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क्लास रूम से निगम सदन का सफर

नगर निगम के वार्ड 22 से पार्षद हेमा बैसला के लिए यह होली बेहद खास होगी। 22 साल की हेमा बैसला नगर निगम सदन की सबसे कम उम्र की पार्षद हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 11 Mar 2017 12:07 PM (IST)Updated: Sat, 11 Mar 2017 12:13 PM (IST)
क्लास रूम से निगम सदन का सफर
क्लास रूम से निगम सदन का सफर

पंडित जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय में बीए सेकेंड ईयर के क्लास रूम से सीधे नगर निगम पहुंच जाने के बाद पार्षद के तौर पर उनकी यह पहली होली है। 

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हेमा के लिए पार्षद बनने तक यह सफर आसान नहीं रहा। चुनौतियों की शुरुआत तभी हो गई थी जब पिता कैलाश बैसला ने उनको वार्ड 22 से चुनाव लड़ाने का फैसला किया। परिवार और रिश्तेदारों ने ही सलाह दे डाली कि बेटी को चुनाव लड़ाना ठीक नहीं रहेगा। बेटी को घर में रहनी चाहिए। कहा गया कि बेटी कहां गलियों में चुनाव प्रचार करती घूमेगी। लेकिन पूर्व पार्षद कैलाश बैसला ने किसी की नहीं सुनी और वह अपने फैसले पर अडिग रहे। दूसरी चुनौती चुनाव प्रचार के दौरान आई। हेमा बीए सेकेंड ईयर की छात्रा हैं। नगर निगम चुनाव प्रचार के दौरान उनके थर्ड सेमेस्टर के पेपर भी थे। उन्हें एक ओर अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही थी, साथ ही हर जगह चुनाव प्रचार में जाना भी जरूरी था। उन्होंने पूरी मेहनत से दोनों जिम्मेदारियां निभाईं। 8 जनवरी को मतदान हुआ, शाम को जब परिणाम आए तो हेमा काफी अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीतीं। हेमा ने बताया कि इस होली पर अपने समर्थकों को वह बेटियों को आगे बढ़ाने का संदेश देंगी।

खास है हेमा की जीत
हेमा की जीत इसलिए भी खास है कि अब तक बहुएं ही नगर निगम तक पहुंचती रही हैं। वह पहली ऐसी बेटी हैं जो पार्षद चुनकर सदन में पहुंची हैं। अब उन्हें दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। एक ओर जहां उन्हें अपनी पढ़ाई करनी होती है वहीं पार्षद के तौर पर भी उन्हें काम संभालना होता है। इस दोहरी जिम्मेदारी से वह खुश हैं। वह अभी भी कॉलेज जाती हैं। वहां विद्यार्थी खासतौर से छात्राएं उनसे बेहद प्रेरित होती हैं। सहपाठी छात्राओं का व्यवहार भी उनके प्रति काफी बदल गया है। पहले सहपाठी जहां मौज-मस्ती, फिल्मों व खेलकूद की बातें करती थीं, वही अब उनके साथ नागरिक समस्याओं व समाज सेवा की बातें करती हैं।

खुद ले रही हैं अपने फैसले
हेमा ने बताया कि हमें बेटियों के प्रति अपनी सोच बदलने की जरूरत है। उन्हें सदन तक पहुंचाने में पिता कैलाश बैसला ने अहम भूमिका निभाई लेकिन अब वह पार्षद के तौर पर अपने फैसले खुद ले रही हैं। अपनी क्षेत्र की समस्याओं को भी सदन में जोर-शोर से उठाती हैं।
इसके अलावा अपने गांव मेवला महाराजपुर में वह लोगों को समझाती हैं कि बेटियों को किसी भी तरह बेटों से कम नहीं आंके। महिला सुरक्षा के बारे में वह कहती हैं कि मैं इस सोच को बदलना चाहती हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई पुरुष आगे आए। उन्हें अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करनी होगी। वह कहती हैं कि जहां जरूरत पड़े पलटकर जवाब दें।

जरूरत पड़े तो मनचलों से दो-दो हाथ करने से भी पीछे नहीं हटें। महिला सशक्तीकरण के बारे में भी उनके विचार पूरी तरह स्पष्ट हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं को अपने फैसले लेने की आजादी ही असली महिला सशक्तीकरण है। उनका कहना है कि उनके माता-पिता ने उन्हें कभी भाईयों से कम नहीं आंका। चाहे उनके पालन-पोषण की बात हो या फिर पढ़ाई लिखाई की। तभी वह इस मुकाम तक पहुंच सकीं।

हर्बल होली मनाएंगी
पार्षद बनने के बाद अब उनके होली खेलने का तरीका भी बदल जाएगा। उन्होंने बताया कि पहले उन्हें फिक्र नहीं होती थी कि किस तरह के रंगों से होली खेलें, लेकिन अब बड़ी संख्या में उनके फॉलोअर हैं। वह उनसे प्रेरणा लेते हैं, इसलिए उन्होंने हर्बल होली रंगों से खेलने का प्रण लिया है। अपने समर्थकों को भी वह हर्बल रंगों से होली खेलने के लिए प्रेरित करेंगी।
प्रस्तुति : हरेंद्र नागर, फरीदाबाद


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