्ल अख्तियार कर लेगा। लाइक्स का बिजनेस चल निकलेगा। नए-नए लोग मेक इन इंडिया के तहत स्टार्टअप डाल लेंगे। ‘हमारे यहां लाइक्स उचित रेट पर मिलते हैं।’ कई कंपनियां कूदकर सारा धंधा हथिया लेंगी। ‘लाइक्स के थोक विक्रेता।’ ‘लाइक्स के खुदरा व्यापारी।’ सौ लाइक्स खरीदने पर दस कमेंट्स फ्री। वैसे आजकल भाषण, जुमले, वादे, सरकारें सब हवाहवाई सी होने लगी हैं। यथार्थ की समस्याओं के आभासी सॉल्यूशन पेश कर रही हैं। मुझे भी नेतागीरी में संभावना दिख रही है। मेरे भाषण का मजमून कुछ ऐसा होगा ‘मित्रों, अब तक किसी सरकार ने आपको ‘लाइक’ नहीं किया। पूरे सत्तर साल से लाइक से दूर रखा गया। बोलो, आपको लाइक चइए कि नहीं चइए! मैं लाइक सीधे आपके अकाउंट में डालूंगा!’ अब चलता हूं, देखूं तो सही, इस पर कितने लाइक आए हैं!
सुरजीत सिंह
36, रूप नगर प्रथम, हरियाणा मैरिज लॉन के पीछे,
महेश नगर, जयपुर -302015