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अम्मा रहना जरा संभल के

फिर बहसों की भेंट चढ़ेगी घर की सारी खुशियां

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 10:12 AM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 11:46 AM (IST)
अम्मा रहना जरा संभल के
अम्मा रहना जरा संभल के

मन ही मन हंस रही दरार

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आंगन तक आ गया बाजार

अम्मा रहना जरा संभल के

याद आएंगे किस्से कल के

पहले तो घर के सब प्राणी

बदलेंगे निज रुचियां

फिर बहसों की भेंट चढ़ेगी

घर की सारी खुशियां

रूखे-रूखे से आएंगे

इन सबके व्यवहार

अम्मा रहना जरा संभल के

ये बदलाव नहीं कुछ पल के

धीरे-धीरे इस आंगन के

हो जाएंगे हिस्से

कट जाएगा पेड़ नीम का

रह जाएंगे किस्से

दीख रहे हैं मुझको तो बस

ऐसे ही आसार

अम्मा रहना जरा संभल के

मेरी बात न लेना हलके

चीजों के संग-संग रिश्तों के

मूल्य लगेंगे भारी

अरबों का सौदा कर देंगे

ये घर के व्यापारी

नैतिकता के मृत्यु बोध को

छापेंगे अखबार

अम्मा रहना जरा संभल के

आ बैठेंगे संकट चल के।

(वरिष्ठ नवगीतकार एवं बाल साहित्यकार)

एन-59. पैरामाउंट ट्यूलिप, दिल्ली रोड,

सहारनपुर, 247001

कृष्ण शलभ


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