Rheumatic फीवर : मामूली बुखार नहीं है यह, हार्ट पर डालता है असर
रूमैटिक फीवर काफी खतरनाक होता है। यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो इससे हार्ट को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचता है और स्ट्रोक की भी आशंका बढ़ जाती है।
क्या है वजह
रुमैटिक फीवर के लिए स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया को जि़म्मेदार माना जाता है। शुरुआती दौर में इसकी वजह से होने वाले संक्रमण को स्कारलेट फीवर कहा जाता है। जब सही समय पर इसका उपचार नहीं किया जाता तो रुमैटिक फीवर होने की आशंका बढ़ जाती है। इसकी वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम असंतुलित हो जाता है और वह अपने स्वस्थ टिश्यूज़ को नष्ट करने लगता है। स्कूली बच्चों मेंरुमैटिक फीवर होने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता लेकिन बाहरी वातावरण से उनका संपर्क बहुत ज्य़ादा होता है। ऐसे में बैक्टीरिया उनके कमज़ोर शरीर पर हमला कर देता है और बच्चों का इम्यून सिस्टम उससे लडऩे में सक्षम नहीं होता। आनुवंशिक कारणों की वजह से बच्चों को यह समस्या हो सकती है। अगर घर में सफाई का ध्यान न रखा जाए, तब भी बच्चों को यह फीवर हो सकता है।
प्रमुख लक्षण
गले में खराश, जोड़ों में दर्द, सूजन, छाती और पेट में दर्द, नॉजि़या, वोमिटिंग, सांस फूलना, ध्यान केंद्रित न कर पाना, त्वचा पर लाल रैशेज़, शारीरिक गतिविधियों में असंतुलन, हाथ-पैरों में कंपन और कंधे में झटके लगना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
बुखार के साथ नाक से पानी गिरने की स्थिति में उसके साथ नुकसानदेह बैक्टीरिया भी शरीर से बाहर निकल जाते हैं, जिससे व्यक्ति शीघ्र स्वस्थ हो जाता है। इसलिए अगर बुखार के साथ बच्चे को रनिंग नोज़ की समस्या न हो तो ऐसी स्थिति ज्य़ादा चिंताजनक मानी जाती है।
सेहत पर असर
रुमैटिक फीवर के कारण कई बार हार्ट के मसल्स और वॉल्व डैमेज हो जाते हैं, जिसे रुमैटिक हार्ट डिज़ीज़ कहा जाता है। दिल के वॉल्व वन-वे डोर के रूप में कार्य करते हैं। इसी वजह से हृदय द्वारा पंप किए जाने वाले रक्त का प्रवाह एक ही दिशा में होता है। वॉल्व के क्षतिग्रस्त होने पर इनसे ब्लड लीक हो सकता है। यह ज़रूरी नहीं है कि ऐसे बुखार के कारण हृदय को हमेशा नुकसान पहुंचे लेकिन उपचार में देर होने पर हार्ट के डैमेज होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में हार्ट के आसपास पानी जमा होने लगता है। इससे उसके हार्ट के वॉल्व बहुत ढीले या टाइट हो जाते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में वह सही ढंग से काम नहीं कर पाता। कुछ मामलों में रुमैटिक फीवर के लक्षण महीनों तक दिखाई देते हैं, जिससे बच्चों में रुमैटिक हार्ट डिज़ीज़ की आशंका बढ़ जाती है और उसके साथ ही स्वास्थ्य संबंधी कुछ और भी जटिलताएं हो सकती हैं, जो इस प्रकार हैं :
वॉल्व स्टेनोसिस : वॉल्व का संकरा होना
वॉल्व रिगर्गिटेशन (valveregurgitation) : इस स्थिति में वॉल्व से लीकेज होता है, जिस कारण रक्त का गलत दिशा में प्रवाह होने लगता है।
हार्ट मसल्स में डैमेज : सूजन के कारण हृदय की मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं, जिससे वह ब्लड को सही ढंग से पंप नहीं कर पाता।
उपचार एवं बचाव
- अगर बच्चे के गले में संक्रमण या दो-तीन दिनों तक 101 डिग्री से ज्य़ादा बुखार हो तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
- अगर घर में किसी एक बच्चे को ऐसा संक्रमण है तो उसे दूसरे बच्चों से दूर रखें, अन्यथा उसे भी ऐसी समस्या हो सकती है।
- आमतौर पर कुछ सप्ताह से लेकर महीने भर में यह समस्या दूर हो जाती है लेकिन यह ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि इसकी वजह से बच्चे के हार्ट को कोई नुकसान न पहुंचे क्योंकि उसकी क्षतिपूर्ति असंभव है।
- इसके उपचार के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं पर अपने मन से बच्चे को ऐसी दवा देने की कोशिश न करें।
- अगर स्थिति ज्य़ादा गंभीर हो तो डॉक्टर स्टेरॉयड देने की भी सलाह देते हैं।
- बच्चे के लिए एक टेंपरेचर चार्ट बनाएं। हर दो घंटे के बाद थर्मामीटर से उसके शरीर का तापमान जांच कर उसे चार्ट में दर्ज करें।
- उपचार को बीच में अधूरा न छोड़ें। बच्चे को सभी दवाएं निश्चित समय पर दें। अगर स्थिति गंभीर हो तो बच्चे को महीनों तक दवाएं देने की ज़रूरत होती है।
सखी फीचर्स
इनपुट्स : डॉ. कृष्ण चुग, डायरेक्टर एंड एचओडी डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स,
फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम