कविता: अपने तरीके की लड़ाई
महल-दुमहले होंगे तुम्हारे पर जिस पर टिक सकें पांव इत्ती जमीन मेरी भी है
By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 20 Mar 2017 04:12 PM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2017 04:15 PM (IST)
न सही पूरे 365
कोई एक दिन
या कि उसका
एक छोटा सा हिस्सा
मेरा भी है
सारा आकाश
तुम्हारा सही
पर इसी आकाश की
मामूली ही सही
सिर जितनी छांह
मुझ पर भी है
सारे पहाड़, नदी
वन, बाग, खेत
महल-दुमहले होंगे तुम्हारे
पर जिस पर टिक सकें पांव
इत्ती जमीन मेरी भी है
सारे उजाले
सारी सत्ताएं
सारी कायनात
सारे आमोद-प्रमोद
व्यंजनों भरी परात
होगी तुम्हारे पास
पर श्रम के दो हाथ
एक कटोरी दाल
एक मुट्ठी भात
पत्तों की सही
एक छोटी थाली
चुल्लू भर गिलास मेरा भी है
(चर्चित कवि की अनेक कविताएं पत्र-
पत्रिकाओं में प्रकाशित)
‘प्रतीक्षा’,2-डी-2, पटेल नगर
बीकानेर-334003
नवनीत पांडे
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