पहाड़ सा हो पुरुषार्थ
मौजूदा ट्रेंड में उन्हें ढूंढ़ने निकलिए तो मिसफिट पाएंगे। कुछ अलग है उनकी सोच और अलग है दिशा।
25 साल पहले एवरेस्ट फतह करने वाली एशिया की पहली महिला संतोष यादव आज भारत तिब्बत सीमा पुलिस की नौकरी छोड़कर विभिन्न स्कूलों में दे रहीं हैं बच्चों को नैतिक शिक्षा पर व्याख्यान-
वह फूल नहीं लेतीं, स्वागत में मालाएं पहनने से बचती हैं। वह कहती हैं, ‘बेहतर है कि फल उगाए जाएं, फल ही दिए जाएं। प्रतिभाशाली बच्चों को स्मृति चिन्ह देने की बजाय कापियां बांटी जाएं। ये घर में अनावश्यक जगह नहीं घेरेंगी, बल्कि मन के कोमल भावों को अपने में स्थान देंगी।’ ये हैं पद्मश्री संतोष यादव। एशिया की पहली महिला जिन्होंने 1992 में एवरेस्ट की चोटी फतह की। अगले ही वर्ष 1993 में भी माउंट एवरेस्ट को दो वर्ष में दो बार फतह कर विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। संतोष इस समय अपने दोनों बच्चों की परवरिश में व्यस्त हैं। साथ ही समय निकाल रही हैं समाज को भीतर से मजबूत बनाने के लिए।
छोटा गांव छोटे सपने
रेवाड़ी (हरियाणा) के छोटे से गांव जोनियावास की रहने वाली संतोष यादव पांच भाइयों की अकेली बहन हैं। पिता राम सिंह यादव फौज में और माता चमेली देवी गृहणी थीं। परिवार संयुक्त था। इसलिए सारा परिवार गांव में ही रहा करता था। जहां मां और दादी के साथ ताई का भी खूब लाड़-प्यार उन्हें मिला।
पढ़ाई लाई दिल्ली
संतोष अपने परिवार के साथ गांव में ही रहती थीं कि पिताजी की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में हो गई। इसी पोस्टिंग के साथ उनके परिवार के लिए दिल्ली में एक मकान एलॉट हुआ। संतोष के दोनों बड़े भाई गुजरात में पढ़ाई कर रहे थे, जबकि संतोष चाहती थीं कि उन्हें दसवीं से आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली में दाखिला दिलवा दिया जाए।
मां से मिला संबल
दसवीं के बाद ही जब उनके लिए रिश्ता ढूंढ़ा जाने लगा तो उनकी मां ने यह कहकर उनका बचाव किया कि वह अभी बहुत छोटी है। शादी से पहले कम से कम 12वीं करवा दी जाए। बस इसी छोटे से संबल के सहारे वह दिल्ली आ गईं और आगे की पढ़ाई में व्यस्त हो गईं। 12वीं होते ही उन पर शादी के लिए दबाव बढ़ने लगा था, पर वे कहां मानने वाली थीं। उन्होंने राजस्थान में महारानी कॉलेज में अर्थशास्त्र ऑनर्स में दाखिला ले लिया।
पर्वतों की राह
जयपुर में पढ़ाई के दौरान ही जब वह अरावली पर लोगों को चढ़ते-उतरते देखतीं तो उनका भी मन होता कि वह भी कभी इसी तरह पहाड़ पर चढ़ें। अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उन्होंने उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनरिंग में दाखिला लिया। इसके साथ ही सिविल सर्विस की तैयारी में भी लग गईं।
पहाड़ हमारे पुरुषार्थ हैं
पहाड़ पर चढ़ने के अनुभव को साझा करते हुए वह कहती हैं, ‘यह बहुत ही रोमांचक अनुभव रहा है। जिसमें जिंदगी का जोखिम तो था, पर मुश्किलों के बीच भी जिंदगी को कैसे बचाए रखना है, इस हुनर की सीख भी थी। असल में पहाड़ हमारे पुरुषार्थ हैं। आप उनसे कुछ सीखना चाहते हैं तो आपको उनके पास जाना होगा।’
जो जरूरी है बस वही है
जिस दिन मुलाकात हुई, उस दिन वह सिल्क की साड़ी, फुल स्लीव्स टीशर्ट और स्पोट्र्स शूज पहने थीं। सिर को पल्लू से ढके वह बता रहीं थी कि कपड़ा दिखाने के लिए नहीं, तन को ढकने के लिए पहना जाता है। ‘जब हम आरामदायक कपड़े पहनेंगे, तभी अपनी ऊर्जा अपने काम में लगा पाएंगे। मैं केवल वही चीजें इस्तेमाल करती हूं, जो बहुत जरूरी हैं। ब्लाउज सूख नहीं पाया था तो मैंने टीशर्ट पहन ली। अपने व्याख्यान के दौरान भी मैं सबसे यही कहती हूं कि केवल अत्यावश्यक चीजों का ही इस्तेमाल करें। इससे पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और हम अपने घर-जीवन को अनावश्यक कचरे से दूर रख पाएंगे।’
मेरा परिवार है मेरा संतोष
अपने दोनों बच्चों माहिर प्रताप और महिमा नंदिनी की परवरिश में उन्होंने पुलिस की नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया। वह कहती हैं, ‘मेरा परिवार ही मेरा संतोष है। मैं हमेशा अपने मन का करना चाहती हूं। नौकरी में बंधन महसूस होता था। इसलिए नौकरी छोड़ दी। मुझे लगता है कि एक स्त्री यदि अपने बच्चों को संयम, सादगी और ईमानदारी से पालना चाहती है तो यही उसके लिए फुल टाइम जॉब है।’
रंग लाई मेहनत
संतोष की मेहनत रंग लाई। भारत तिब्बत सीमा पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई और पहाड़ चढ़ने के संयोग बनने लगे। प्रशिक्षण और अवसर का सुनियोजित संयोग ही था कि कंचनजंघा जैसी पहाड़ियों पर उन्होंने जल्दी ही फतह हासिल कर ली। भारत तिब्बत सीमा पुलिस के विशेष समूह का नेतृत्व करते हुए 12 मई, 1992 में एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा कर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड बनाया। अगले ही साल जापानी महिला दल का नेतृत्व कर उन्होंने एवरेस्ट पर महिलाओं के पहुंचने का एक रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया।
प्रस्तुति- योगिता यादव
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