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मुझे 10वीं तक अम्मी ने पढ़ाया, उनके सिखाने की एक खास स्टाइल थी : शाहरुख खान

अभिनेता शाहरुख खान कहते हैं कि मैं जो कुछ हूं अपनी अम्मी की वजह से। अम्मी की सोच और सूझबूझ का मुझ पर बहुत प्रभाव है...आज मैं जो भी कुछ हूं, अपने पैरेंट्स की बदौलत हूं। मेरे पैरेंट्स की जगह दुनिया में कोई नहीं ले सकता।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Fri, 12 May 2017 07:32 PM (IST)Updated: Sun, 14 May 2017 10:45 PM (IST)
मुझे 10वीं तक अम्मी ने पढ़ाया, उनके सिखाने की एक खास स्टाइल थी : शाहरुख खान
मुझे 10वीं तक अम्मी ने पढ़ाया, उनके सिखाने की एक खास स्टाइल थी : शाहरुख खान

मेरी अम्‍मी ने मुझे पढ़ाया

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मेरे वालिद साहब अल्लाह को जल्दी प्यारे हो गए। मेरी अम्मी ने मुझे और मेरी बहन को पढ़ाया-लिखाया। मेरी अम्मी लतीफ फातिमा खान एक बेहतरीन टीचर थीं। वह ऑक्सफोर्ड से पढ़ी थीं। अम्मी हैदराबाद से डैड पेशावर के पठान और दादी कश्मीरी। मुझे दसवीं तक अम्मी ने पढ़ाया, उनके सिखाने की एक खास स्टाइल थी। अम्मी कहतीं, तुम एक जगह बैठते नहीं हो पढ़ते समय। इसीलिए अम्मी ने पढ़ाते समय मुझे ऐसे सिखाया, जिसमें कुछ गेम शामिल कर लिए। गेम को पढ़ाई का हिस्सा बनाने से मेरी दिलचस्पी पढऩे में अपने आप बढ़ गई और मैं पढऩे लगा। आज उनकी दूरदर्शिता और सोच पर हैरान हो जाता हूं। 

 

अम्‍मी ने मुझे कभी नहीं मारा

अम्मी की सोच और सूझ-बूझ का मुझ पर बहुत प्रभाव रहा है। अब वक्त तेजी से बदल रहा है। इस पीढ़ी के बच्चों के पास अपने पैरेंट्स को देने के लिए वक्त नहीं है और कामकाजी पैरेंट्स उनके बच्चे जब बड़े हो रहे होते हैं तो अपनी नौकरी-बिजनेस में उलझे रहते हैं। पहले के दौर की कडिय़ां जैसे बिखरती महसूस होती हैं। मेरी हिंदी कमजोर थी। इस पर अम्मी को ताज्जुब होता था। हिंदी से बचने के लिए मैंने हिंदी के टेस्ट भी नहीं दिए। जब स्कूल की हिंदी टीचर ने इस बात की शिकायत अम्मी से की तो मेरे सहपाठियों ने मुझसे कहा, तू अब काम से गया। अम्मी तुझे धो डालेंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने ऐसे क्यों किया। लेकिन हाथ क्या अंगुली तक नहीं उठाई मुझ पर। 

 

अम्‍मी के पढ़ाने का था खास स्‍टाइल
मेरी हिंदी पर अम्मी ने खुद मेहनत की और मुझे गेम सिखाते हुए पढ़ाई करवाई। हां, जब कभी मौका मिला मुझे अपने बच्चों को पढ़ाने का, मैंने उन पर अम्मी की सिखाने की स्टाइल का इस्तेमाल किया। अम्मी टीचर थीं तो उन्हें पांच-छह घंटे स्कूल में बिताने पड़ते थे, लेकिन इसके बाद का सारा समय हम बच्चों के लिए होता था। दिल्ली में रहते हुए अम्मी का नाम सामाजिक सरोकारों में भी काफी था। मैं अपने जीवन के अगले पड़ाव पर दिल्ली से मुंबई आया और अभिनय की दुनिया में रम गया। अम्मी का देहांत बहुत दुखद था। अम्मी का देहांत 15 अप्रैल 1991 को हुआ था। अगर वह जीवित होतीं तो मुझे जीवन में आगे बढ़ता हुआ देख वह कितनी खुश होतीं, बता नहीं सकता। आज भी हर 15 अप्रैल को मैं अपनी अम्मी से दिल ही दिल में बात करता हूं। उनकी कमी जीवनभर महसूस होती रहेगी। 


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